मनावे, पर संगथी आत्माने लाभ मनावे, आत्माने जडनो कर्ता ठरावे, व्यवहार करतां करतां निश्चय प्रगटशे एम
मनावे के समज्या वगर क्रियाकांड करतां करतां धर्म मनावे–ए बधाय मिथ्याद्रष्टि छे, ते बधानो संग धर्मबुद्धिथी
छोडवा जेवो छे. वळी कोई जीवो वीतरागी जिनप्रतिमाने माने, परंतु तेने लीधे पोताने शुभभाव के धर्म थाय एम
माने ते पण सम्यग्द्रष्टि नथी. धर्म करवा माटे आ ज पहेली रीत छे. पोताना अनादिना असत् मान्यतारूपी लाकडां
राखीने धर्म थई शके तेम नथी.
होय छे अने कोई वखते हाजर नथी होता; सिद्धभगवाननुं चिंतवन करे त्यारे ते साक्षात् हाजर न होय, अने कोई
वार शुभभाव वखते पुण्यना कारणे साक्षात् श्री जिनदेव के श्री जिनप्रतिमा निमित्तरूपे स्वयं हाजर होय पण खरी.
परंतु एकतापणे एम माने के जिनमतमां प्रतिमा छे ज नहि तो ते मिथ्याद्रष्टि छे तेने शुभ रागनुं अने ते रागना
निमित्तोनुं ज्ञान नथी. हवे कोई यथार्थ जिनप्रतिमाने तो माने पण तेमना प्रत्येना शुभरागथी धर्म मनावे अथवा
तो ते निमित्तथी राग मनावे तो ते पण मिथ्याद्रष्टि छे. एवा मिथ्याद्रष्टिओनो संग न करवो.
होय अने पत्नी धर्मात्मा होय, त्यां शुं पत्नी तेना पति साथे कलेश करे? नहि, संसारना संबंध खातर संग होय ते
जुदी वात छे, पण ते पत्नी पोताना पति पासेथी धर्मनी आशा न राखे. वळी कोई शेठ मिथ्याद्रष्टि होय अने
सम्यग्द्रष्टि तेने त्यां नोकरी करता होय–एम पण बने, परंतु त्यां धर्मबुद्धि नथी. जिज्ञासुओमां सज्जनता अने
विवेक तो होय ज. सत समजवानी तैयारीवाळा जिज्ञासुओ प्रत्ये जिज्ञासुने वात्सल्यभाव होय ज. जेने जिज्ञासुओ
प्रत्ये प्रेम नथी अने उलटो तेनी निंदा करे छे ते पोते सत्नो जिज्ञासु नथी, तेने धर्मनो ज आदर नथी; धर्मबुद्धिए
एवाओनो संग ते कुसंग छे अने साधर्मीओ साथे वात्सल्य, धर्मचर्चा तथा धर्मात्माओनो संग ए सत्संग छे.
परंतु त्यां सामाना श्रद्धा–ज्ञानने सत् मानीने तेनी संगति करता नथी.
छोडाववाना हेतुथी जिज्ञासुने तेनो संग छोडवा कह्युं छे–ए निमित्तथी कथन छे. वळी पर्यायमां फेर छे तेने जाणीने
विवेक तो करवो जोईए. जो पर्याय अपेक्षाए पण कांई ज फेर न मानतो होय तो हलका माणसो साथे केम
व्यवहारमां संबंध नथी राखतो? स्त्रीने भगवान तरीके मानीने पगे केम नथी लागतो? पर्यायनो विवेक करवो
जोईए; तेम धर्ममां पण कोण धर्मी छे अने कोण अधर्मी छे तेनो विवेक करवो जोईए. राग–द्वेषमां धर्म छे एवी
मान्यता छोडवा जेवी छे अने एवी मान्यतावाळानो संग पण छोडवा जेवो छे. जेने त्रिकाळी द्रव्यनुं लक्ष थयुं तेने
पर्यायनो विवेक न होय एम बने ज नहि.
पहेलां एकलो व्यवहार होय अने ए व्यवहार निश्चयनुं कारण थाय. एम माननार जीव व्यवहारनो पक्ष छोडीने
कदी परमार्थ स्वभावनुं लक्ष करी शकशे नहि. निश्चय वगर व्यवहार होय ज नहि. माटे पहेलां व्यवहार अने पछी
निश्चय ए मान्यता खोटी छे. पण ज्यां निश्चयरूप स्वभावनो आश्रय होय त्यां ज साचो