गुण मान्या छे. तेथी आत्मानुं लक्ष छोडीने ते पुण्यथी अने रागथी गुण माने छे. शुभराग आवे पण तेनाथी गुण
प्रगटता नथी. गुणगुणीनी एकताना स्वभाव तरफ वळतां जे राग घटी गयो तेने व्यवहार कहेवाय छे. पण
स्वभाव तरफना वलण वगर परना लक्षे जे राग घटाडे तेने व्यवहार पण कही शकातो नथी. वास्तविकपणे तो तेने
राग घटयो ज नथी, अल्पकाळे एवो ने एवो तीव्र राग थई जशे. अने स्वभावना लक्षे जे राग घटयो ते घटयो,
फरीने ते राग आवशे नहि.
आत्मा अने ज्ञानने जुदा माननारने ज्ञाननी अवस्था अज्ञानरूप थाय छे.
अग्नि न होय तो ते लाकडाने बाळवानुं कार्य करी शकशे नहि. जो अग्निनो गुण तेनाथी जुदो होय तो उष्णताथी
खाली एवो अग्नि लाकडाने केम बाळी शकशे?
कार्य न करी शके. जैन सिद्धांत प्रवेशिकामां गुणनी व्याख्या ए छे के जे द्रव्यना पूरा भागमां अने तेनी सर्व
हालतोमां व्यापे ते गुण छे. एटले के गुण अने द्रव्यने सदाय एकता छे. उष्णता गुणनो आधार अग्नि छे एटले के
उष्णता अग्निना पूरा भागमां अने तेनी सर्व हालतोमां रहेली ज छे, एक क्षण पण उष्णता अग्निथी जुदी नथी.
जो अग्नि न होय तो एकली उष्णता लाकडाने बाळवानुं काम करी शके नहि. अने उष्णता न होय तो उष्णता
वगरनो अग्नि पण बाळवानुं काम करी शके नहि. ए रीत गुण अने गुणी जुदा होय तो ते क्रिया करवामां असमर्थ
छे, पण बंनेनी एकता होय तो ज क्रिया थाय छे. बेमांथी एकना अभावथी बीजानो पण अभाव थाय छे, माटे ते
बंने अभेद ज छे–एम प्रतीत थाय छे.
आत्मा अने ज्ञान जुदा होय तो जाणवानी क्रिया शेमां थाय? जो कहेशो के आत्मामां थाय, तो ज्ञानथी रहित एवो
आत्मा केम जाणी शके? अने जो कहेशो के ज्ञानमां थाय, तो आत्माना आधार वगर ज्ञाननी क्रिया कोना आधारे
थई? जाणवानी क्रिया जो शास्त्र वगेरेना आधार मानो पण आत्माना आधारे न मानो तो जाणवानी क्रिया ज न
थई शके, पण पराश्रये एकली विकारनी ज क्रिया थाय. गुणगुणीनी एकताना लक्ष वगर जे ज्ञान थाय ते
वास्तविकपणे ज्ञाननी क्रिया नथी पण विकारी क्रिया छे. ते ज्ञान ज्ञानरूप रह्युं नहि पण रागवाळुं थयुं, ते ज्ञान
नाशवान छे. स्वना लक्ष वगरनुं परनुं ज्ञान नाशवान छे. आत्माना लक्ष वगर नव पूर्वना भणेला अत्यारे
निगोदमां पडया छे. आत्मा अने ज्ञाननी एकतानी प्रतीति वगर संसारने कापवानी क्रिया ज्ञान नहि करी शके, अने
मोक्षमार्गनी क्रिया नहि थाय. आत्मा अने ज्ञानस्वभावनी एकता मान्या वगर विकारनो नाश कोना आधारे
करशे? अने ज्ञाननी निर्मळता कोना लक्षे प्रगटशे? ज्ञान गुण द्वारा आत्म द्रव्य साध्य छे, गुणलक्षण वडे आखा
गुणी द्रव्यने ओळखवानुं प्रयोजन छे. जो गुणगुणीने अभेद माने तो अभेदना लक्षे भेदनो विकल्प टाळीने
सम्यग्दर्शन प्रगट करे. पण जो गुणगुणीने जुदा ज माने तो तेने कदी गुण गुणीना भेदनो आश्रय टळे नहि; अने
विकल्पथी खसीने कदी सम्यग्दर्शन थाय नहि एने सदाय पराश्रय ज रह्या करे.
ज्ञानने जुदा माने छे. जो आत्माथी ज्ञानगुण जुदो