Atmadharma magazine - Ank 044
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः १६०ः आत्मधर्मः ४४
पहेलां अज्ञानदशा वखते जीव निमित्तनुं जोर मानी रह्यो हतो, अने हवे पोताना स्वभावनी यथार्थ प्रतीति थतां
तेणे उपादान निमित्त बंनेने स्वतंत्र जाणी लीधा अने पोतानी स्वतंत्र शक्तिने संभाळीने स्वयं सिद्धदशा प्रगट
करी. ‘निमित्त हारी गयुं’ एनो अर्थ ए छे के अज्ञानदशामां निमित्त ऊपर ज द्रष्टि हती; ज्ञानदशा थतां अज्ञाननो
नाश थयो अने निमित्तद्रष्टि टळी गई, तेथी ‘निमित्त हार्युं’ एम कह्युं छे. ४०.
आ रीते निमित्ताधीन द्रष्टिनो नाश थतां उपादानने पोतामां शुं लाभ थयो ते हवे कहे छे–
उपादान जीत्यो तहां, निजबल कर परकाश;
सुख अनंत ध्रुव भोगवे अंत न बरन्यो तास. ४१.
अर्थः– आ रीते पोताना ढाळनो प्रकाश करीने उपादान जीत्युं, (ते उपादान हवे) ध्रुवपणे अनंत सुख
भोगवे छे, तेनो अंत कह्यो नथी.
आत्मानो स्वभाव शुद्ध, ध्रुव, अविनाशी छे ते स्वभावना जोरे उपादाने पोताना केवळज्ञाननो प्रकाश कर्यो
अने हवे ते स्वाधीनपणे अनंत ध्रुव सुख भोगवे छे. पहेलां निमित्ताधीन द्रष्टिथी पराधीनपणे (–पर लक्ष करीने)
दुःख भोगवतो, हवे स्वभावने ओळखीने उपादान द्रष्टिथी स्वाधीनपणे सिद्धदशामां सुखनो अनुभव अनंतकाळ
कर्या करे छे; सिद्धदशा थया पछी समये समये स्वभावमांथी ज आनंदनो भोगवटो थया ज करे छे. पोताना सुख
माटे जीवने शरीर पैसा वगेरे परद्रव्यनी जरूर नथी, केमके ते कांई न होवा छतां सिद्ध भगवान स्वाधीनपणे संपूर्ण
सुखी छे.
जुओ आमां कह्युं छे के उपादान पोताना बळनो प्रकाश करीने सुख पाम्युं छे. पोतामां जे शक्ति हती तेनी
ओळखाणद्वारा ते बळने प्रगट करीने ज सुख पाम्युं छे, परंतु कोई निमित्तनी मददथी सुख पाम्युं नथी. ४१.
हवे तत्त्वस्वरूप कहे छे, तेमां बहु सरस न्याय छे–
उपादान अरु निमित्त ये सब जीवन पै वीर;
जो निज शक्ति संभार ही सो पहुंचे भवतीर. ४२.
अर्थः– उपादान अने निमित्त ए बधा जीवोने छे, पण जे वीर पोतानी उपादानशक्तिने संभाळे छे ते
भवनो पार पामे छे.
बधा आत्माओ भगवान छे अने अनंतगुणवाळा छे, बधा आत्मानी उपादाननी शक्ति सरखी छे अने
बधा आत्माने बहारना निमित्त पण छे; आ रीते उपादान अने निमित्त ए बंने त्रिकाळ बधा आत्माने छे एवो
कोई आत्मा नथी के जेनामां उपादान सामर्थ्यनी पूर्णता न होय, तेमज एवो कोई आत्मा नथी के जेने निमित्त
नथी. जेवुं कार्य जीव पोते करे ते वखते तेने अनुकूळ निमित्त होय ज छे, निमित्त होय छे खरुं, पण उपादानना
कार्यमां ते कांई पण करतुं नथी. उपादान अने निमित्त बंने अनादिअनंत छे. जे पोताना उपादाननी जागृति करीने
धर्म समजे तेने सत् निमित्त होय छे अने जे जीव धर्म न समजे तेने कर्म वगेरे निमित्त कहेवाय छे, सिद्धने पण
परिणमन वगेरेमां काळ, आकाश वगेरेनुं निमित्त छे, अने ज्ञानमां ज्ञेय तरीके आखुं जगत् निमित्त छे अथवा तो
स्वमां नास्तिपणे आखुं जगत् निमित्त छे. कोई पण ठेकाणे एकलुं उपादान न ज होय. केमके ज्ञान स्व परने
जाणवाना सामर्थ्यवाळुं छे तेथी ते उपादान अने निमित्त बंनेने जाणे छे;
जो उपादान निमित्त बंनेने जाणे नहि तो
ज्ञान खोटुं छे। छतां ए खास ध्यानमां राखवुं के उपादान निमित्त बंने स्वतंत्र पदार्थो छे, एक बीजानुं कंइ ज
करता नथी
. उपादान निमित्त बंने वस्तुओ हयातीरूप छे. जे जीव पोतानी उपादान शक्तिने संभाळे छे तेने ज
सम्यग्दर्शनादि गुणो प्रगटीने मोक्ष थाय छे; परंतु जे जीव उपादानने भूलीने निमित्त तरफ लक्ष करे छे ते, पोतानी
शक्तिने भूलीने परमां भीख मागनार चोराशीनो भीखारी छे, परलक्षे ते भीखारापणुं टळे नहि अने जीव सुखी
थई शके नहि. जो पोताना स्वभावनी स्वाधीनताने प्रतीतमां ल्ये तो सर्व पर द्रव्योनी ओशियाळ टळी जाय अने
स्वभावनो स्वाधीन आनंद प्रगटे.
ज्यारे स्वलक्ष करीने उपादानशक्तिनी संभाळ करी त्यारे ते शक्ति प्रगटी एटले सुख थयुं. उपादान शक्ति
तो त्रिकाळ छे ते मुक्तिनुं कारण नथी परंतु उपादान शक्तिनी संभाळ ते मुक्तिनुं कारण छे. उपादानशक्तिनी
संभाळ ते ज दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग छे. पहेलां उपादानस्वभावनी श्रद्धा करी के हुं स्वयं अनंत गुण
शक्तिनो पिंड छुं, परथी छूटो छुं, मारे परमांथी कांई ज लेवुं नथी पण मारा स्वभावमांथी ज प्रगटे छे. आवी प्रतीत
अने ज्ञान करीने पछी ते स्वभावमां स्थिरता करवी ते उपादानशक्तिनी संभाळ छे अने ते ज मोक्षनुं कारण छे.