Atmadharma magazine - Ank 045a
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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प्रथमश्रावणः२४७३ः १९३ः
अने तने तारा पुरुषार्थनो भरोसो नथी. जीवनी प्रतीतिवाळाने पडवानी शंका न होय. पोताना जीव स्वभावने
भूलीने पोताने विकारी अने अजीव माने तो पडे. जे जीवो पडया होय तेओ जीवने चूकया तेथी पडया छे. जीव
द्रव्यनी प्रतीति करीने अजीवथी जुदापणे पोताना स्वभावमां टकयो अने एम प्रतीत करी के मारा तत्त्वमां अजीवनो
प्रवेश त्रणकाळमां नथी. एवी प्रतीतवाळाने पडवानी शंका न होय...छतां अज्ञानी कहे छे के आगळ जतां कर्मनो
तीव्र उदय आवे अने पडी जईए तो! त्यारे श्रीगुरु कहे छे के हे भाई, अमे तने साची श्रद्धारूपी दोरो बांधी दईए
छीए, तेना वडे तारा आत्माने विकारथी अने कर्मथी जुदो ओळखी लेजे. परमपारिणामिक निर्मळ स्वभाव ते तुं
छो, तुं ज्ञान स्वरूप छो, तारा ज्ञानमां अज्ञान न होय, पुण्यपाप न होय, मिथ्यात्व न होय, कर्म न होय. एवा तारा
ज्ञान स्वभावने बधायथी जुदापणे प्रतीतमां टकावी राखजे, तेथी तारो आत्मा खोवाय नहि जाय, तारामां
अज्ञाननो प्रवेश नहि थाय अने मुक्तिमार्गे जतां तुं पाछो पडीश नहि.
–परंतु अज्ञानीने रागमां पोतापणानो भ्रम पडी जाय छे, एटले के राग ए ज जाणे के आत्मा होय एम ते
माने छे अने रागथी भिन्न आत्मस्वभावने भूली जाय छे. तेने भ्रम पडे छे के आ राग थयो तेमां मारो आत्मा
खोवाई गयो. ज्ञानीओ तेने कहे छे के भाई तुं शांत थईने तारा स्वरूपने जो. राग वखते पण तारो स्वभाव तो
एवो ने एवो ज छे, पण तने रागमां एकत्वपणानो भ्रम पडयो छे तेथी तारो भिन्न स्वभाव तारा अनुभवमां
आवतो नथी. तारो स्वभाव तो त्रिकाळ चैतन्य स्वरूप छे, ए चैतन्य स्वरूप लक्षण वडे तुं तारा आत्माने ओळखी
ले. ए चैतन्यलक्षणरूप तारो आत्मा तो राग थाय ते वखते पण तेथी जुदा स्वभावे टकनारो छे. माटे आत्मा
खोवाई जाय अर्थात् आत्मा विकारी छे–एवो भ्रम तुं छोड अने तारा स्वभावने मान.
–आम ज्यारे श्रीगुरु वारंवार समजावे छे त्यारे पात्र जीव स्वसन्मुख थईने चैतन्यस्वभावनी द्रष्टिथी
पोतानुं स्वरूप समजे छे; त्यारे तेने भान थाय छे के अहो! हुं आत्मा तो सदाय परिपूर्ण शुद्ध स्वभाववाळो ज
छुं, मारो स्वभाव कदी कोईमां भळी गयो न हतो तेमज विकारी थयो न हतो. एम त्रिकाळी स्वभाव समज्या
पछी अने तेनी प्रतीति कर्या पछी तेने कर्मथी पडवानी शंका कदी थती नथी. जेम दोरो छूटयो त्यारे पण
गोसळीयो ज हतो अने दोरो हतो त्यारे पण ते तो ते ज हतो, पण ते भ्रमथी भूली गयो हतो, तेम विकार
वखते पण जीवनो स्वभाव तो एवोने एवो ज छे, अज्ञानी तेने भूली रह्यो छे, ज्ञानी तेने ते बतावे छे. भ्रम
टळीने साचुं भान थतां पोते पोताना पारिणामिकभावने ओळखे छे अने ते पारिणामिकभावना लक्षे
अनादिनो औदयिकभाव टळीने औपशमिक वगेरे भावो प्रगटे छे. श्रीगुरु ए पारिणामिकभावने ओळखावे छे,
जीव जो पोताना पारिणामिकभावनी श्रद्धारूपी दोरो आत्मा साथे बांधी द्ये तो ते संसारमां खोवाई जाय नहि–
अर्थात् तेनी अवश्य मुक्ति ज थाय.
* * * * *
– आजीवन ब्रह्मचर्य–
मालवाण गामना रहीश भाई देवशीभाई रामजी शाह तथा तेमना धर्मपत्नी चंचळबेन–ए बन्नेए,
श्रुतपंचमीना दिवसे पूज्य सद्गुरुदेवश्री पासे आजीवन–ब्रह्मचर्य अंगीकार कर्युं छे.
समयसार–प्रवचनो भाग–४
आ भागमां समयसारजीना कर्ताकर्म अधिकार (गा. ६९ थी १४४) उपरना प्रवचनोनो समावेश थाय छे.
आ पुस्तकमां पप० पानां छे. तेनी पडतर किंमत लगभग रूा. ३–८–० होवा छतां तेनी किंमत रू. ३–०–०
राखवामां आवी छे. कर्ताकर्म संबंधी आवुं स्पष्टीकरण अन्यत्र कोई ग्रंथमां नथी...एक द्रव्य बीजा द्रव्यनुं कांई न
करी शके–इत्यादि जैनदर्शनना मुळभूत सिद्धांतो द्वारा वस्तु स्वरूप समजवा माटे आ पुस्तक मुमुक्षुओने अत्यंत
उपयोगी छे.
बाल पद्मपुराण
हिंदी बालपद्मपुराणना आधारे गुजराती अनुवाद करीने छपावेल छे आमां श्रीरामचंद्रजीनुं जीवनचरित्र छे.
पानां–६४ किंमत ०–६–० छे. बाळकोने विशेष उपयोगी छे.
प्राप्तिस्थान–श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट–सोनगढ–काठियावाड