Atmadharma magazine - Ank 043
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 20 of 25

background image
वैशाखः २४७३ः १३९ः
निश्चयथी धर्मात्मा महावीर जन्म्या नथी, छतां व्यवहारे जन्म्या कहेवाय छे केमके हजी संपूर्णदशा प्रगटी
नथी अने विकार तथा शरीरना संयोगनी लायकात छे. ए व्यवहार होवा छतां स्वभावनी द्रष्टिथी तेमने तेनो
निषेध वर्ते छे. हुं तो त्रिकाळ चैतन्यरूप आत्मा छुं, हुं जन्मुं पण नहि अने मारे मरण पण होय नहि, ए बंने
जडनां काम छे. ज्ञानीओ संयोगनुं अने विकारनुं ज्ञान करे छे पण तेना कर्ता थता नथी, परने जाणनारूं जे पोतानुं
ज्ञान छे ते ज्ञानना कर्ता थाय छे.
धर्मी जीव पोताना ज्ञानपर्यायने अने पुद्गलने जाणे छे, छतां जेम ज्ञानपर्यायना कर्ता छे तेम पुद्गलना
पण कर्ता थता नथी. आवुं जेने भान छे ते धर्मात्मा समये समये पोतानी निर्मळदशामां वृद्धि करे छे, ए सिवाय
बीजुं कांई कार्य धर्मीनुं नथी. आचार्यदेवे अंतरद्रष्टि कराववा माटे अहीं द्रव्य–द्रष्टिनी मुख्यताथी भेदविज्ञान
कराव्युं छे.
भगवान संपूर्ण ज्ञानना धारक अने वीतरागी छे, कोईनी भक्तिथी तेओ प्रसन्न थता नथी अने कोईनी
निंदाथी तेओने द्वेष थतो नथी, तेओ तो साक्षी–ज्ञाता छे. एवा भगवानने जे यथार्थपणे ओळखे ते पोताना
आत्मस्वभावने जाणे अने आत्मस्वभावने जाणतां ते बधाय पदार्थोनो साक्षी थई जाय छे, पण कोई पदार्थोनो
कर्ता थतो नथी. आवा ज्ञानीने माता, पिता, जन्म, मरण, पुण्य वगेरेनो संबंध परमार्थे लागु पडतो नथी. ते ज्ञानी
पोताना स्वभावमां कृतकृत्य होय छे.
संसारमां अज्ञानी पर पदार्थना अहंकार करे छे, अज्ञानीने मरतां पण तेनां काम पूरां थतां नथी, पण ते
लोलूपताथी ज मरे छे. पोताने साचुं आत्मजीवन जीवतां न आवडयुं तेथी बीजो अवतार करवा जाय छे. धर्मात्मानां
कार्यो कदी अधूरां रहेतां ज नथी, तेओ जाणे छे के मारो स्वभाव मारामां छे, परनां कार्योनो हुं कर्ता नथी. ज्यारे
रामचंद्रजी सीताने वनमां मोकले छे त्यारे सीताजी तेमने कहेवडावे छे के जेम लोकनिंदाना भयथी मने छोडी दीधी
तेम लोकनिंदाना भयथी आत्माना धर्मने कदी न छोडशो. परंतु आ वखते पण अंतरमां भान छे के–पति धर्ममां
टकी रहे एवी जे शुभरागनी लागणी छे ते मारूं कर्तव्य नथी, पति पण मारे नथी, हुं तो आत्मा छुं. आठ वर्षनी
धर्मात्मा बालिकाने पण आवी मान्यता होय छे. अज्ञानी एम माने छे के मारी अवस्था वृद्ध थई–हुं वृद्ध थयो; एम
मानीने ते शरीरनी अवस्थानुं ग्रहण करे छे; धर्मात्मा सदाय आत्मस्वभावना भावने ज ग्रहे छे.
रागरहित परिपूर्ण ज्ञान स्वभावनी रुचि थतां ज्ञानीने अन्य कोई कार्यनी रुचि नथी; परथी
भिन्नपणानुं भान थयुं अने परनुं अकर्तापणुं मान्युं एटले परथी अत्यंत उदासीन वर्ते छे. जेम मडदानी ठांठडीने
हार वगेरेथी गमे तेटली शणगारवामां आवे पण मडदांने शुं? तेने कांई हर्ष–शोक नथी, तेम संसारना कार्यो प्रत्ये
ज्ञानी मडदांनी माफक अत्यंत उदासीन छे. मारी शांति, मारी शोभा, मारो आनंद मारा अंतर आत्मामां छे,
पुण्यमां नथी. जेने आवुं भान छे ते धर्मात्मा छे, अने एवा धर्मात्मा कदी जन्मपणे उपजता नथी केमके जन्म–
मरण तो विकारनुं फळ छे, धर्मात्मा विकारना कर्ता नथी, अने तेना फळना स्वामी पण नथी. भगवान महावीरने
प्रथमथी ज एवुं भान हतुं, तेओ पोताना निर्मळ पर्यायरूपे ज परिणमता हता, तेने ज ग्रहता हता अने ते रूपे
ज उपजता हता, परंतु जड शरीरनी अवस्थापणे तेओ परिणमता न हता, तेने ग्रहता न हता अने ते रूपे
उपजता न हता. जे जे आत्माओ आवुं स्वभावनुं भान करे ते ते बधा आत्माओ ज्यां होय त्यां आवा ज होय
छे, गमे ते क्षेत्रे होय पण पोताना आत्मानी निर्मळदशारूपे ज रहे छे. आ एकला महावीरना ज आत्मानी वात
नथी पण बधा आत्मानुं स्वरूप आवुं ज छे. पोते पोताना आत्मस्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र वडे पूर्ण दशा
प्रगट करीने भगवान थई शके छे.
जीवननां छेल्ला श्वास चालता होय एवा वखते अज्ञानीने एम भणकार लागे छे के–अरेरे! हमणां आ
पैसा–स्त्री–घर–शरीर बधुंय छूटी जशे, तेनी द्रष्टि ज पराधीन होवाथी संयोगनी रुचिथी असमाधिभावे मरीने
संसारमां रखडे छे; तेवा समये ज्ञानी धर्मात्माने एवी आत्मभावना जागे छे के–हवे हुं अल्पकाळमां परमात्मा
थईश. आ परमात्मदशा माटेनां छेल्ला श्वास छे–अल्पकाळमां आ अपूर्णता, विकार अने परनो संयोग छूटी जशे
अने हुं मारी पूर्ण परमात्मदशा पामीश. मारी निर्मळ परिणति अंतरमां समावानी छे, आ बहारना कोई भावो
साथे मारे संबंध नथी. आ रीते धर्मात्मा जीवो आत्मस्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान अने स्थिरता करीने संसारथी पार
थईने जन्म–मरण रहित परमात्मदशा प्रगटावे छे...ते ज मंगळ छे.
*