प्रथमश्रावणः२४७३ः २०पः
(१प०) श्री समयसारनी प्रतिष्ठा अने कुंदकुंद आचार्यदेव
आजे वैशाख वद ८ छे. आजना मंगळ दिवसे आ स्वाध्याय मंदिरमां श्री समयसारजीनी महापूजनिक
प्रतिष्ठा थई छे. बे हजार वर्ष पहेलां महा उपकारी श्री कुंदकुंदाचार्यदेव आ भरतक्षेत्रे विचरता हता, तेओ
निर्ग्रंथमुनि हता. पोतानी ऋद्धिथी तेओ महाविदेहक्षेत्रमां श्री सीमंधरभगवान पासे गया हता अने त्यां आठ
दिवस रह्या हता. अने भगवाननो दिव्यध्वनि सांभळी पाछा भरतमां पधार्या हता. अने श्री समयसार,
प्रवचनसार, पंचास्तिकाय वगेरे महान शास्त्रोनी रचना करी हती. तेमां सर्वश्रेष्ठ श्री समयसार छे, तेनी प्रतिष्ठानो
मंगळिक दिवस आजे छे. आ काळे भरतक्षेत्रमां कुंदकुंदाचार्यदेवे तीर्थंकरसमान काम कर्युं छे, अपूर्व श्रुतनी प्रतिष्ठा
करी छे. अने अमृतचंद्राचार्ये टीकामां रहस्य खोलीने गणधर जेवुं काम कर्युं छे. कुंदकुंदाचार्य अपूर्व आत्मरमणतामां
झूलता हता, तेओने निर्ग्रंथ संतमुनिदशा हती. तेओश्रीए आ अष्टपाहुडमां कह्युं छे के निर्ग्रंथ–स्वभाव मार्गनो
विरोध करीने जेओ वस्त्रसहित मुनिपणुं मनावे छे तेमनी त्रसस्थिति पूरी थवा आवी छे. पोताने स्वभावना
आराधकभावनुं एकदम जोर छे अने अल्पकाळमां सिद्धदशा लेवानो पुरुषार्थ छे तेथी ते आराधकभावना जे विराधक
छे तेओ निगोद जाय छे एम कह्युं छे. वचली गतिओनो अल्पकाळ लक्षमां गौण करी दीधो छे.
(१प१) जैनधर्मनो पायो
व्यवहार श्रद्धा साची करे अने २८ मूळगुण पाळे, पण अंतरमां रागरहित, स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान–
स्थिरता–रूप जे धर्म छे ते प्रगट करे नहि तो ते भेदविज्ञानथी भ्रष्ट छे अने बाह्यक्रियामां धर्म माने छे, तेने जैननुं
नग्न बाह्य लिंग होवा छतां ते श्रद्धा भ्रष्ट छे. जैनधर्मनो पायो सम्यग्दर्शन ज छे. आत्मा पर जीवोनुं रक्षण तो करी
शकतो नथी, मात्र दयाना भाव करे ते पुण्य छे, पण ते धर्म नथी. धर्म तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ज छे. –१०–
–(गाथा–११)– (१प२) मूळ अने वृक्ष
दसमी गाथामां एम कह्युं छे के–जेनुं मूळ नाश थई गयुं छे एवा वृक्षने परिवारनी वृद्धि थती नथी
तेम सम्यग्दर्शनरूपी मूळ वगर मोक्षमार्ग होतो नथी. हवे अगीयारमी गाथामां तेथी ऊलटुं कहे छे के–जेवी
रीते मूळमांथी घणा परिवारवाळुं वृक्ष थाय छे तेवी रीते सम्यग्दर्शनरूपी मूळियामांथी मोक्षमार्गरूपी झाड
पांगरे छे.
(१प३) जे सत् समजवानो नकार करे छे ते आत्मानो ज नकार करे छे.
‘अत्यारे मत–मतांतर वधी गया छे तेथी साचुं नक्की करवानो वखत नथी.’ एम अज्ञानीओ कहे छे,
एटले तेनो अर्थ ए थयो के अत्यारे मिथ्यात्व छोडीने साचुं समजवानो वखत नथी. अत्यारे साची समजणनो
नकार करे छे एटले आत्मानो ज नकार करे छे, पण सत् समजवानी दरकार करता नथी.
सत् गमे त्यारे समजी शकाय छे. आत्मा अत्यारे छे के नहि? छे; तो जे वस्तु छे तेनो जेवो स्वभाव छे
तेवो केम न जाणी शकाय? अवश्य जाणी शकाय माटे वस्तु त्रिकाळ सत् छे अने सत्नी समजण त्रिकाळ थई
शके छे. –११–
भगवान श्री कुंदकुंद–कहान जैनशास्त्रमाळा
१.समयसार– प्रवचनो भाग–१गुजराती३–०–०११.आत्मसिद्धिशास्त्र (शब्दार्थ साथे)गुजराती०–४–०
२.समयसार– प्रवचनो भाग–३गुजराती३–०–०१२.आत्मसिद्धिशास्त्र (स्वाध्याय माटे)गुजराती०–२–०
३.पूजा–संग्रहगुजराती०–६–०१३.मुक्तिका मार्गहिन्दी०–१०–०
४.छह–ढालागुजराती०–१२–०१४.धर्मनी क्रियागुजराती१–८–०
५.समवसरण–स्तुतिगुजराती०–३–०१५.अनुभवप्रकाश अने सत्तास्वरूपगुजराती१–०–०
६.अमृतझरणांगुजराती०–६–०१६.सम्यग्ज्ञान–दीपिकागुजराती१–०–०
७.जिनेन्द्रस्तवनावलीगुजराती०–६–०१७.मोक्षशास्त्र–गुजराती टीकागुजराती३–८–०
८.नियमसार–प्रवचनो भाग–१गुजराती१–८–०१८.समयसार–प्रवचनो भाग ४गुजराती३–०–०
९.समयसार–प्रवचनो भाग–२गुजराती२–०–०१९.मूल में भूलहिन्दी०–१२–०
१०.जैनसिद्धांत प्रवेशिकागुजराती०–८–०
जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट– सोनगढ.