संसार ज छे. एक तरफ आखो संसार भाव अने बीजी तरफ एकलो संपूर्ण स्वभावभाव; बधोय संसारभाव
अशुभ ज छे, पछी पुण्य हो के पाप हो, पण ते शुभ नथी. अने स्वभावभाव ते ज निश्चयथी शुभ छे, तेने ज शुद्ध
कहेवाय छे, अने ते ज धर्म छे. अशुभभाव ते ज अधर्म छे. अने तेमां पुण्य–पाप बंनेनो समावेश थई जाय छे.
दुःख थाय छे, अने तारो स्वभाव तो ए पुण्य–पाप बंनेथी रहित सिद्ध जेवो शुद्ध छे, एवा तारा शुद्धस्वभावने तुं
समज अने तेनी प्रतीत कर तो तने धर्म थाय, अने तारूं अविनाशी आत्मकल्याण थाय. परंतु स्वभावने समज्या
वगर पाप घटाडीने पुण्य कर तो तेटलाथी तारूं बंधन टळी जतुं नथी. अने तेनाथी तारूं हित थतुं नथी. हे भाई, तुं
जे पुण्यने सारा मानी रह्यो छो ते पुण्य तो तें अनंतवार कर्या, परंतु तेनाथी तारूं आत्मकल्याण थतुं नथी, माटे
आत्मकल्याणनो साचो उपाय पुण्य नथी पण पुण्यथी जुदो कोई उपाय छे, एम समजीने तुं तारा आत्मस्वभावनी
ओळखाणनो मार्ग ले, अने पुण्यने आत्मकल्याणनो उपाय, कारण के हेतु न मान.
पण कांई धर्मथी छोडाववा अने तारूं अहित करवा माटे ज्ञानीओ उपदेश करता नथी.
नथी. आम स्वभाव अने विभावना भिन्नपणानी श्रद्धा तथा ज्ञानने टकावी राखीश तोपण तारा अवतारनो
अल्पकाळे अंत आवी जशे. पण जो पुण्यमां ज हित मानी लईश तो कदी पण तारा अवतारनो अंत आवशे नहि.
तुं तारा आत्मामां विचारी जो के पुण्य तो बंधन छे अने बंधननुं फळ तो संसार ज छे, तो पछी जेनुं फळ संसार छे
तेनाथी आत्महित केम थाय?
तारा आत्मानी साची क्रियाने भूली रह्यो छो. तुं विवेकथी जो तो खरो के तुं चैतन्यस्वरूपी आत्मा छो, शुं तारो धर्म
जडनी क्रियामां होय? तुं जडनी क्रियामां धर्म मानीने अने विकार भावमां धर्म मानीने क्षणे क्षणे तारूं अपार अहित
करी रह्यो छो, तेथी ज्ञानीओने तारी करुणा आवे छे अने तने तारा परम हितनो सत्य मार्ग दर्शावे छे.
–तेथी हे भव्य जीव! तुं तेनो विरोध न कर, पण पात्र थईने शांतिथी तारा
शरणे अर्पाई जा–एम करवाथी अवश्य तारी भवबंधननी बेडी तूटी जशे.
ओळखाण अने अनुभव न थाय तो जीवनना लहावा शुं? जैन शासनमां आवीने पण जो आत्मानी ओळखाणनो
साचो मार्ग न ल्ये तो मानवजीवन मळ्युं शुं कामनुं? रण–अटवीना थाकथी थाकीने सरोवरना किनारे आव्यो ते
पाणी पीधा वगर केम पाछो जाय? तेम हे भाई! जो तुं जन्म–मरणना फेराथी थाकयो हो अने ते दुःखथी छूटीने जो
तारे आत्मिक सुखनो अनुभव करवो होय तो ज्ञानी पुरुषोनी शीतळ छायामां तुं विश्राम ले. संत पुरुषना समागमे
तुं आत्मानो अभ्यास कर, तेथी अवश्य तने धर्मनी प्राप्ति थशे अने तारूं अविनाशी हित थशे. * * * * *