Atmadharma magazine - Ank 043
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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१३०ः आत्मधर्मः ४३
वस्य) पोताना भावनो (कर्ता भोक्ता भवति) कर्ता तथा भोक्ता छे (तथा परभावस्य कलशस्य) तेम
परभावरूप घडानो (कर्ता च भोक्ता) कर्ता के भोक्ता तो (कदापि न) कोई पण समये नथी.
भावार्थः–जेम कुंभार खरेखर पोताना भावोनो कर्ता तेमज भोक्ता छे, तेम परभावरूप जे घडो छे तेनो
कर्ता के भोक्ता तो ते कदी पण थई शकतो नथी; परंतु माटीने ज घडानी कर्ता कही शकाय छे, कारण के यथार्थपणे
दरेक अवस्थामां दरेक द्रव्य पोतानी पर्यायनुं कर्ता छे. घडो थयो त्यारे कुंभार तो निमित्तमात्र छे; तेथी फक्त
निमित्तमात्रपणाथी तेमां कर्तापणानुं कथन थई शकतुं नथी.
कर्ता कर्मने तन्मयपणुं होय छे एम हवे खुलासो करे छे
तदभिज्ञानं च यथा भवति घटो मृत्तिकास्वभावेन।
अपि मृण्मयो घटः स्यान्न स्यादिह घटः कुलालमयः।। ५७८।।
अन्वयार्थः–(तदभिज्ञान च) अने, कर्ता भोक्ता–संबंधी जे द्रष्टांत कह्युं तेनुं उदाहरण आ प्रमाणे छे के–
(यथा इह घटः) जेम घडो (स्वभावेन मृत्तिका भवति) स्वभावथी माटीरूप छे तेथी (घटः) ते घडो (मृण्मयः
अपि स्यात्) माटीमय अर्थात् माटीरूप पण कहेवाय छे, (परंतु माटीनी जेम) (घटः कुलालमयः न स्यात्)
कुंभार मय घडो कहेवातो नथी.
भावार्थः–प७७मी गाथामां कहेला कथननो खुलासो आ प्रमाणे छे के–जेम घडो स्वभावथी माटी स्वरूप छे
तेथी ते घडो ‘माटीमय’ कही शकाय छे, परंतु तेम घडाने कुंभारमय कही शकातो नथी; अथवा जेवी रीते, उपादानरूप
धर्म पोतानी पर्यायमां व्यापक थई जतो होवाथी ते उपादान धर्मने कर्ता मानी शकाय, परंतु उपादाननी माफक
निमित्तने पण कर्ता कही शकातो नथी. जेम के–घडो माटीमय छे अथवा घडानुं उपादान कारण माटीना परमाणुओनी
ते समयनी घडारूप थवानी लायकात छे–तेथी माटी कर्ता, कुंभार निमित्तमात्र अने घडो कार्य–ए प्रमाणे छे. आ
प्रमाणे अहीं जेम घडाने माटीमय कही शकाय छे तेम तेने कुंभारमय कही शकातो नथी.
हवे, घडानो कर्ता कुंभार कहेवाय छे–ए वगेरे जे लोकव्यवहार छे ते पण नयाभास छे एम दर्शावे छेः–
अथ चेद्धटकर्तासौ घटकारो जनपदोक्तिकेशोऽयम्।
दुर्वारो भवतु तदा कानो हार्नियदा नयाभासः।।५७९।।
अर्थः– (असौ घटाकारः) आ कुंभार (घटकर्ता)–घडानो कर्ता छे–(अयं जनपदोक्तिलेशः) एवो
लोकव्यवहार (दुर्वारः भवतु) दुर्निवार थई जशे’ (यदा अथ चेत्) आ प्रमाणे ज्यारे शंकाकार कहे (तदा) त्यारे
तेनो उत्तर आ छे के–भले, ते लोकव्यवहार दुर्निवार रहो, (का ना हानिः) तेमां अमने (वस्तु स्वरूपने) शुं हानि
छे?–केम के (नयाभासः) ते लोकव्यवहार नयाभास छे.
भावार्थः–जो कदाचित्त आम कहेवामां आवे के ‘लोकमां घडानो कर्ता कुंभार कहेवामां आवे छे, माटे एक
पदार्थनो कर्ता बीजो पदार्थ थई शके छे’–तो आ कथनथी पण अमारा कथनमां कांई बाधा आवती नथी; केम के जो
आ प्रकारना व्यवहारने अमे नय कह्यो होत तो अमारा कथनमां बाधा आवत, परंतु अमे तो तेने नय न कहेतां
नयाभास कहीए छीए. तेथी ‘कुंभार घडानो कर्ता छे’ एवा प्रकारना लोकव्यवहार नयाभास होवाने लीधे अमारा
कथननो बाधक कोई पण रीते थई शकतो नथी.
माटे जीवने कर्म वगेरे पर पदार्थोनो कर्ता भोक्ता कहेवो ते नयाभास ज छे; तेमां कोई नय लागु पडतो
नथी. आ प्रमाणे बीजा नयाभासनुं स्वरूप कह्युं.
त्रीजा नयाभासनुं स्वरूप
अपरे बहिरात्मानो मिथ्यावादं वदन्ति दुर्मतयः।
यदबद्धेपि परस्मिन् कर्ताभोक्ता परोपि भवति यथा।। ५८०।।
सद्वेद्योदयभावान्
गृहधनधान्यं कलत्रपुत्रांश्च।
स्वयमिह करोति जीवो भुनक्ति वा स एव जीवश्च। ५८१।।
अन्वयार्थः– (अपरे दुर्मतयः बहिरात्मनः) कोई खोटी बुद्धिवाळा. मिथ्याद्रष्टि जीव (मिथ्यावादं वदन्ति)
आ प्रमाणे मिथ्या कथननुं प्रतिपादन करे छे के–(यत् अबध्धे परस्मिन् अपि) जेओ बन्धने (एकपणाने) प्राप्त
नथी थता एवा परपदार्थोमां पण (परः कर्ता अपि भोक्ता भवति) अन्य पदार्थ अन्य पदार्थनो कर्ता तेम ज
भोक्ता थाय छे, (यथा इह) जेम के–(सद्वेद उदयभावान्) साता वेदनीय कर्मना निमित्ते जेमनो सद्भाव छे
एवा (गृहधनधान्यं च कलत्र पुत्रान
) घर, धन, धान्य, स्त्री, पुत्र, वगेरेने (
जीवः स्वयं करोति) जीव स्वयं करे
छे (वा) अने स एव जीवश्च भुनक्ति) वळी ते जीव तेमने भोगवे छे.
भावार्थः– कोई कोई बहिरात्मा मिथ्याद्रष्टि दुर्मति जीव, जेमनी साथे खरेखर आत्माने कोई प्रकारे एक–