९४. प्र.–रागादि भावो आत्मानो स्वभाव नथी तो
पछी क्यांथी थया? निमित्ते कराव्या के नहि?
योग्यताथी ते थाय छे, तेनुं कारण त्रिकाळी स्वभाव नथी
तेम ज परद्रव्य पण नथी. वर्तमान पर्याय पोते पोतानी
योग्यताथी पर लक्षे रागादिरूपे परिणमे छे.
९प. प्र.–धर्मना उपदेशक अने धर्मना विरोधक कयारथी
थया?
कोण छे?
जाणनार सर्वज्ञ अरिहंतदेव तेनी उत्पत्तिनुं कारण छे,
अर्थात् अरिहंतभगवाननी दिव्यवाणीने शब्दब्रह्म
कहेवाय छे.
९७. प्र.–केवळज्ञान थया पछी दिव्यवाणी छूटे ज–एवा
कोण?
९८. प्र.–द्रव्यथी अने भावथी केवळी–भगवानना
निकटवर्ती कोण छे?
निकटवर्ती छे अने जेओ आत्माना सम्यग्दर्शन–
ज्ञानपूर्वक स्थिरता वडे केवळज्ञान लेवानी तैयारीवाळा
छे तेओ भावथी केवळी भगवानना निकटवर्ती छे.
९९. प्र.–आ आत्मा सर्वज्ञ भगवाने कह्यो छे तेवो ज छे
तेम पोताने क्यारे साबित थाय?
जेवो सर्वज्ञ भगवाने कह्यो तेवो ज आत्मा पोतानी
प्रतीतमां आवे छे.
आगमने अने साचा गुरुने यथार्थपणे ओळखवां
जोईए.
१००. प्र.–आ समयसारशास्त्र सिवायना कुंदकुंदाचार्यदेवे
रचेलां अन्य कया कया शास्त्रो हाल विद्यमान छे?
उ.–श्री प्रवचनसार, श्री नियमसार, श्री अष्टप्राभृत,
उ.–संसारी निकट भव्य जीवो शुद्धात्मस्वरूपनी प्राप्तिवडे
१०२. प्र.–अरिहंत थवा योग्य जीव कोण छे?
जाण्यो छे–एवा सम्यग्द्रष्टि जीवो अरिहंत थवाने लायक
छे. जेमने सम्यग्दर्शन प्रगटयुं होय एवा जीवो अल्पकाळे
१०३. प्र.–अरिहंत अने तीर्थंकर तेमां शुं फेर?
दरेक जीवने अरिहंत पद (तेरमुं गुणस्थान) तो अवश्य
आवे ज, पण तीर्थंकरपद बधाने न आवे. ते तो कोईक
ज जीवने आवे. अरिहंत अने तीर्थंकर ए बंने पवित्रता
अपेक्षाए सरखां छे, पुण्य अपेक्षाए फेर छे.
१०४–प्र.–जैनधर्म शुं छे?
राग–द्वेष–अज्ञाननो नाश करे तेटले अंशे जिनपणुं छे.
जिनपणानी शरूआत सम्यग्दर्शनथी ज थाय छे.
१०प–प्र.–ब्रह्मा, विष्णु अने महेश ए त्रण शुं छे?
नवी पर्यायने उत्पन्न करे छे तेथी ते स्व
स्वभावपरिणमनरूप सृष्टिनो कर्ता छे, ए द्रष्टिए दरेक
जीव पोते ब्रह्मा छे.
निजगुणनी रक्षा करे तो दरेक समये पोताना अनंतगुण
सामर्थ्यनी सत्ताथी निज ध्रुव शक्तिने सळंग टकावी
छे तेथी ते महेश छे.
आ रीते आत्मा पोते ज पोतानी नवी पर्याय रूप