माटे नथी पण निश्चय बताववा माटे छे व्यवहारनय परमार्थनो कहेनार छे (परमार्थनुं लक्ष कराववा माटे
व्यवहारनो उपदेश छे.)
कर्मनो संबंध न ज होय तो आ राग–द्वेष अने संसार कोना? सम्यग्दर्शन पछी पण व्यवहारनुं अवलंबन
अवस्थानी नबळाईना कारणे आवे छे खरूं तेने ज्ञानीओ जेम छे तेम जाणे छे, जो व्यवहारनुं अवलंबन सर्वथा न
आवतुं होय तो वीतरागता प्रगट होय.
समजवामां पहेलां सत्समागम, श्रवण, मनन वगेरे शुभभावरूप व्यवहार आव्या वगर रहे नहि. छतां ते शुभराग
ज्ञाननुं कारण नथी; परंतु कोइ शुष्कज्ञानी–निश्चयाभासी पहेली भूमिकामां ते शुभभावमां नहि जोडाय तो, हजी
वीतराग तो थयो नथी तेथी, अशुभमां जोडाशे अने हलकी गतिमां रखडशे.
अभाव ठरशे अने तेथी बंधनो ज अभाव ठरशे.”
साथे तेने निमित्त–नैमित्तिक संबंध रूप व्यवहार छे तथा पोते पण हजी वीतराग नथी थयो एटले अवस्थामां राग–
द्वेष छे ते व्यवहार छे तेथी सामा जीवने हणवानो विकल्प आवे छे. सामाने हणवानो विकल्प ऊठे छे ते तारो
व्यवहार छे, ते विकल्प पण क्यारे ऊठे छे? सामा जीवने शरीर उपर ममता भाव छे एटले के तेने शरीर साथे
निमित्त–नैमित्तिक संबंध वर्तमानमां छे ते तेनो व्यवहार छे–ए व्यवहारने जाण्यो एटले सामाने मारवानो भाव
तने थयो. निश्चयमां हिंसानो विकल्प होई शके नहि, केमके निश्चयथी कोई जीव मरतो नथी, जीव अने शरीर जुदां ज
छे अने जडने मारवामां हिंसा नथी एटले निश्चयमां तो हिंसानो विकल्प ज न होय. हवे जो व्यवहार न ज होत तो
सामाने मारवानो विकल्प न ज आवत. मारवानो जे विकल्प आवे छे ते ज व्यवहार छे. पोताने अने सामाने
बंनेने व्यवहार छे त्यारे ज विकल्प ऊठे छे. जो पोते वीतराग ज होत तो मारवानो विकल्प न होत, तथा जो सामो
जीव वीतराग होत तो पण तेने मारवानो विकल्प तने न आवत. “सिद्धने मारी नाखुं” एवो भाव कोईने आवे
नहि केमके तेओ वीतराग छे–तेमने व्यवहारनुं अवलंबन रह्युं नथी. तथा ते ज कारणे सिद्ध भगवानने “हुं अमुक
जीवने मारूं” एवो कोई विकल्प नथी. व्यवहारना अवलंबन वगर विकल्प ऊठे नहि शरीर वगेरेनी क्रिया आत्मा
करी शके एवी मान्यताने लोको व्यवहार कहे छे, परंतु ते व्यवहार नथी. ए मान्यता तो मिथ्यात्व छे.
ज रहेतो नथी.
तरफनो विकल्प होई शके नहि; परंतु अवस्था छे, व्यवहार छे, ए व्यवहारने जाणे छे त्यारे ‘आ खवाय अने आ
न खवाय” एम अवस्थानो विवेक करे छे, ते व्यवहार छे.