ः १९६ः आत्मधर्मः खास अंक
व्याकरणना नियमथी ‘कर्ता’ नी व्याख्या एम छे के स्वतंत्रपणे जे करे ते कर्ता. वस्तुनो स्वभाव ज स्वतंत्र
छे. आत्मा पोताना भावने स्वतंत्रपणे करे छे. तेथी उदय, उपशम वगेरे पांच भावोनुं स्वरूप समजावतां ज्ञानीओ
कहे छे केः–
हे आत्मा! तुं स्वतंत्र छो. तारा पांचे प्रकारना भाव स्वतंत्र छे. तेमां तारा त्रिकाळ शुद्ध पारिणामिक
स्वभावनी ओळखाण करीने तेना लक्षे एकाग्रता कर तो आनंदनो अनुभव थाय. तारो वीतरागी आनंद तारामां
ज स्वतंत्र छे. तारे तारा आनंद माटे परना अवलंबननी जरूर पडे एवी तारामां पराधीनता नथी. माटे तुं
पराधीनपणानी मान्यता अने परनुं लक्ष छोडीने तारा स्वाधीन स्वभावनी प्रतीति कर.
शरीर सारूं होय तो आनंद थाय, पैसा होय तो सुख प्रगटे–एम जो तुं तारा आनंदमां पर वस्तुओनी
जरूर मान तो तेमां तारी स्वतंत्रता न रही. अने स्वतंत्रता वगर तारा भिन्न तत्त्वनी यथार्थता न रही अने
यथार्थता वगर वीतरागता न रही.
जीव परनो कर्ता छे एम माने तो स्वतंत्रता रही नहि. कर्म जीवने विकार करावे एम माने तो स्वतंत्रता
रही नहि. विकारथी धर्म थाय अथवा तो पुण्यभाव करतां करतां आत्माने लाभ थाय अथवा तो व्यवहार करतां
करतां निश्चय प्रगटे एम माने तो पण जीवनी स्वतंत्रता रही नहि. एमां स्वतंत्रता न रही एटले ते मान्यतामां
यथार्थता न आवी, यथार्थता न आवी एटले वीतरागता न आवी, वीतरागता न आवी एटले जैनमार्ग न
आव्यो...एटले के ते पराधीनता माननार जीवने पोताना स्वभावनी ओळखाण करीने विकारभावने टाळवानो
अने स्वतंत्रता प्रगट करवानो उपाय प्रगटयो नहि. जो पोताना भावनी स्वतंत्रता माने तो स्वाधीन–स्वभावना
आश्रये विकार टाळे अने स्वतंत्र सुखरूप मुक्तदशा प्रगटे. तेथी अहीं आचार्यभगवान समजावे छे के हे भाई, तारी
पर्यायमां औदयिकादि चार भावो थाय छे ते भावोनो कर्ता तुं छो. एम तुं तारा भावोनी स्वतंत्रता स्वीकार तो ते
यथार्थता छे अने ए द्रष्टि ज वीतरागता प्रगट थवानुं कारण छे.
तारी हैयाति ताराथी स्वतंत्रपणे छे के बीजाथी? अने तारूं रूपांतर ताराथी स्वतंत्रपणे थाय छे के बीजाथी?
तारी हैयाति ताराथी स्वतंत्रपणे छे अने चार भावोरूप परिणमन पण तारी स्वतंत्रताथी ज थाय छे. कर्म
परमाणुओ पोतानी स्वतंत्रशक्तिथी उदयादिरूपे परिणमे छे, तेमां तारूं कर्तव्य नथी.
बधी वस्तुओ तो स्वतंत्र ज छे, कोई वस्तुने पराधीन करवा कोई समर्थ नथी. परंतु कोई जीव पोतानी
मान्यतामां वस्तुनी स्वतंत्रता न माने तो तेथी कांई वस्तुनुं स्वतंत्रपणुं टळी जतुं नथी. पण ते जीवना ज्ञानमां
अयथार्थता थाय छे. जड चेतन समस्त वस्तुओ सत् छे, सत् वस्तुओनुं रूपांतर (परिणमन) तेनाथी स्वयं थाय
छे. बस, वस्तु सत् छे, ने सत् छे ते स्वतंत्र छे, ए स्वतंत्रतानी श्रद्धा थतां वीतरागी द्रष्टि थाय छे, वीतरागी द्रष्टि
थतां ज्ञानमां यथार्थता थाय छे अने ए ज वीतरागतानुं कारण छे. माटे स्वतंत्रता ते यथार्थता छे अने यथार्थता ते
वीतरागता छे.
वस्तुनी स्वतंत्रता छे, ए कांई नवी करवी नथी. परंतु अनादिथी वस्तुनी स्वतंत्रताना भान वगर
परावलंबन मानीने जीव रखडयो छे, ते ऊंधी मान्यता छोडीने स्वतंत्रताने ओळखे अने स्वावलंबनमां टके तो
मुक्तदशा प्रगटे. वस्तुनी स्वतंत्रताना भान वगर यथार्थता थशे नहि अने ज्ञानमां यथार्थता थया वगर पर
पदार्थोथी साची उपेक्षा थशे नहि, स्वभावलक्षे परनी उपेक्षा वगर वीतरागता थशे नहि.
वस्तु स्वभावनी स्वतंत्रतानुं भान थतां स्व–परनी भिन्नतानुं भान थाय छे एटले के ज्ञानमां यथार्थता
प्रगटे छे, ज्ञानमां यथार्थता प्रगटतां स्वभावना लक्षे पर भावथी उदास थाय छे एटले के वीतरागता थाय छे; अने
वीतरागता थतां मुक्ति थाय छे; माटे स्वतंत्रतानी द्रष्टि ते ज मुक्तिनुं कारण छे; अने स्वतंत्र तत्त्वने पराधीन
मानवुं ते ज संसारनुं कारण छे.
हुं अने पर बधां पदार्थो स्वतंत्र छे, हुं राग करुं तेना कारणे पर पदार्थोमां कांई ज थतुं नथी; उलटुं ते
रागभावथी मारी पर्यायनो विकास अटके छे एम जे समजे ते सर्वे परद्रव्योथी तो उदास थई गयो अने विकारथी
पण उदास थई गयो. पर–द्रव्यो प्रत्येनी तीव्र चिंता टळी गई अने विकारनी रुचि पण टळी गई. स्वभावना लक्षे
रागनुं जोर तूटी गयुं. स्वभावनी स्वतंत्रताना लक्षे क्षणे क्षणे विकारभाव तूटतो जाय छे अने वीतरागता वधती
जाय छे; अने छेवटे स्वतंत्र सिद्धदशा प्रगट थाय छे.
आ रीते, वस्तु स्वभाव स्वतंत्र छे, ते स्वतंत्रतानी प्रतीतमां ज्ञाननी यथार्थता छे अने ते यथार्थतामां
वीतरागता छे. माटे स्वतंत्रतानी प्रतीति करो.... * * * * *