परमानंदनुं स्वरूप अने तेनी प्राप्तिनी प्रेरणानुं सुंदर
विवेचन कर्युं छे. तेमां नीचेना विषयोनो समावेश थाय
छे–
१. आत्मानुं स्वरूप अने ते कोण देखी शके?
(श्लोक १, १० तथा १३ थी १९)
२. निज परमात्मदर्शननी प्रेरणा (श्लोक २) ३.
परमानंद स्वरूप आत्मानुं लक्षण (श्लोक ३) ४. केवा
विचार योग्य छे?(श्लोक ४) प. ज्ञानरूपी सुधारसनुं
पान कोण करे? अने केवी रीते करे? (श्लोक प) ६.
पंडित कोण अने ते शुं करे? (श्लोक ६ तथा २० थी
२४) ७. शरीरमां आत्मा केवी रीते रहेलो छे अने तेनुं
स्वरूप केवुं छे? (श्लोक ७–८) ८. आत्मा आनंद स्वरूप
छे, पण ध्यानहीन पुरुष तेने देखी शकतो नथी, जेम
जन्मांधपुरुष सूर्यने देखतो नथी तेम. (श्लोक ९) ९.
आत्मानुं ध्यान करवाथी शुं थाय छे? (श्लोक ११–१२)
आ श्लोको अध्यात्मरसपूर्ण अने सहेलाईथी याद राखी
शकाय तेवा होवाथी अहीं आपवामां आवे छे–)
ध्यानहीना न पश्यन्ति, निजदेहे व्यवस्थित्म्।।१।।
देहमां ज बिराजमान छे, पण ध्यानहीन पुरुष तेने देखी
शकतो नथी, अर्थात् ध्यानना अभ्यास वडे ते देखाय छे.
अनंतवीर्य संपन्नं, दर्शनं परमात्मनः।।२।।
स्वरूपनुं दर्शन करवुं जोईए–तेनुं ज अवलोकन करवुं
जोईए.
परमानंद संपन्नं, शुद्ध चैतन्य लक्षणम्।।३।।
बाधाओथी मुक्त, सर्व संयोगोथी रहित, परमानंदमय
शुद्ध चैतन्य लक्षणथी आत्मस्वभावने ओळखवो
जोईए.
अधमा कामचिंता स्यात्, परचिंताऽधमाऽधमा।।४।।
शुभभावनो विचार करवो ते मध्यम छे, काम–भोगना
विचार करवा ते अधम छे अने बीजा जीवोनुं अहित
करवानो भाव करवो ते अधमाधम छे.
विवेकमंजुलिं कृत्वा तत्पिबंति तपस्विनः।।५।।
भाव मुनिओ सम्यग्ज्ञानरूपी अंजलि वडे पीवे छे.
स सेवते निजात्मानं परमानन्दकारणम्।।६।।
एवा पोताना आत्मानुं ते सेवन करे छे.
अयमात्मा स्वभावेन देहे तिष्ठति निर्मलः।।७।।
पोताना स्वभावथी निर्मळ छे अने शरीर, कर्मो तथा
नोकर्म रहितं विद्धि निश्चयेन चिदात्मनः।।८।।
रहित अने शरीरादि नोकर्मथी रहित छे, तेने यथार्थपणे
जाणवुं जोईए.
ध्यान हीना न पश्यन्ति जात्यन्धा इव भास्करम्।।९।।
होवा छतां जन्मथी ज आंधळो पुरुष तेने देखतो नथी
तेम ध्यान हीन पुरुष पोताना आनंदस्वरूप आत्माने
देखतो नथी. एटले के ध्यानना अभ्यास वडे ते
सहजपणे देखावा योग्य छे.