Atmadharma magazine - Ank 045a
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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प्रथमश्रावणः२४७३ः १९पः
विकार स्वतंत्र छे, परवस्तु विकार करावती नथी, एटलुं परथी भिन्नपणुं माने तो ते यथार्थता छे अने
तेमां परप्रत्ये उदास थईने पर लक्ष छोडयुं तेटली वीतरागता छे. पछी, जे विकार थाय छे ते क्षणिक अवस्थामां छे,
ते क्षणे क्षणे नाश पामे छे, मारा आखा स्वभावमां विकार नथी–एम स्वभाव सन्मुख थईने जे निर्णय कर्यो ते
वीतरागीद्रष्टि थई. स्वतंत्र स्वभावमां राग नथी, ते स्वभावना निर्णयमां राग नथी अने रागवडे ते स्वभावनो
निर्णय थतो नथी. विकार रहित शुद्ध चैतन्य स्वभावनो निर्णय कर्यो एटले विकारथी उदासीन थई गयो. आ
वीतरागीद्रष्टि स्वतंत्र छे एटले तेमां परनी अपेक्षा नथी अने विकारभावथी कल्याण थाय एवी मान्यता रही नथी.
हजी वीतरागी चारित्रभाव प्रगटयो नथी अने विकार टळ्‌यो नथी परंतु वीतरागी द्रष्टिवडे विकारभाव प्रत्ये उदास
थई गयो छे.
विकार करुं हुं अने अविकारी स्वभावना भान वडे विकार टाळुं पण हुं–एम विकार अने अविकार भावमां
पोतानी स्वतंत्रता माने तो यथार्थता थाय छे अने ते यथार्थतामां स्वभावनो आदर अने विकारनो अनादर छे–
एवो वीतरागभाव थाय छे. ए रीते स्वतंत्रता समजतां यथार्थता थाय छे अने यथार्थता थतां वीतरागता थाय छे,
अने वीतरागता ते मुक्तिनुं कारण छे. आ स्वतंत्रता ते ज जैनदर्शन छे; स्वतंत्रता ते वस्तुनो स्वभाव छे अने
वस्तुनो स्वभाव ते ज जैनदर्शन छे; आमां जरा पण फेर माने तो ते मान्यतामां जैनदर्शन रहेतुं नथी.
जैनदर्शन शुं बतावे छे? जैनदर्शन वस्तुनी स्वतंत्रता बतावे छे. दरेक वस्तु स्वतंत्र छे. वस्तु पोताथी
अस्ति रूप अने परथी नास्तिरूप–एम अनेकांत स्वरूप छे एटले के दरेक वस्तु पोताथी स्वतंत्र परिपूर्ण छे अने ते
वस्तुने अन्य कोई वस्तुओ साथे कांई संबंध नथी,–एम जैनदर्शन दरेक वस्तुने स्वतंत्र बतावे छे. एक वस्तु बीजी
वस्तुमां कोई प्रकारे कांई करी शके नहि, केम के बधी ज वस्तु स्वतंत्र छे. जो एक वस्तुमां बीजी वस्तु कांई पण करे
तो वस्तुनी स्वतंत्रता ज रहेती नथी. वस्तु पोते ज स्वतंत्र स्वरूप छे ए स्वतंत्रताने जे जाणे तेना ज्ञानमां
यथार्थता छे अने ए यथार्थता ज वीतरागतानुं कारण छे. राग करे तेमां स्वतंत्र, राग होवा छतां रागरहित
स्वभावनो निर्णय करवामां स्वतंत्र, राग टाळीने वीतरागता प्रगट करवामां स्वतंत्र अने सादि अनंतकाळ
आनंदनो अनुभव करवामां पण स्वतंत्र. ए रीते जीव पोताना दरेक भावमां स्वतंत्र छे. कर्मो जीवने कांई पण भाव
करावतां नथी, के जीव उपर कांई प्रभाव पाडतां नथी.
राग एटले परनो संबंध अने वीतरागता एटले परना संबंध रहित स्वतंत्रता. जेणे परनो संबंध मान्यो
तेने रागनी ज उत्पत्ति छे अने जेणे स्वतंत्र स्वभाव मान्यो तेने वीतरागतानी ज उत्पत्ति छे. परनो संबंध मानतां
रागनी उत्पत्ति थाय छे परंतु ते राग पर वस्तु करावती नथी, ते राग पण पोते स्वतंत्रपणे करे छे. स्वतंत्रता
जाणवी ते यथार्थता छे अने तेमांथी वीतरागतानी उत्पत्ति छे; अने पर साथेनो संबंध मानवो ते मिथ्यात्व छे अने
तेमांथी रागनी उत्पत्ति छे.
स्वतंत्रतानी प्रतीति ते ज मुक्तिना उपायनी कळा छे. स्वतंत्रता समजतां जीव स्वभावनी अस्तिना
भानपूर्वक परथी उदास थाय छे. परथी भिन्न स्वभावनी द्रष्टि थतां विकारथी उदास अने परथी सर्वथा उदास भाव
थयो, एवी सम्यक् वीतरागी श्रद्धा ते ज मुक्तिनी पहेली कळा छे.
वस्तु पोताना स्वभावथी टकेली छे, तेने परनो आधार नथी एटले के वस्तु स्वतंत्र छे. स्वतंत्रतत्त्वना
भान वगर एम मानी ल्ये के आ राग हुं नहि ने शरीर हुं नहि, तो ते यथार्थता नथी. शरीर तुं नहि अने राग तुं
नहि, तो शरीर अने रागथी भिन्न एवुं स्वतंत्र तत्त्व शुं छे? पोताना स्वतंत्र सत्–अस्ति–स्वभावना भान वगर
नास्तिरूप शुं छे तेनी खबर पडे नहि. स्वभाव छे एवी सत्नी प्रतीतिमां, विकार अने पर नथी एवुं भान पण
साथे ज छे. स्वभावनी द्रष्टिमां रागनी नास्ति मानी ए ज वीतरागी द्रष्टि छे. स्वभावना लक्षे राग मारा
स्वभावमां नथी एम निर्णय न करे त्यां सुधी स्वतंत्रता अने वीतरागतानो उपाय प्रगटयो नथी.
ज्ञानस्वभावने चूकीने पर लक्षे विकार करे तेमां आत्मानी स्वतंत्रता छे. विकारनी स्वतंत्रता माने तो
ज्ञानने परथी पाछुं वाळीने स्वभाव तरफ लंबावे; स्वभावना लक्षे विकाररहित स्वभाववाळो हुं छुं एवी
प्रतीति करवामां पण स्वतंत्र छे. पण कर्मना उदयने लीधे रागादि थाय एम माने तो स्वभावने परथी जुदो
केम जाणवो तेनी तेने खबर नथी. हजी परथी पण जे खसतो नथी ते विकारथी पण खसीने स्वभावनी श्रद्धा
शी रीते करशे?