ते क्षणे क्षणे नाश पामे छे, मारा आखा स्वभावमां विकार नथी–एम स्वभाव सन्मुख थईने जे निर्णय कर्यो ते
वीतरागीद्रष्टि थई. स्वतंत्र स्वभावमां राग नथी, ते स्वभावना निर्णयमां राग नथी अने रागवडे ते स्वभावनो
निर्णय थतो नथी. विकार रहित शुद्ध चैतन्य स्वभावनो निर्णय कर्यो एटले विकारथी उदासीन थई गयो. आ
वीतरागीद्रष्टि स्वतंत्र छे एटले तेमां परनी अपेक्षा नथी अने विकारभावथी कल्याण थाय एवी मान्यता रही नथी.
हजी वीतरागी चारित्रभाव प्रगटयो नथी अने विकार टळ्यो नथी परंतु वीतरागी द्रष्टिवडे विकारभाव प्रत्ये उदास
थई गयो छे.
एवो वीतरागभाव थाय छे. ए रीते स्वतंत्रता समजतां यथार्थता थाय छे अने यथार्थता थतां वीतरागता थाय छे,
अने वीतरागता ते मुक्तिनुं कारण छे. आ स्वतंत्रता ते ज जैनदर्शन छे; स्वतंत्रता ते वस्तुनो स्वभाव छे अने
वस्तुनो स्वभाव ते ज जैनदर्शन छे; आमां जरा पण फेर माने तो ते मान्यतामां जैनदर्शन रहेतुं नथी.
वस्तुने अन्य कोई वस्तुओ साथे कांई संबंध नथी,–एम जैनदर्शन दरेक वस्तुने स्वतंत्र बतावे छे. एक वस्तु बीजी
वस्तुमां कोई प्रकारे कांई करी शके नहि, केम के बधी ज वस्तु स्वतंत्र छे. जो एक वस्तुमां बीजी वस्तु कांई पण करे
तो वस्तुनी स्वतंत्रता ज रहेती नथी. वस्तु पोते ज स्वतंत्र स्वरूप छे ए स्वतंत्रताने जे जाणे तेना ज्ञानमां
यथार्थता छे अने ए यथार्थता ज वीतरागतानुं कारण छे. राग करे तेमां स्वतंत्र, राग होवा छतां रागरहित
स्वभावनो निर्णय करवामां स्वतंत्र, राग टाळीने वीतरागता प्रगट करवामां स्वतंत्र अने सादि अनंतकाळ
आनंदनो अनुभव करवामां पण स्वतंत्र. ए रीते जीव पोताना दरेक भावमां स्वतंत्र छे. कर्मो जीवने कांई पण भाव
करावतां नथी, के जीव उपर कांई प्रभाव पाडतां नथी.
रागनी उत्पत्ति थाय छे परंतु ते राग पर वस्तु करावती नथी, ते राग पण पोते स्वतंत्रपणे करे छे. स्वतंत्रता
जाणवी ते यथार्थता छे अने तेमांथी वीतरागतानी उत्पत्ति छे; अने पर साथेनो संबंध मानवो ते मिथ्यात्व छे अने
तेमांथी रागनी उत्पत्ति छे.
थयो, एवी सम्यक् वीतरागी श्रद्धा ते ज मुक्तिनी पहेली कळा छे.
नहि, तो शरीर अने रागथी भिन्न एवुं स्वतंत्र तत्त्व शुं छे? पोताना स्वतंत्र सत्–अस्ति–स्वभावना भान वगर
नास्तिरूप शुं छे तेनी खबर पडे नहि. स्वभाव छे एवी सत्नी प्रतीतिमां, विकार अने पर नथी एवुं भान पण
साथे ज छे. स्वभावनी द्रष्टिमां रागनी नास्ति मानी ए ज वीतरागी द्रष्टि छे. स्वभावना लक्षे राग मारा
स्वभावमां नथी एम निर्णय न करे त्यां सुधी स्वतंत्रता अने वीतरागतानो उपाय प्रगटयो नथी.
प्रतीति करवामां पण स्वतंत्र छे. पण कर्मना उदयने लीधे रागादि थाय एम माने तो स्वभावने परथी जुदो
केम जाणवो तेनी तेने खबर नथी. हजी परथी पण जे खसतो नथी ते विकारथी पण खसीने स्वभावनी श्रद्धा
शी रीते करशे?