
पहेलां अज्ञानदशा वखते जीव निमित्तनुं जोर मानी रह्यो हतो, अने हवे पोताना स्वभावनी यथार्थ प्रतीति थतां
तेणे उपादान निमित्त बंनेने स्वतंत्र जाणी लीधा अने पोतानी स्वतंत्र शक्तिने संभाळीने स्वयं सिद्धदशा प्रगट
करी. ‘निमित्त हारी गयुं’ एनो अर्थ ए छे के अज्ञानदशामां निमित्त ऊपर ज द्रष्टि हती; ज्ञानदशा थतां अज्ञाननो
नाश थयो अने निमित्तद्रष्टि टळी गई, तेथी ‘निमित्त हार्युं’ एम कह्युं छे. ४०.
सुख अनंत ध्रुव भोगवे अंत न बरन्यो तास. ४१.
दुःख भोगवतो, हवे स्वभावने ओळखीने उपादान द्रष्टिथी स्वाधीनपणे सिद्धदशामां सुखनो अनुभव अनंतकाळ
कर्या करे छे; सिद्धदशा थया पछी समये समये स्वभावमांथी ज आनंदनो भोगवटो थया ज करे छे. पोताना सुख
माटे जीवने शरीर पैसा वगेरे परद्रव्यनी जरूर नथी, केमके ते कांई न होवा छतां सिद्ध भगवान स्वाधीनपणे संपूर्ण
सुखी छे.
कोई आत्मा नथी के जेनामां उपादान सामर्थ्यनी पूर्णता न होय, तेमज एवो कोई आत्मा नथी के जेने निमित्त
नथी. जेवुं कार्य जीव पोते करे ते वखते तेने अनुकूळ निमित्त होय ज छे, निमित्त होय छे खरुं, पण उपादानना
कार्यमां ते कांई पण करतुं नथी. उपादान अने निमित्त बंने अनादिअनंत छे. जे पोताना उपादाननी जागृति करीने
धर्म समजे तेने सत् निमित्त होय छे अने जे जीव धर्म न समजे तेने कर्म वगेरे निमित्त कहेवाय छे, सिद्धने पण
परिणमन वगेरेमां काळ, आकाश वगेरेनुं निमित्त छे, अने ज्ञानमां ज्ञेय तरीके आखुं जगत् निमित्त छे अथवा तो
स्वमां नास्तिपणे आखुं जगत् निमित्त छे. कोई पण ठेकाणे एकलुं उपादान न ज होय. केमके ज्ञान स्व परने
जाणवाना सामर्थ्यवाळुं छे तेथी ते उपादान अने निमित्त बंनेने जाणे छे;
करता नथी
शक्तिने भूलीने परमां भीख मागनार चोराशीनो भीखारी छे, परलक्षे ते भीखारापणुं टळे नहि अने जीव सुखी
थई शके नहि. जो पोताना स्वभावनी स्वाधीनताने प्रतीतमां ल्ये तो सर्व पर द्रव्योनी ओशियाळ टळी जाय अने
स्वभावनो स्वाधीन आनंद प्रगटे.
संभाळ ते ज दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग छे. पहेलां उपादानस्वभावनी श्रद्धा करी के हुं स्वयं अनंत गुण
शक्तिनो पिंड छुं, परथी छूटो छुं, मारे परमांथी कांई ज लेवुं नथी पण मारा स्वभावमांथी ज प्रगटे छे. आवी प्रतीत
अने ज्ञान करीने पछी ते स्वभावमां स्थिरता करवी ते उपादानशक्तिनी संभाळ छे अने ते ज मोक्षनुं कारण छे.