Atmadharma magazine - Ank 045
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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आषाढः २४७३ः १७७ः
गुण मान्या छे. तेथी आत्मानुं लक्ष छोडीने ते पुण्यथी अने रागथी गुण माने छे. शुभराग आवे पण तेनाथी गुण
प्रगटता नथी. गुणगुणीनी एकताना स्वभाव तरफ वळतां जे राग घटी गयो तेने व्यवहार कहेवाय छे. पण
स्वभाव तरफना वलण वगर परना लक्षे जे राग घटाडे तेने व्यवहार पण कही शकातो नथी. वास्तविकपणे तो तेने
राग घटयो ज नथी, अल्पकाळे एवो ने एवो तीव्र राग थई जशे. अने स्वभावना लक्षे जे राग घटयो ते घटयो,
फरीने ते राग आवशे नहि.
ज्ञान ते गुण छे अने ज्ञानवान् ते द्रव्य छे. ए द्रव्य अने गुण एकतारूप छे. जो तेने क्षण पण जुदा माने तो
बंने जड थई जाय छेे एम श्री जिनेन्द्रदेवनुं कथन छे. खरेखर आत्मा के ज्ञान कोई जड थई ज शकतुं नथी पण
आत्मा अने ज्ञानने जुदा माननारने ज्ञाननी अवस्था अज्ञानरूप थाय छे.
जो ज्ञान अने आत्मा जुदा होय तो जाणवानुं कार्य ज न थई शके. अग्नि अने उष्णतानी माफक आत्मा
अने ज्ञान एकमेक छे. जो अग्नि अने उष्णता जुदा होय एटले के जो अग्निमां ज उष्णता न होय अने उष्णतामां
अग्नि न होय तो ते लाकडाने बाळवानुं कार्य करी शकशे नहि. जो अग्निनो गुण तेनाथी जुदो होय तो उष्णताथी
खाली एवो अग्नि लाकडाने केम बाळी शकशे?
अने जो उष्णता गुणमां अग्नि न होय तो अग्नि वगर ते उष्णता कोना आधारे रहे? सिद्धांतमां कह्युं छे के
द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः एटले के गुण द्रव्यने आश्रये रहे छे अने एक गुणमां बीजा गुण होता नथी. तेथी गुण
निराश्रय होय नहि. उष्णताने जो अग्निनो आश्रय न होय तो उष्णतागुण ज न होई शके अने ते कोईने बाळवानुं
कार्य न करी शके. जैन सिद्धांत प्रवेशिकामां गुणनी व्याख्या ए छे के जे द्रव्यना पूरा भागमां अने तेनी सर्व
हालतोमां व्यापे ते गुण छे. एटले के गुण अने द्रव्यने सदाय एकता छे. उष्णता गुणनो आधार अग्नि छे एटले के
उष्णता अग्निना पूरा भागमां अने तेनी सर्व हालतोमां रहेली ज छे, एक क्षण पण उष्णता अग्निथी जुदी नथी.
जो अग्नि न होय तो एकली उष्णता लाकडाने बाळवानुं काम करी शके नहि. अने उष्णता न होय तो उष्णता
वगरनो अग्नि पण बाळवानुं काम करी शके नहि. ए रीत गुण अने गुणी जुदा होय तो ते क्रिया करवामां असमर्थ
छे, पण बंनेनी एकता होय तो ज क्रिया थाय छे. बेमांथी एकना अभावथी बीजानो पण अभाव थाय छे, माटे ते
बंने अभेद ज छे–एम प्रतीत थाय छे.
तेम अग्नि ते आत्मा समजवो अने उष्णता ते ज्ञानगुण समजवो. अग्नि अने उष्णतानी माफक आत्मा
अने ज्ञानने पण एकता छे. आत्मा अने ज्ञान जे जुदा होय तो जाणवानी क्रिया करवामां ते असमर्थ बने. जो
आत्मा अने ज्ञान जुदा होय तो जाणवानी क्रिया शेमां थाय? जो कहेशो के आत्मामां थाय, तो ज्ञानथी रहित एवो
आत्मा केम जाणी शके? अने जो कहेशो के ज्ञानमां थाय, तो आत्माना आधार वगर ज्ञाननी क्रिया कोना आधारे
थई? जाणवानी क्रिया जो शास्त्र वगेरेना आधार मानो पण आत्माना आधारे न मानो तो जाणवानी क्रिया ज न
थई शके, पण पराश्रये एकली विकारनी ज क्रिया थाय. गुणगुणीनी एकताना लक्ष वगर जे ज्ञान थाय ते
वास्तविकपणे ज्ञाननी क्रिया नथी पण विकारी क्रिया छे. ते ज्ञान ज्ञानरूप रह्युं नहि पण रागवाळुं थयुं, ते ज्ञान
नाशवान छे. स्वना लक्ष वगरनुं परनुं ज्ञान नाशवान छे. आत्माना लक्ष वगर नव पूर्वना भणेला अत्यारे
निगोदमां पडया छे. आत्मा अने ज्ञाननी एकतानी प्रतीति वगर संसारने कापवानी क्रिया ज्ञान नहि करी शके, अने
मोक्षमार्गनी क्रिया नहि थाय. आत्मा अने ज्ञानस्वभावनी एकता मान्या वगर विकारनो नाश कोना आधारे
करशे? अने ज्ञाननी निर्मळता कोना लक्षे प्रगटशे? ज्ञान गुण द्वारा आत्म द्रव्य साध्य छे, गुणलक्षण वडे आखा
गुणी द्रव्यने ओळखवानुं प्रयोजन छे. जो गुणगुणीने अभेद माने तो अभेदना लक्षे भेदनो विकल्प टाळीने
सम्यग्दर्शन प्रगट करे. पण जो गुणगुणीने जुदा ज माने तो तेने कदी गुण गुणीना भेदनो आश्रय टळे नहि; अने
विकल्पथी खसीने कदी सम्यग्दर्शन थाय नहि एने सदाय पराश्रय ज रह्या करे.
शास्त्रना आधारे कांई ज्ञान नथी. शास्त्रोमां ज्ञाननो अंश पण नथी. ज्ञान तो आत्माना आधारे छे. ज्यां
ज्ञान थाय त्यां शास्त्रो निमित्त होय, पण शास्त्रथी ज्ञान माने तो तेनी द्रष्टि ज बाह्य छे, केमके ते आत्माने अने
ज्ञानने जुदा माने छे. जो आत्माथी ज्ञानगुण जुदो