Atmadharma magazine - Ank 045
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः १८०ः आत्मधर्मः ४प
अभेद छे अने ते ते समयनी पर्याय पण अभेद छे; द्रव्य–गुण–पर्यायमां भेद कहेवो ते व्यवहार छे. गुणगुणीने जुदा
माने तेने गुण कदी प्रगटे नहि. जेम दातरडाने अने पुरुषने संयोग संबंध छे तेम गुणगुणीने अर्थात् ज्ञान अने
आत्माने तेवा प्रकारनो संयोग संबंध नथी, पण त्रिकाळ एकतारूप समवाय संबंध अर्थात् तादात्म्य संबंध छे.
जैनदर्शनमां त्रिकाळ एकतारूप संबंधने समवाय संबंध कहेवाय छे, अन्यदर्शनो समवायसंबंधनो अर्थ बे जुदी
वस्तुनो पाछळथी संबंध थाय तेने समवायसंबंध कहे छे. पण वास्तविकपणे गुणगुणीने त्रिकाळ एकतारूप संबंध छे
ते ज समवायसंबंध छे. ज्ञान आनंद पुरुषार्थ वगेरे अनंत गुणो आत्मा साथे एकमेकपणे छे, बहारथी ते मळतां
नथी.
सार ए छे के, ज्ञान अने आत्मा जुदा कार्य करता नथी पण आत्मा अने ज्ञाननी एकता ज छे; माटे ते
स्वभावनी प्रतीति करे तो दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी निर्मळता प्रगटीने केवळज्ञान थाय एनुं ज नाम पोताने माटे
केवळज्ञानकल्याणक महोत्सव छे. पोतानो महोत्सव बीजा ऊजवे के न ऊजवे ते तो पुण्यने आधीन छे. पोते पोताना
अनादि अनंत गुणगुणीनी एकतानी प्रतीति वडे श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र प्रगट करवा ते ज सारभूत छे. अभेद द्रष्टिवडे
गुणद्वारा जो गुणीने नहि साध, तो तारूं ज्ञान क्यांय स्थिर थशे नहि अने बहार ज भटकया करशे. गुणगुणीनी
एकतानी श्रद्धा वगर भ्रमण टळशे नहि. गुणगुणीनी एकतानी प्रतीति करतां विकार साथेनी एकता तूटी जाय छे
अने भवभ्रमणनो अंत आवे छे.
* * * * * *
उपादान निमित्त दोहा
* पं. बनारसीदासजी कृत दोहा
* पर पूज्य श्री कानजी स्वामीनुं प्रवचन
वस्तुनो स्वभाव स्वतंत्र छे, दरेक वस्तु पोताना स्वतंत्र स्वभावथी ज पोतानुं कार्य करी रही छे. उपादान
अने निमित्त ए बंने स्वतंत्र भिन्न वस्तुओ छे. उपादान पोतानुं कार्य करे त्यारे निमित्त मात्र होय छे–एटलो ज
उपादान–निमित्तनो मेळ छे, तेने बदले जरापण कर्ताकर्म संबंध मानवो ते अज्ञान छे. आ दोहाओमां उपादान
निमित्तनुं स्वरूप टूंकामां सुंदर रीते बताव्युं छे.
प्रथम, बे दोहामां शिष्य प्रश्न पूछे छे के–
गुरु उपदेश निमित्त विन उपादान बलहीन,
ज्यों नर दूजे पाव विन चलवे को आधीन. १.
हो जाने था एक ही उपादान सों काज,
थकै सहाई पौन विन पानिमांही जहाज. २.
अर्थः– जेम माणस बीजा पग वगर चाली शके नहि तेम उपादान (आत्मा पोते) पण सद्गुरुना उपदेशना
निमित्त वगर बळ वगरनो छे. एकला उपादानथी ज काम थाय एम जे माने छे ते बराबर नथी; जेम पाणीमां
पवननी सहाय वगर वहाण थाकी जाय छे तेम (–निमित्तनी सहाय वगर उपादान एकलुं कार्य करी शकतुं नथी).–
आवी अज्ञानीओनी मान्यता छे, पण ते बराबर नथी एम आ दोहाओमां साबित करवुं छे.
उपादान–निमित्तनुं स्वरूप जाणवानी इच्छावाळो शिष्य आ वात पूछे छे. निमित्त अने उपादाननी वात
कांईक ख्यालमां लेनार पूछे छे के उपादान शुं अने निमित्त शुं? पण जेने कांई खबर ज न होय अने जाणवानी
इच्छा ज न थती होय ते शुं पूछे?
जेणे निमित्त–उपादाननी वात सांभळी छे पण हजी निर्णय कर्यो नथी एवो निमित्तना पक्षवाळो पूछे छे के
–निमित्त वगर उपादान पोतानुं काम करवामां बळ वगरनुं छे, निमित्त होय तो उपादान काम करी शके, गुरु होय
तो शिष्यने ज्ञान थाय छे, सूर्य होय तो कमळ खीले छे, बे पग होय तो माणस चाली शके छे, कांई एक पगे चाली
शकातुं नथी. जुओ, एक पग एकलो काम करी शकतो नथी पण एक पगने बीजा पगनी सहाय मळे त्यारे चालवानुं
काम थाय छे. तेम उपादान एकलुं एकलुं काम करी शकतुं नथी पण उपादान अने निमित्त एम बे भेगा थाय तो
कार्य थाय छे.
उपादान एटले आत्मानी शक्ति. जीवने सम्यग्दर्शन प्रगट करवामां आत्मानी साची समजण– स्वभावनुं
भान ते उपादान छे अने गुरुनो उपदेश निमित्त छे. ज्यारे उपादान पोते कार्यरूप परिणमे त्यारे जे बाह्य संयोग
होय ते निमित्त छे. आ रीते उपादान निमित्तनी व्यवस्था छे.
अज्ञानीओनी दलील छे के निमित्त सारुं न मळे तो उपादाननुं काम न थाय. अने ते माटेना द्रष्टांत पण
आप्या छे. आ दोहा पं. बनारसीदासजीए रचेला छे, अज्ञानीओनी वती पोते ज प्रश्न उपाडीने