
आवी वस्तुनी स्वतंत्रता समजीने प्रमोद करशे, परंतु जेने वस्तुनी स्वतंत्रतानुं भान नथी अने आत्माने जे
पराधीन माने छे एवा मूर्ख अज्ञानीने तो आ वात बकवादरूप लागशे, परंतु तेने वस्तुना स्वतंत्र स्वभावनो
महिमा आवशे नहि. ज्ञानीओ वस्तुने भिन्न भिन्न स्वभावपणे जोनारा छे परंतु अज्ञानी संयोग बुद्धिथी जोनारो
छे एटले ते संयोगने लीधे कार्य थाय एम मिथ्या माने छे; वस्तु परथी भिन्न असंयोगी छे अने तेनुं कार्य पण
स्वतंत्र पोतानी शक्तिथी ज थाय छे–ए तो ज्ञानी ज यथार्थपणे जाणे छे. अज्ञानीने तो एम लागशे के आ तो कोनी
वात मांडी छे? शुं आत्माने कोई मदद न करी शके? ...पण भाई रे! आ वात तारा ज स्वरूपनी छे. पोताना
स्वरूपना भान वगर अनादिथी दुःखमां रखडी रह्यो छो, तारुं ते रखडवुं केम टळे अने साचुं सुख प्रगटीने मुक्ति
केम थाय ते बतावाय छे. संयोग बुद्धिथी पर पदार्थनी मदद मानीने तो तुं अनादिथी रखडी रह्यो छो, हवे तने तारुं
परथी भिन्न स्वाधीन स्वरूप बतावीने ते ऊंधी मान्यता छोडवानो ज्ञानीओ उपदेश आपे छे.
स्वाधीनता न समजाय तेने आ बकवादरूप लागशे. जेने जेनो महिमा आवे तेनी वात ते होंशथी सांभळे, परंतु
जेनो महिमा न आवे तेनी वात रुचे नहि. आ बाबतमां ओडनुं द्रष्टांत–
मोटा अमलदार हता. ओड लोको तो आखो दिवस काम करवाथी थाकी गया होय एटले, ज्यारे बारोट तेमना
बापदादानी वात करतो होय त्यारे झोकां खाय, अने बारोटने कहे के “हा बापा, लवती गला.” ओडलोको
सांभळवानुं लक्ष न आपे त्यारे बारोट कहे के–अरे, सांभळो तो खरा, आ तमारा बापदादानी मोटाईनी वात करुं
छुं. त्यारे पण ओड कहे के ‘लवती गला.’ एटले के तमे तमारे बोल्ये राखो; त्यारे बारोट कहे के अरे भाई! आ
तमने संभळाववा माटे कहेवाय छे, मने तो बधी खबर छे!
स्वभावनो महिमा सांभळवानो उल्लास आवतो नथी, एटले तेने तो उपादान शुं, निमित्त शुं, वस्तुनी स्वतंत्रता
केवी छे–ए बधुं बकवादरूप लागे छे, तेओ आत्मानी दरकार वगरना ओड जेवा संसारना मजुर छे. ज्ञानीओ कहे
छे के हे भाई! तारो स्वभाव शुं, विकार शुं अने ते विकार केम टळे ए तने समजावीए छीए, माटे तुं तारा
स्वभावनो महिमा लावीने, विवेक करीने समज, तो तारुं संसार परिभ्रमणनुं दुःख टळे अने तने शांति थाय. आ
तारा ज सुख माटे कहेवाय छे अने तारा ज स्वभावनो महिमा बतावाय छे माटे तुं बराबर निर्णय करीने समज.
जे जीव जिज्ञासु छे तेने तो श्रीगुरुनी आवी वात सांभळतां जरूर स्वभावनो महिमा आवे छे, अने ते बराबर
निर्णय करीने जरूर समजे छे.
थाय नहि, अने सम्यग्दर्शन वगर जीवने धर्म थाय नहि. ४४