
निमित्त कारण कहेवाय छे. पर वस्तुने ‘निमित्त’ कहीने तेनुं ज्ञान कराव्युं छे, केमके ज्ञाननुं सामर्थ्य स्वपरने
जाणवानुं छे; परंतु परद्रव्यनुं कांई पण जोर बताववा तेने निमित्त कह्युं नथी. ‘जीवे ज्ञानावरणीय कर्म बांध्युं’ एम
कहेवाय छे त्यां खरेखर एम बताववानो आशय छे के जीवे पोतानी पर्यायमां ज्ञाननी हीनता करी. परंतु ‘जीव जड
परमाणुओनो कर्ता छे’ एम बताववानो आशय नथी.
उपादान होवा छतां पूर्वे कदी शुद्धकार्य प्रगट न कर्युं अने अत्यारे ज प्रगट कर्युं तेनुं शुं कारण?
छे तेम शुद्ध के अशुद्ध पर्याय पण अकारणीय छे, शुद्ध के अशुद्ध पर्याय ते ते समये स्वयं पोते करे छे, तेमां पूर्व–
पछीनी दशा के कोई पर द्रव्य कारण नथी. पर्यायनुं कारण पर्याय पोते ज छे, पर्याय पोतानी ताकातथी जे समये
जागृत थाय ते समये जागृत थई शके छे. जे पर्यायमां जेटलुं स्वभाव तरफनुं जोर आपे (अर्थात् जेटले अंशे
स्वसमयरूप परिणमे) ते पर्यायमां तेटली शुद्धता प्रगटे. कारण–कार्य एक ज समये अभेद छे. आमां तो पर्याये
पर्याये पुरुषार्थनी स्वतंत्रता बतावी छे. पहेली पर्याय मिथ्यात्वरूप होवा छतां बीजा समये स्वरूपनुं भान करी
सम्यक्त्वरूप पर्याय प्रगटी शके छे; त्यां कोई पूछे के सम्यक्त्व पहेली पर्यायमां न होतुं अने बीजी पर्यायमां क्यांथी
आव्युं? तेनो उत्तर ए छे के–ते समयनी पर्यायनुं स्वतंत्र सामर्थ्य प्रगटवाथी सम्यक्त्व थयुं छे. पूर्वनी पर्याय ते
नवी पर्यायनी कर्ता नथी, परंतु नवी प्रगटती अवस्था पोते ज पोताना पुरुषार्थनी योग्यताथी सम्यक्त्वरूप थइ छे.
जे समये पुरुषार्थ करे ते समये सम्यग्दर्शन थाय छे, तेमां कोई कारण नथी, पर्यायनो पुरुषार्थ पोते ज सम्यग्दर्शननुं
कारण छे, अने ते पर्याय द्रव्यमांथी प्रगटती होवाथी अभेदविवक्षाए द्रव्यस्वभाव ज सम्यग्दर्शननुं कारण छे. ४२.
वचन अगोचर वस्तु है कहिबो वचन बताय? ४३.
वचनथी केम वर्णवी शकाय? वचनथी तेनो महिमा पार पडे तेम नथी, ज्ञान वडे ज तेनो यथार्थ महिमा जणाय छे;
स्वभावनो महिमा घणो छे, वचनथी पेले पार छे छतां तेने वचन वडे कहेवो ते पूरो कई रीते कहेवाय? माटे हे,
भाई! तुं तारा ज्ञान सामर्थ्य वडे तारा स्वभावनो पार पाम. एक ज समयमां अनादि संसारनो नाश करी परम
पवित्र परमात्मदशा जेना जोरे प्रगट थाय एवा भगवान आत्माना स्वभावना महिमाने अमे क्यां सुधी कहीए?
हे भव्य जीवो! तमे जाते स्वभावने समजो!! ४३.