Atmadharma magazine - Ank 043
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः १२६ः आत्मधर्मः ४३
९४. प्र.–रागादि भावो आत्मानो स्वभाव नथी तो
पछी क्यांथी थया? निमित्ते कराव्या के नहि?
उ.–रागादि भावो आत्मानो स्वभाव नथी ए
खरुं, पण निमित्ते ते कराव्या नथी. जीवनी पर्यायनी
योग्यताथी ते थाय छे, तेनुं कारण त्रिकाळी स्वभाव नथी
तेम ज परद्रव्य पण नथी. वर्तमान पर्याय पोते पोतानी
योग्यताथी पर लक्षे रागादिरूपे परिणमे छे.
९प. प्र.–धर्मना उपदेशक अने धर्मना विरोधक कयारथी
थया?
उ.–बंने अनादिथी छे.
९६.–प्र.–शब्द ब्रह्म एटले शुं? तेनी उत्पत्तिनुं मूळ कारण
कोण छे?
उ.–पर ब्रह्मस्वरूप आत्माने जे बतावे ते
शब्दब्रह्म छे, अने सर्व पदार्थोना समूहने साक्षात्
जाणनार सर्वज्ञ अरिहंतदेव तेनी उत्पत्तिनुं कारण छे,
अर्थात् अरिहंतभगवाननी दिव्यवाणीने शब्दब्रह्म
कहेवाय छे.
९७. प्र.–केवळज्ञान थया पछी दिव्यवाणी छूटे ज–एवा
कोण?
उ.–तीर्थंकरोने केवळज्ञान थया पछी दिव्यवाणी
छूटे ज छे.
९८. प्र.–द्रव्यथी अने भावथी केवळी–भगवानना
निकटवर्ती कोण छे?
उ.–प्रभुनी समीप रहीने तेमनी वाणीनुं सीधुं
श्रवण करनारा जीवो द्रव्यथी केवळी भगवानना
निकटवर्ती छे अने जेओ आत्माना सम्यग्दर्शन–
ज्ञानपूर्वक स्थिरता वडे केवळज्ञान लेवानी तैयारीवाळा
छे तेओ भावथी केवळी भगवानना निकटवर्ती छे.
९९. प्र.–आ आत्मा सर्वज्ञ भगवाने कह्यो छे तेवो ज छे
तेम पोताने क्यारे साबित थाय?
उ.–सत्समागम वडे आत्मानुं स्वरूप जाणीने
तेना विशेष अभ्यासवडे ज्यारे स्वानुभव करे त्यारे
जेवो सर्वज्ञ भगवाने कह्यो तेवो ज आत्मा पोतानी
प्रतीतमां आवे छे.
सर्वज्ञ भगवाने जेवो आत्मा कह्यो छे तेवो
आत्मानो अनुभव करवा माटे प्रथम तो सर्वज्ञदेवे कहेला
आगमने अने साचा गुरुने यथार्थपणे ओळखवां
जोईए.
१००. प्र.–आ समयसारशास्त्र सिवायना कुंदकुंदाचार्यदेवे
रचेलां अन्य कया कया शास्त्रो हाल विद्यमान छे?
उ.–श्री प्रवचनसार, श्री नियमसार, श्री अष्टप्राभृत,
श्री पंचास्तिकाय श्री रयणसार अने श्री
बारस्सअणुप्रेक्षा–ए शास्त्रो विद्यमान छे.
१०१. प्र.–आचार्यदेवे आ शास्त्रो कोनां हित माटे रच्यां?
उ.–संसारी निकट भव्य जीवो शुद्धात्मस्वरूपनी प्राप्तिवडे
पोतानुं हित करे ते माटे शास्त्रो रच्यां छे.
१०२. प्र.–अरिहंत थवा योग्य जीव कोण छे?
उ.–जे जीवोए अरिहंतने द्रव्यगुण–पर्याय वडे
जाण्या छे अने तेमना समान पोताना शुद्ध आत्माने
जाण्यो छे–एवा सम्यग्द्रष्टि जीवो अरिहंत थवाने लायक
छे. जेमने सम्यग्दर्शन प्रगटयुं होय एवा जीवो अल्पकाळे
केवळज्ञान प्रगट करी अरिहंतदशा पामे छे.
१०३. प्र.–अरिहंत अने तीर्थंकर तेमां शुं फेर?
उ.–अरिहंत् पद ते पवित्रतानी अपेक्षाए छे,
अने तीर्थंकर पद ते पुण्यनी अपेक्षाए छे. मुक्त थनार
दरेक जीवने अरिहंत पद (तेरमुं गुणस्थान) तो अवश्य
आवे ज, पण तीर्थंकरपद बधाने न आवे. ते तो कोईक
ज जीवने आवे. अरिहंत अने तीर्थंकर ए बंने पवित्रता
अपेक्षाए सरखां छे, पुण्य अपेक्षाए फेर छे.
१०४–प्र.–जैनधर्म शुं छे?
उ.–जैनधर्म ते रागद्वेष अज्ञानने जीतनार
आत्मस्वभाव छे. वाडो के वेश नथी. तेथी जेटले अंशे
राग–द्वेष–अज्ञाननो नाश करे तेटले अंशे जिनपणुं छे.
जिनपणानी शरूआत सम्यग्दर्शनथी ज थाय छे.
१०प–प्र.–ब्रह्मा, विष्णु अने महेश ए त्रण शुं छे?
उ.–ए त्रणे आत्माना ज विशेषणो छे.
आत्माथी जुदा कोई ब्रह्मा, विष्णु के महेश नथी, ब्रह्मा,
विष्णु ने महेशनुं स्वरूप नीचे प्रमाणे छे.
ब्रह्मा=सर्जनहार; पोतानी स्वाधीन सुखमय
अवस्थाने उत्पन्न करनार. आत्मा दरेक समये नवी
नवी पर्यायने उत्पन्न करे छे तेथी ते स्व
स्वभावपरिणमनरूप सृष्टिनो कर्ता छे, ए द्रष्टिए दरेक
जीव पोते ब्रह्मा छे.
विष्णु=राग–द्वेष मोहरूप विकार रहित पोताना
शुद्धस्वभावने टकावे अथवा विभावथी पोताने बचावे,
निजगुणनी रक्षा करे तो दरेक समये पोताना अनंतगुण
सामर्थ्यनी सत्ताथी निज ध्रुव शक्तिने सळंग टकावी
राखनार होवाथी दरेक आत्मा स्वभावे विष्णु छे.
महेश=राग–द्वेष अज्ञाननो ध्वंस करनार;
आत्मा दरेक समये पोतानी पूर्ववर्ती पर्यायनो नाश करे
छे तेथी ते महेश छे.
आ रीते आत्मा पोते ज पोतानी नवी पर्याय रूप
सृष्टिनो सरजनहार, गुण–पर्यायने टकावी राखनार
अने जुनी पर्यायनो नाश करनार होवाथी ते पोते ज
ब्रह्मा, विष्णु अने महेश छे.