ः १प२ः आत्मधर्मः ४४
(४) –पर्यायनुं ज्ञान अने निमित्तनुं ज्ञान–
आत्मानो स्वभाव शुद्ध ज्ञानरूप, परथी अने विकारथी भिन्न छे. आत्मामां रागादि थाय तेनुं पहेलां ज्ञान
करवुं के आ रागादि मारा पर्यायमां थाय छे, कर्मो ते करावता नथी पण मारा पुरुषार्थना दोषथी ते थाय छे. आटलुं
स्वीकार्या पछी त्रिकाळी स्वभावनी द्रष्टिथी ते रागनो पण निषेध करवो के राग मारा स्वभावमां छे ज नहि;
स्वभावद्रष्टिथी हुं रागनो कर्ता नथी.
जो जीव पोतानी पर्यायमां रागने न स्वीकारे तो तेनो निषेध करीने स्वभावमां केम ढळे? राग जडनी
पर्यायमां ज थाय छे एम माने अथवा तो कर्मो राग करावे छे एम माने तो ते जीव कदी रागनो निषेध करी शके
नहि. अने राग करतां करतां धर्म थशे एम माने तो ते पण रागनो निषेध करी शके नहि. माटे, प्रथम पोताना
पर्यायमां क्षणिक राग थाय छे एम जाणीने पछी स्वभाव द्रष्टि वडे तेनो निषेध करवो. आ सम्यग्दर्शन अने
सम्यग्ज्ञाननो उपाय छे.
प्रश्नः– जेम रागादिनुं पहेलां ज्ञान करीने पछी तेनो निषेध करवानुं कह्युं तेम ‘पर द्रव्यना कार्यमां हुं निमित्त
छुं’ एवा प्रकारना निमित्त नैमित्तिक संबंधने पहेलां जाणीने पछी तेनो निषेध करवो–ते रीत योग्य छे के नहि?
उत्तरः– नहि, ए ऊंधी द्रष्टि छे; केम के स्वद्रव्यमां पर द्रव्योनो अभाव ज छे तेथी पहेलां परथी भिन्न अने
परना संबंधरहित निरपेक्ष द्रव्यनुं ज्ञान कर्या पछी पर द्रव्यनुं अने पर द्रव्य साथेना निमित्त–नैमित्तिक संबंधनुं
यथार्थ ज्ञान थाय. ज्यां सुधी स्व द्रव्य यथार्थ न जाणे त्यां सुधी ज्ञाननुं स्व पर प्रकाशक सामर्थ्य खीले नहि.
जे रागादि भावो थाय छे ते तो पोतानी पर्यायमां थाय छे, माटे जो तेने न जाणे तो पूरी वस्तुनुं ज्ञान थतुं
नथी, तेथी तेने तो पहेलां जाणवा जोईए. पण पर द्रव्यो तो पोताथी भिन्न ज छे तेथी तेनी साथेना संबंधनो
पहेलां निषेध अने पछी ज्ञान करवुं ते योग्य छे. पर्यायमां राग ते तो स्व वस्तुमां थतो होवाथी तेनुं पहेलां ज्ञान
करीने पछी निषेध करवो ते योग्य छे. रागनो निषेध करीने जे ज्ञान अखंड स्वभावमां ढळ्युं ते ज्ञानमां स्व–परने
यथार्थ जाणवानुं सामर्थ्य छे.
(प) ‘निमित्त’ क्यारे कहेवाय?
वस्तुमां स्वयं कार्य थाय तो ज योग्यवस्तुने निमित्त कहेवाय छे. पण कार्य थया विना कोईने निमित्त
कहेवातुं नथी. ज्यां कार्य थाय त्यां निमित्त होय, परंतु ज्यां कार्य ज नथी त्यां निमित्त कोनुं?
कोई एम माने के अमुक निमित्त होवाथी कार्य न थयुं; अने निमित्त आव्युं त्यारे कार्य थयुं–ए मान्यता
खोटी छे. कार्य थया वगर निमित्त कोनुं कहेवुं? कार्य थयुं त्यारे जे पदार्थने निमित्त कहेवाय छे ते पदाथर् तो पहेलां
पण हतो, परंतु ते वखते उपादानमां कार्य थवानी लायकात नहि होवाथी कोई पर पदार्थने खरी रीते निमित्त
कहेवामां आव्युं नहि, पण ज्यारे कार्य थयुं त्यारे निमित्त कहेवायुं
–एम यथार्थ समजवुं जोईए; केम के ‘निमित्त’कहेतां ज ते कोई उपादानमां थतां कार्यनी अपेक्षा राखे छे, ज्यां कार्य ज न होय त्यां निमित्त क्यांथी होय?
(६) साचुं अने खोटुं
‘निमित्त’ छे ज नहि एम माने तो ते खोटुं छे, ‘निमित्त’ छे पण ते निमित्तथी उपादानमां कांई कार्य थाय
एम माने तो ते खोटुं छे. निमित्तनो उपादान उपर कांई प्रभाव पडे छे अथवा तो ते उपादानने कांई मदद, असर के
लाभ–नुकशान करे छे एम मानवुं ते पण खोटुं छे.
जे वखते उपादानमां कार्य थाय ते वखते निमित्तपणाने लायक पर वस्तुने ‘निमित्त’ कहेवाय छे, ए रीते
कार्य वखते निमित्त होय छे खरूं; पण तेनाथी उपादानमां कांई कार्य थतुं नथी. उपादान पोते पोतानुं कार्य पोतामां
करे छे अने निमित्त पोते पोतानुं कार्य पोतामां करे छे; उपादान निमित्तने आधीन नथी अने निमित्त उपादानने
आधीन नथी–आवुं जाणवुं ते साचुं छे.
मूल में भूल
भैया भगवतीदासजी तथा विद्वद्वर्य पंडित श्री बनारसीदासजी कृत उपादान–निमित्त दोहा उपर परम पूज्य
सद्गुरुदेवश्री कानजी स्वामीना प्रवचनोनुं हिंदी भाषांतर ‘मूल में भूल’ नामक पुस्तकाकारे वैशाख वद ८ ना दिवसे
प्रसिद्ध थयेल छे. जेओ हिंदी भाषा सारी रीते वांची समजी शकता होय तेओ माटे अत्यंत उपयोगी छे. मूल्य बार
आनाः ट. ख. माफ ः प्राप्तिस्थानः ः आत्मधर्म कार्यालयःः मोटा आंकडिया (काठियावाड)ः