पोताना उपयोग ने स्वभाव तरफ वाळवामां जीव पोते ज स्वतंत्र छे. माटे हे निमित्तना पक्षवाळा! तुं कहे छे के
‘निमित्त होय तो कार्य थाय अने जेवुं निमित्त मळे ते अनुसार उपादाननी पर्याय थाय’–ए वात असत्य छे.
स्वभावमां पर निमित्तनुं कांई कार्य छे ज नहि जो वस्तुनी कोईपण पर्याय निमित्तने लीधे थती होय तो ते वस्तुमां
ते पर्याय थवानी ताकात शुं न हती? अनादि अनंत काळनी सर्व पर्यायोनुं सामर्थ्य तो वस्तुमां छे. अने जो वस्तुमां
ज अनादि अनंत पर्यायनुं सामर्थ्य छे तो तेमां बीजाए शुं कर्युं? अनादिअनंत पर्यायोमांथी एक पण पर्याय जो
परने लीधे के परनी मुख्यताने लीधे थई एम माने तो तेम माननारे वस्तुने स्वीकारी नथी. निमित्ते कर्युं कई रीते?
शुं वस्तुमां ते पर्याय न हती अने बहारथी निमित्ते आपी? जे वस्तुमां जे ताकात न होय ते बीजाथी आपी शकाय
नहि अने वस्तुमां जे ताकात होय तेने बीजानी अपेक्षा के मदद न होय. आवो स्वतंत्र वस्तु स्वभाव स्वीकार्या
वगर स्वतंत्रदशा (सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र) कदापि प्रगटशे नहि.
तेम आत्माना अंतर स्वभावनी शक्तिथी निर्मळदशा प्रगटे छे, निर्मळदशा प्रगट करवामां निमित्तनुं कांई कार्य तो
नथी परंतु निमित्त प्रत्येनुं लक्ष पण होतुं नथी. निमित्तनुं लक्ष छोडी दईने एकला स्वभावना लक्षे निर्मळदशा
प्रगटे छे.
एकलो पोताना उपयोगने स्व तरफ फेरवी शके छे. निमित्त तरफथी उपयोग खसेडीने स्वभाव तरफ उपयोग करवा
माटे उपयोग स्वयं पोताथी ज फरी शके छे. स्वद्रव्य अने अनेक प्रकारना परद्रव्यो एक साथे हाजर छे, तेमां पोताना
उपयोगने पोते जे तरफ वाळे ते तरफ वळी शके छे, पर द्रव्यो होवा छतां ते बधानुं लक्ष छोडीने उपयोगने स्वद्रव्यमां
वाळी शके छे. आ न्यायमां उपयोगनी स्वतंत्रता बतावी अने निमित्ताधीन द्रष्टिने उडाडी दीधी.
ज्यों जहाज परवाहमें तिरै सहज विन पौन. ६.
वस्तु निमित्त पण नथी, एक वस्तुमां बीजी वस्तुने निमित्त कहेवुं ते व्यवहार छे–उपचार छे. वस्तु स्वभाव परथी
छूटो स्वतः परिपूर्ण छे, ते स्वभाव परनी अपेक्षा राखतो नथी अने ते स्वभावनुं साधन पण असहाय छे. निमित्त
निमित्तमां भले रह्युं, परंतु उपादानना कार्यमां निमित्त कोण छे? वस्तुना अनंत गुणोमां पण एक गुण बीजा
गुणथी असहाय–स्वतंत्र छे तोपछी एक वस्तुने बीजी भिन्न वस्तु साथे तो कांई संबंध नथी. अहीं स्वभावद्रष्टिना
जोरे कहे छे के एक वस्तुमां बीजी वस्तुनुं निमित्त पण केवुं? निमित्त होय छे तेनुं ज्ञान गौणपणे छे परंतु द्रष्टिमां
निमित्तनुं लक्ष नथी.
छे? बहारमां निमित्त छे के नहि एनुं लक्ष नथी अने अंतरमां शुक्लध्याननी श्रेणीमां चडीने केवळज्ञान पामे छे.
एक क्षणमां अनंत पुरुषार्थ प्रगटावीने केवळज्ञान प्रगट करे–एवो असहाय वस्तु स्वभाव छे. आवा
आत्मस्वभावनुं भान करीने तेनी रमणतामां ठर्यो त्यां बहारना निमित्तोनी सहाय के लक्ष नथी. तेवी ज रीते
विकार करे तो तेमां पण निमित्तनी सहाय नथी. उपादान पोते पोतानी पर्यायनी लायकातथी विकार करे छे. आखी
वस्तु असहाय छे अने तेनी दरेक पर्याय पण असहाय छे.
विकारनो क्षय थईने अल्पकाळमां केवळज्ञान प्रगट थाय छे.–६–