ः २०६ः आत्मधर्मः खास अंक
श्री सनातन जैन शिक्षणवर्ग, सोनगढ
उनाळानी रजाओ दरमियान ता. ४–प–४७ वैशाख वद १४ थी ता. २७–प–४७ सुधी सोनगढमां श्री जैन
स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी जैन दर्शन शिक्षण वर्ग खोलवामां आव्यो हतो. आ वखते शिक्षण वर्गमां त्रण
विभाग करवामां आव्या हता; तेमां ‘अ’ वर्गना विद्यार्थीओने मोक्षमार्ग प्रकाशकनो पहेलो अध्याय तथा जैन
सिद्धांत प्रवेशिकामांथी अध्याय चोथो शीखववामां आव्यो हतो. ‘ब’ वर्गना विद्यार्थीओने जैन सिद्धांत
प्रवेशिकामांथी अध्याय बीजो–तथा आत्मसिद्धिनी गाथा ४० थी ९० सुधी शीखववामां आवेल हतुं. अने ‘क’
वर्गना विद्यार्थीओने जैन सिद्धांत प्रवेशिकामांथी बीजा अध्यायना १७३ प्रश्न सुधी तथा आत्मसिद्धिनी गाथा १ थी
२३ सुधी शीखववामां आवेल हतुं. ता. २८–प–४७ ना रोज त्रणे वर्गनी लेखित परीक्षा लेवामां आवी हती अने
परीक्षा बाद विद्यार्थीओने लगभग २००) रू. नां पुस्तको इनाम तरीके वहेंचवामां आव्या हता. परीक्षा बाद बीजे
दिवसे “श्रीमद् राजचंद्र” ए मथाळावाळो एक निबंध अमदावादना शेठ माणेकलाल प्रेमचंदनी सूचनाथी
लखाववामां आव्यो हतो, तेमां भाग लेनार विद्यार्थीओने लगभग १००) रू. नां पुस्तको इनाम तरीके वहेंचवामां
आव्या हता. विद्यार्थीओने पूछायेला प्रश्नपत्र तथा तेना साचा जवाबो नीचे आपवामां आवे छे.
श्री जैन दर्शन शिक्षण वर्ग– परीक्षा
वर्ग अ
समय सवारना ९–१प थी ११. ता. २८–प–४७
(मोक्षमार्ग प्रकाशक)
(१) पंचपरमेष्ठिनुं स्वरूप लखो. १०
(२) अ. मंगळ करवावाळाने सहायता नहि करवामां तथा मंगळ न करनारने दंड न आपवामां
जिनशासनना भक्त देवादिक केम निमित्त बनता नथी, तेना कारणो आपो. १२
ब. केवां शास्त्र वांचवा–सांभळवा योग्य छे.
क. “सिद्धो वर्णसमाम्नायः” नुं रहस्य समजावो.
(जैन सिद्धांत प्रवेशिका)
(३) अ. संसारी जीवने एकी साथे ओछामां ओछा ने वधुमां वधु केटला भावो होय छे? ने ते कई
अपेक्षाए? १०
ब. उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम कया कया कर्मोनो थई शके?
क. मुक्त जीवोने कया भावो होय छे अने तेना पेटा भेदो कया कया छे?
ड. द्रव्येन्द्रिय तथा भावेन्द्रियनुं स्वरूप समजावो.
(४) क्षायिक सम्यक्त्व, लेश्या, अचक्षुदर्शन, संज्ञा, मनःपर्ययज्ञान, देशसंयम, लब्धि, उपयोग. ८
उपरना बोलो द्रव्य छे, गुण छे के पर्याय छे?
अ. द्रव्य होय तो कयुं द्रव्य?
ब. गुण होय तो कया द्रव्यनो?
क. पर्याय होय तो कया द्रव्यनो, कया गुणनो? तथा विकारी के अविकारी?
ड. पांच भावोमांथी ते दरेकने कयो भाव लागु पडी शके?
(प) अ. दर्शन उपयोगना प्रकार लखो. दरेक ज्ञानोपयोग पहेलां दर्शन उपयोग होय? होय तो केनी पहेलां
कयो? न होय तो कारण शुं? ते समजावो. ६
ब. जगतनां बधा द्रव्योमां कया गुणो अने भावो सामान्य होय?
क. उत्कृष्ट शुक्ल लेश्या धर्मनुं कारण कहेवाय के नहि ते कारण आपी समजावो.
(६) लेश्या, योग, विग्रहगति, संप्रतिष्ठित प्रत्येक, संकलेश परिणाम, निर्वृत्यपर्याप्तक समजावो. ४
‘अ’ वर्गना प्रश्नोना जवाब
पहेला प्रश्ननो जवाब
पंच परमेष्ठीनुं स्वरूप
श्री अरिहंतनुं स्वरूप–गृहस्थपणुं छोडी सम्यग्दर्शन–ज्ञान पूर्वक स्वरूप स्थिरता साधतां निश्चयरत्नत्रयरूप
मुनिधर्म अंगीकार करी, निजस्वभाव साधनवडे अनंतचतुष्टरूपे जे बिराजमान थया छे ते अरिहंत भगवान छे.
तेओ अनंतज्ञान वडे पोतपोताना अनंत गुण–पर्याय सहित समस्त जीवादि द्रव्योने युगपत् विशेषपणाए करी
प्रत्यक्ष जाणे छे, अनंत दर्शनवडे तेने सामान्यपणे अवलोके छे, अनंत वीर्यवडे एवा उपर्युक्त