–टूंकसारः लेखांकः ६
सम्यग्दर्शन ज छे. जगतना जीवो सम्यग्दर्शननुं साचुं स्वरूप जाणे अने खोटी श्रद्धा तथा खोटी श्रद्धावाळानुं सेवन
छोडे ते माटे आचार्यदेव सम्यग्दर्शननुं स्वरूप बतावे छे. श्री कुंदकुंद भगवान सत्ने स्थापे छे अने असत्ने उथापे
छे. जो एम न करे तो जीवोने सत् कई रीते समजाय? जगतमां एवुं कांई नथी के जे बधायने सारूं लागे...साची
वात कहेतां ठगने ते न रुचे, पण तेथी कांई साची वात कहेनारनो दोष नथी.
उपदेशनो दोष नथी. मदिरापाननुं व्यसन खराब छे एम कहीने तेनो निषेध करवामां आवे त्यारे कलालने दुःख
थाय, ब्रह्मचर्यनो उपदेश आपवामां आवे त्यारे वेश्याने दुःख थाय, परंतु तेथी कांई ब्रह्मचर्य वगेरेनो उपदेश
आपवानुं तो बंध न कराय. तेम जगतना जीवोए अनंतकाळथी एक सेकंड मात्र पण सत् सांभळ्युं नथी अने
अनेक प्रकारनी ऊंधी मान्यता ज पोषी छे, तेथी ज्यारे ज्ञानीओ सत् स्वरूप समजावीने ऊंधी मान्यताओनो निषेध
करे छे त्यारे केटलाक अज्ञानी जीवोने दुःख थाय छे. परंतु ए दुःख तो तेमने पोतानी ऊंधी मान्यतानुं ज छे. जेओ
अज्ञानी छे तेओ तो अनादिथी पोतानी ऊंधी मान्यता वडे दुःखी ज छे, तेथी सत्यना उपदेशथी तेमने कांई नवुं
नुकशान थवा संभव नथी. अने सत्य सांभळतां ते समजीने जेओ ऊंधी मान्यता छोडे छे तेओने सम्यग्दर्शननो
अपूर्व लाभ थाय छे. तेथी सत्य उपदेश जीवोने लाभनुं ज कारण छे, माटे सत्यनी निःशंकपणे जाहेरात करवी
जोईए.
उत्तरः–वस्तुना स्वरूपनुं यथार्थ प्ररूपण करवामां राग–द्वेष नथी, पण पोतानुं कांई प्रयोजन विचारी
होय तो वीतराग अर्हंतदेवने पण राग–द्वेष ठरे, केम के तेओश्रीनी वाणीमां पण सत्ने सत् तरीके अने असत्ने
असत् तरीके कहेवाय छे.
गुणने भला अने अवगुणने बूरा कहे छे. जो गुण–अवगुणनो विवेक न करे तो तो मूढभाव छे.
उत्तरः–सर्वेनुं प्रयोजन एक नथी. सर्वेनुं प्रयोजन जो एक ज होय तो जुदा जुदा मत शा माटे कहो छो?
स्वरूप बतावीने वीतरागभाव पोषवा