Atmadharma magazine - Ank 045a
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः १९२ः आत्मधर्मः खास अंक
गोसळीयानुं द्रष्टांत आपीने श्रीगुरु समजावे छे
आत्मस्वभाव
वीर सं. २४७३, वैशाख वद ८ना व्याख्यानमांथी
श्रीमद् राजचंद्रजीए एक वखत ‘गोसळीया’ नो दाखलो आप्यो हतो. एक गामडामां एक बाई हती, तेने
गोसळीया नामनो छोकरो हतो. ते छोकरानो बाप गुजरी गयो हतो, अने बाई साधारण स्थितिनी हती. ज्यारे
गोसळीयो दस–बार वर्षनी उंमरनो थयो त्यारे तेनी बाए तेने थोडाक रूपिया आपीने कह्युं के तुं बाजुना शहेरमां
जईने कांईक माल लावीने वेपार कर, जेथी गुजरान चाले. गोसळीयाए कह्युं–बा, हुं मोटा शहेरनी बजारमां जाउं ने
त्यां बजारमां घणा माणसोनी भीड वच्चे गोसळीओ खोवाई जाय तो? आ सांभळतां ज तेनी माए विचार्युं के–
अररर! गजब थईने! तुं पोते गोसळीयो, ने तुं खोवाई जा? माताए कह्युं–जो भाई! तुं पोते गोसळीयो छो,
गोसळीयो क्यांय खोवाय जाय नहि; छतां जो तने गोसळीयो खोवाई जवानी शंका पडे तो तारा हाथमां आ दोरो
बांधी दउं छुं ते दोरो जोईने नक्की करी लेजे. एम कहीने माताए तेना हाथे दोरो बांधी दीधो अने गोसळीयाभाई
तो बाजुना शहेरमां खरीदी करवा उपडया.
गोसळीया पासे थोडा ज रूपिया हता तेथी तेने हळदर, मरचां वगेरे परचुरण चीजो लेवानी हती. शहेरमां
जईने गोसळीयाए विचार्युं के–अहीं (हळदर वगेरेनी दुकानो पासे) तो थोडा माणसो छे तेथी भाव वधारे हशे;
अने ज्यां सटोडियानी बजार हती त्यां घणा माणसो जोईने विचार्युं के अहीं घणा माणसो छे तेथी सस्तो भाव हशे.
एम धारीने ते त्यां गयो. एने लेवा’ ता हळदर, मरचां, ने गयो सटाबजारमां! सटाबजारमां घणां माणसोनी
दोडादोडी वच्चे तेना हाथनो दोरो छूटी गयो.
सट्टाबजारमां हळदर–मरचां नथी मळतां, एम धारीने पाछो हळदर मरचांवाळानी दुकाने गयो. त्यां
माणसोनी भीड ओछी हती. त्यां आवीने गोसळीयाए विचार्युं के त्यां घणा माणसो वच्चे गोसळीयो खोवाई
तो नथी गयोने? माटे लाव दोरो तपासी जोऊं...हाथ सामे जोतां दोरो न देखाणो...‘हाय, हाय! गोसळीयो
क्यांय खोवाई गयो!’ एम धारीने ए तो आखा शहेरमां गोसळीयाने शोधवा मंडयो...सांज सुधी रखडयो
पण शहेरमां क्यांय गोसळीयो जडयो नहि. केमके तेनी माए कह्युं हतुं के जेने हाथे दोरो बांध्यो होय तेने
गोसळीया तरीके ओळखी लेजे. पण एने दोरो देखाणो नहि. गोसळीयो पोते अने शोधे बहारमां, ए तो क्यांथी जडे? छेवटे सांजे तेणे विचार्युं के आ शहेरनी भीडथी कंटाळीने गोसळीयो तेना गामडामां पाछो चाल्यो
गयो हशे, माटे हवे गामडामां जईने शोधुं. एम धारीने ते पाछो गामडामां गयो, अने घेर जईने माताने
कह्युं–अरे बा! गोसळीयो तो खोवाई गयो! घणी तपास करी पण पाछो जडयो नहि. तेनी माताए कह्युं–
भाई! तुं थाकी गयो हईश तेथी सूई जा, पछी आपणे गोसळीयाने गोतशुं. गोसळीयो सूई गयो; त्यारे तेनी
माए तेना हाथे दोरो बांधी दीधो. थोडीवारे गोसळीओ जाग्यो अने हाथ तरफ जोयुं तो त्यां दोरो देखाणो तरत
ज ते बोली उठयो– ए बा, गोसळीयो जडी गयो. माताए कह्युं–अरे दीकरा! गोसळीयो क्यांय खोवाणो न
हतो, गोसळीयो तो गोसळीयामां ज हतो. दोरा वखते ते ज हतो. अने दोरो छूटयो त्यारे पण ते ज हतो. पण
तने भ्रम पडी गयो हतो तेथी तुं बहारमां शोधतो हतो.
आ तो द्रष्टांत छे, हवे तेनो सिद्धांत आत्मा उपर उतरे छे.
गोसळीयो एटले अज्ञानी जीव; अनादिथी पोताना स्वरूपनी तेने खबर नथी. ज्यारे तेने धर्मश्रवणनी
जिज्ञासा थई त्यारे सद्गुरुए तेने कह्युं भाई, धर्मनी समजण करो; धर्म समज्यां वगर क्यां रखडशो? माटे कांईक
धर्मनो वेपार करो तो शांति प्रगटे. आ सांभळीने हजी आत्मानी समजणनी कांई महेनत कर्या पहेलां तो गोसळीया
जेवो अज्ञानी जीव कहे छे के–प्रभु! धर्म तो समजवो छे परंतु पछी घणा कर्मनो उदय आवे अने आत्माने भूली
जवाय तो?–धर्मनो वेपार करतां करतां कर्मनी भीड वच्चे हुं आखो आत्मा पोते ज खोवाई जऊं तो? हजी धर्म
कर्या पहेलां ज अज्ञानीने आवी शंका ऊठे छे तो ते धर्म केवी रीते करशे? सद्गुरु तेने कहे छे के अरे नमाला! तने
तारा आत्मानी श्रद्धा नथी, तारा चैतन्य तत्त्वनुं जोर भासतुं नथी