Atmadharma magazine - Ank 045
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 21

background image
आषाढः २४७३ः १८१ः
तेनो जवाब आप्यो छे. अज्ञानीओनी केवी केवी दलील होय छे ते ज्ञानीओ जाणे छे. आ दोहा घणा ऊंचा छे, आमां
वस्तुस्वभावनुं जोर मूकयुं छे.
अज्ञानी एम माने छे के कांईक निमित्त होय तो उपादाननुं काम थाय छे, ज्ञानी एम जाणे छे के एकला
वस्तुना स्वभावथी ज कार्य थाय छे, तेमां निमित्तनी कांई ज असर–मदद नथी; पण जे बाह्य संयोगो हाजररूप होय
तेने निमित्त कहेवाय छे. काम तो उपादान पोते एकलुं ज करे छे.
शिष्य कहे छे के–एकला उपादानथी ज काम थाय छे एम तमे कहो छो, पण जो एकला उपादानथी ज काम
थतुं होय तो पवन वगर वहाण केम चालतुं नथी? उपादान छे तो पण पवनना निमित्त वगर शुं वहाण चाले छे?
पवन वगर सारामां सारुं वहाण पण थाकी जाय छे; तेम सद्गुरुना उपदेश विना आत्मारूपी वहाण मोक्षमार्ग तरफ
चाले नहि. सद्गुरुनुं निमित्त होय तो आत्मारूपी वहाण सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपी मुक्तिना मार्गे चाले. माटे
निमित्त होय तो उपादान काम करे अने निमित्त न होय तो उपादान बळ वगरनुं थई जाय. एकलो आत्मा शुं करे?
जो सद्गुरु होय तो ते मार्ग बतावे अने आत्मा ते मार्गे चाले–ए रीते निमित्त–उपादान भेगा थाय तो आत्मा
मोक्षमार्गमां चाले.–आ निमित्त तरफनी दलील समजवी.
हवे उपादान तरफथी जवाब आपे छेः–
ज्ञान नैन किरिया चरन दोउ शिवमग धार,
उपादान निश्चै जहां तहां निमित्त व्यवहार. ३.
अर्थः– सम्यग्दर्शनपूर्वकना ज्ञानरूप जे नेत्र अने ते ज्ञानमां स्थिरता स्वरूप सम्यक्चारित्रनी क्रियारूप जे
चरण ते बंने मोक्षमार्गने धारण करे छे. ज्यां उपादानरूप निश्चय होय त्यां निमित्तरूप व्यवहार होय ज छे.
अज्ञानीओ माने छे के सद्गुरुनुं निमित्त अने आत्मानुं उपादान ए बे थईने मोक्षमार्ग छे. ज्ञानीओ जाणे
छे के–‘ज्ञान नयन किरिया चरन’–ज्ञान नयन ते मोक्षमार्ग देखाडे छे अने चारित्र तेमां स्थिर थाय छे– आ रीते
ज्ञान अने चारित्र ए बे थईने मोक्षमार्ग छे. (ज्ञान कहेतां तेमां श्रद्धा पण आवी ज जाय छे.) ज्यां आवो निश्चय
मोक्षमार्ग होय त्यां सद्गुरुना निमित्तरूप व्यवहार होय ज. परंतु ज्ञान–चारित्ररूप मोक्षमार्ग तो एकला उपादानथी
ज थाय छे.
आत्मा देहादि पर संयोगोथी भिन्न छे, दया वगेरेनी शुभ के हिंसा वगेरेनी अशुभ लागणी ते बंने विकार
छे, ते आत्मानुं स्वरूप नथी; आम परथी अने विकारथी भिन्न आत्माना शुद्ध स्वरूपनी श्रद्धापूर्वक ज्ञान ते
आत्मानी आंख छे अने पुण्य–पापना विकार रहित स्थिरतारूप क्रिया ते चारित्र छे, आ ज्ञान अने चारित्र ते
मोक्षनो उपाय छे. प्रथम ज्ञानरूपी आंखो वडे मोक्षनो मार्ग जाण्या वगर ते मार्गमां चालशे कयांथी? आत्माना
स्वभावने जाण्या वगर पुण्यमां मोक्षमार्ग मानीने अज्ञानभावे संसारमां ज रखडशे. पहेलां शुद्धात्माना ज्ञानपूर्वक
मोक्षमार्गने ओळखे अने पछी तेमां स्थिर थाय तो मोक्ष पामे छे. जीव पोताना उपादान वडे ज्यारे आवो मोक्षमार्ग
प्रगट करे त्यारे सद्गुरु निमित्तरूप होय छे–ए व्यवहार छे.
उपादान एटले निश्चय अने निमित्त एटले व्यवहार. उपादान ते स्व छे अने निमित्त ते पर छे एटले स्व
ते निश्चय अने पर ते व्यवहार. जे द्रव्य पोते कार्यरूपे थाय ते द्रव्य कार्यमां निश्चय छे अने ज्यारे पोते कार्यरूपे थतुं
होय त्यारे अनुकूळ पर वस्तु उपर ‘निमित्त’ एवो आरोप करवो ते व्यवहार छे. आ रीते निमित्त तो उपचार
मात्र छे. आ संबंधमां श्री पूज्यपाद स्वामीए इष्टोपदेशमां कह्युं छे के–
नाज्ञो विज्ञत्वमायाति विज्ञो नाज्ञत्वमृच्छति।
निमित्तमात्रमन्यस्तु गतेर्वर्मास्तिकायवत्।।३५।।
अर्थः– अज्ञानी जीव (पर वडे) ज्ञानी थई शकतो नथी तेम ज ज्ञानी जीव (पर वडे) अज्ञानी थई शकतो
नथी. बीजा तो निमित्त मात्र छे–जेम पोतानी शक्तिथी चालनारा जीव–पुद्गलोने धर्मास्तिकाय निमित्त छे तेम
मनुष्यो स्वयं ज्ञानी के अज्ञानी थाय तेमां गुरु विगेरे निमित्त छे.
धर्मास्तिकायवत्’–बधां निमित्त धर्मास्तिकाय समान छे. आ एक वाक्यमां तो निमित्तनुं उपादानमां
सर्वथा अकिंचित्करपणुं बताव्युं छे.
जेम धर्मास्तिकाय तो सर्वत्र सदाय छे, पण जे पदार्थो स्वयं गतिरूप परिणमे छे तेओने माटे धर्मास्तिकाय
उपर निमित्तपणानो आरोप आवे छे, अने जे पदार्थो गति करता नथी तेमने माटे धर्मास्तिकाय पर निमित्तनो
आरोप आवतो नथी.
आ रीते, जो पदार्थ गतिरूप परिणमे तो धर्मास्तिकायने निमित्त कहेवाय अने जो गति न करे तो निमित्त