Atmadharma magazine - Ank 044
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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जेठः२४७३ः १प१ः
निमित्त
(१)
–कयुं ज्ञान निमित्तने यथार्थ जाणे?–
ज्यारे ज्ञान स्व तरफ वळे छे त्यारे ते सम्यग्ज्ञान थाय छे, अने सम्यग्ज्ञान स्व–परने यथार्थपणे जाणे छे;
तेथी जे ज्ञाने स्वनो निर्णय कर्यो छे ते ज्ञान ‘पर निमित्त छे’ एनो स्वीकार यथार्थ करे छे. स्वना निर्णय वगर
परनो निर्णय यथार्थ थई शके नहि. जे ज्ञान स्वभाव तरफ वळ्‌युं ते ज्ञान परनो पण यथार्थ विवेक करे छे.
ज्ञान परना लक्षथी खसीने ज्यारे स्वभाव तरफ ढळे त्यारे ज ते स्व–परना भेदने जाणे छे. त्यां अमुक
विकल्प छे–राग छे, पण सम्यग्ज्ञान तेनुं नाम के जे रागने जाणे खरूं पण रागने पोतानो न स्वीकारे अने रागनो
निषेध करीने रागरहित स्वभाव तरफ ज ढळे. एवा ज्ञानमां ज रागने अने निमित्तने जेम छे तेम यथार्थ जाणवानी
ताकात छे. परंतु जे ज्ञान रागरहित स्वभाव तरफ ढळ्‌युं ज नथी अने रागमां ज अटकी गयुं छे ते ज्ञान स्व–परने
यथार्थ जाणवानुं कार्य करी शकशे नहि.
अज्ञानीनी द्रष्टि ज पराधीन होवाथी, स्वभावनो निर्णय कर्या वगर ते परने जाणवा मागे छे. ‘कोई कार्य
थाय त्यारे पर निमित्त तो छे ने, सम्यग्दर्शन थाय तेमां सद्गुरु वगेरे निमित्त तो छे ने!–इत्यादि प्रकारे ते परना
संयोगने जुए छे; परंतु सम्यग्दर्शन रूपे तो ते समयनी पर्याय पोते परथी निरपेक्ष स्वतंत्रपणे ज परिणमी छे–एम
स्वाधीनद्रष्टि उघडया वगर निमित्ताश्रितद्रष्टि टळे नहि.
(२)
उपादाननी लायकात अने निमित्तनी लायकात
वस्तुमां ज्यारे कार्य थाय छे त्यारे पर वस्तुओ तो बधी जेम छे तेम छे, तेमांथी कोई पण पर वस्तु
उपादानना कार्यमां कांई मदद करती नथी के प्रभाव पाडती नथी. तेमांथी कई पर वस्तुमां निमित्तपणानो आरोप
करवो ते तो कर्ताना परिणाम उपर आधार राखे छे अर्थात् कर्ता पोते जेवा कार्यरूपे परिणमे ते अनुसार पर
वस्तुमां आरोप करीने तेने निमित्त कहेवाय छे. ते पर वस्तुमां पण ते प्रकारनी (निमित्तपणानी) स्वतंत्र लायकात
छे. कोईने प्रश्न ऊठे के–कोई पर वस्तु तो कार्यमां कांई करती नथी, तो पछी ते वस्तुओमांथी एकने निमित्त कहेवुं
अने बीजीने न कहेवुं तेनुं शुं कारण? तेनो उत्तर ए छे के–जेम उपादान वस्तुमां स्वयं कार्यरूपे परिणमवानी
योग्यता छे तेम ते पर वस्तुमां पण एवी ज निमित्तपणानी योग्यता छे के जेथी तेने ज निमित्त कहेवाय. उपादान
अने निमित्त बंनेनी स्वतंत्र लायकात छे.
पर द्रव्यने निमित्त कहेवुं ते तो आरोप छे, परंतु पहेलां तो दरेक द्रव्य, दरेक गुण अने दरेक समयनी पर्याय
स्वतंत्र छे एवी निरपेक्षद्रष्टि (अनारोप द्रष्टि) थया वगर आरोपने कोण जाणशे? पोताना स्वतंत्र स्वभावना
यथार्थ विवेक वगर परमां क्यांय पार पडे तेम नथी. जेने पोताना स्वभावनी स्वतंत्रद्रष्टि खीली छे तेनुं ज्ञान चौद
ब्रह्मांडना भावोनो विवेक करी लेशे.
(३)
निमित्तपणानो उपचार कोण करे?
ज्यारे जीवे स्वभावनुं भान कर्युं त्यारे आरोपथी भगवानने निमित्त कहेवाय छे. पण ‘भगवान निमित्त
छे’ एवो आरोप कोण करे छे? ते आरोप कांई भगवान पोते करता नथी के ‘हुं तारा कार्यमां निमित्त छुं’ परंतु
जीव पोते अनारोप–निरपेक्ष स्वभावने समज्या पछी विकल्पथी आरोप करे छे के ‘भगवान मने निमित्त हता.’
पूर्वे पोतानुं लक्ष भगवान उपर हतुं एम ज्ञान करीने वर्तमान विकल्प वडे भगवानमां निमित्तपणानो आरोप
करे छे.
हुं परना कार्यमां निमित्त थाउं छुं–एम जेनी द्रष्टि छे ते मिथ्याद्रष्टि छे केम के तेनी द्रष्टि वस्तुना स्वभाव
उपर नथी पण संयोग उपर छे. कार्य तो वस्तुना स्वभावथी ज थाय छे. हुं परने निमित्त थाउं एटले के जाणे पर
द्रव्य मारी अपेक्षा राखीने परिणमतुं होय–एम अज्ञानी माने छे. खरेखर तो जे जीव स्वयं सत् समज्यो छे ते जीव
पोताने विकल्प ऊठतां निमित्तने जाणीने एम आरोप करे छे के ‘आ मने निमित्त हतुं.’ आ रीते, स्वतंत्र कार्य थाय
त्यां परमां निमित्तनो आरोप करवामां आवे छे परंतु कोई जीव परना कार्यमां निमित्त थवा मागे तो तेनी द्रष्टि
पराश्रित छे.