पूर्णता नथी प्रगटी त्यां पूर्णदशाना स्वरूपनो जे विकल्प ऊठे छे ते विकल्प पण पूर्णदशाने रोकनारो छे. आचार्यदेव
कहे छे के, जेम हरणी पोताना बच्चानां प्रेमने लीधे तेने बचाववा वाघ सामी थाय तेम पूर्णस्वभावना बहुमान वडे
हुं अल्पबुद्धि आ विकल्प वडे तेनुं स्तवन करवा तैयार थयो छुं. परंतु जेम हरणी वाघने न पहोंची शके तेम आ
विकल्पवडे स्वभावनुं स्तवन थई शकतुं नथी. आ जे विकल्प उठयो ते मारो अपराध छे. हे नाथ! आप राग
वगरनां छो तेथी आपनी स्तुति करतां मारे पण रागरहितपणुं प्रगट करवुं जोईए तेने बदले में जे राग कर्यो ते
अपराध कर्यो छे. आ रागने अपराध तरीके कोण माने? सम्यग्द्रष्टि सिवाय कोई आम माने नहि. जेने रागरहित
निरपराध स्वभावनुं भान थयुं छे ते ज रागने अपराध तरीके जाणीने छोडे छे.
अपराध रहित स्वभाव शुं अने अपराध शुं तेनी ओळखाण तो करो. निरपराध स्वरूपनी ओळखाण पछी धर्मात्मा
सम्यग्द्रष्टिने जे अल्प अपराध थाय तेना ते खरेखर कर्ता नथी पण ज्ञाता ज छे. अज्ञानीने तो अपराध अने
निरपराध वच्चेना भेदनी ज खबर नथी, तेणे तो अपराधथी पार एवी निरपराध भूमिकाने देखी ज नथी, तेथी
तेने तो एकांत अपराध ज वर्ते छे. अहीं तो ज्ञानीनी वात छे, ज्ञानीने निरपराध स्वभावनुं भान छे अने अपराध
करवानी भावना नथी छतां जे अल्पराग रही जाय छे तेने टाळवा माटे क्षमा मागे छे के, हे वीतराग आत्मस्वभाव
परिणति! हवे आ विकल्पजाळने तोडीने तुं स्वभावमां समाई जा. पोतानी परिणतिमां जे राग छे ते ज अपराध छे
अने पोतानी वीतराग परिणति वडे ते अपराधनी क्षमा थाय छे.
अंधकारनो नाश करवा माटे आपना चरणो सदा प्रसन्न रहे! हे नाथ! हुं ‘पद्म’ छुं अने आप
सूर्यसमान छो. मारा आत्मकमळने विकसाववा माटे आपना चरणो सदा प्रसन्न रहो.
दान अधिकार वर्णव्यो छे. पण ते कोने रुचशे? जेने आत्मानी दरकार हशे तेवा कोमळ हृदयवाळा भव्य जीवोने तो
आ सांभळता उल्लास आवशे, पण जेओ लक्ष्मी वगेरेना तीव्र लोलूपी हशे तेवा जीवोने आ उपदेश नहि रुचे.
भ्रमर गूंजावर करतो करतो ज्यारे फूल उपर बेसे त्यारे, जे कमळनुं फूल होय ते तो फडाक खीली ऊठे, पण जे
पत्थरनुं फूल होय ते खीले नहि. तेम आ अध्यात्मरसना गूंजारवथी भरेलो दान अधिकार सांभळतां जे कमळ जेवा
कूणां हृदयवाळा भव्यात्मा हशे तेनुं हृदयकमळ तो हर्षथी खीली ऊठशे, पण जे पत्थर जेवा कठण काळजावाळा हशे
तेने आ तत्त्वथी भरेला दानना उपदेशनी कांई असर नहि थाय.
स्वभावनुं माहात्म्य आपना श्रीमुखेथी सांभळीने भव्य जीवो नाची ऊठे छे के–अहा! हुं परमात्मा छुं, मारे मारा
परमात्मपद माटे कोई बीजानी ओशियाळ नथी, हुं स्वभावे परिपूर्ण छुं, ते स्वभावना अवलंबने हवे संसार नथी.
मारा आत्मामां केवळज्ञानरूपी तेजनां निधान भर्यां छे. जेमां जे निधान होय तेमांथी ते प्रगटे. आत्मानां
स्वभावमां पूरां ज्ञाननिधान भर्यां छे, ते निधान बहारनी क्रियाथी के रागथी प्रगटवानां नथी पण स्वभावनी रुचि
अने लीनताथी ज प्रगटवानां छे. आ जे रागनो विकल्प ऊठे ते मारा चैतन्यनिधानमांथी प्रगटेली चीज नथी.
आत्मा तो एकला चैतन्यनुं ज