Atmadharma magazine - Ank 045a
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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प्रथमश्रावणः२४७३ः २०९ः
शास्त्रो वडे तेनुं ज पोषण कर्युं त्यां भलुं थवानी तेमणे शुं शिक्षा आपी? मात्र जीवना स्वभावनो घात ज कर्यो.
एटला माटे एवां शास्त्रो वांचवा–सांभळवा योग्य नथी, तेमज लखवा लखाववा, प्रसिद्ध करवा के प्रशंसवा योग्य
नथी.
. ‘सिद्धो वर्ण समाम्नायः’ अर्थात् वर्ण उच्चारनो संप्रदाय स्वयंसिद्ध छे. अकारादि उच्चार तो अनादि
निधन छे, कोईए नवा कर्या नथी. आ सूत्र एम सूचवे छे के भाषानुं परिणमन स्वयं थाय छे तेमां जीवनो किंचित्
मात्र हाथ नथी. आम जे यथार्थपणे समजे ते परनुं–जडनुं कर्तृत्व छोडे. ‘हुं सारुं बोली शकुं–लखी शकुं,’ एवुं
अभिमान तेने रहे नहि. भाषावर्गणा तो जड छे, जडनुं परिणमन चैतन्य करे नहि ने चैतन्यनुं परिणमन जड करे
नहि, सौ स्वतंत्र रीते परिणमे छे. आम दरेक द्रव्यनुं स्वतंत्रपणुं ते कबूल राखे छे. स्वतंत्रता त्यां यथार्थता छे. ने
यथार्थता छे त्यां वीतरागता छे, एवुं आ सूत्रनुं रहस्य छे.
त्रीजो प्रश्ननो उत्तर
. छद्मस्थ जीवने एकी साथे ओछामां ओछा त्रण भावो होय छे.
क्षायोपशमिक, औदयिक अने पारिणामिक. अने केवळीने क्षायिक, औदयिक अने पारिणामिक होय छे.
मतिज्ञान आदि क्षायोपशमिक भाव छे, क्रोधादि औदयिक भाव छे अने जीवत्व आदि पारिणामिक भाव छे.
वधुमां वधु पांच भावो होय छे.
जे क्षायिक सम्यग्द्रष्टि जीव उपशम श्रेणि उपर चढीने उपशांत मोही छे तेने पांचे भावो होय छे. चारित्र
मोहनीयनो उपशम होवाथी उपशांत कषाय ते औपशमिक भाव छे.
दर्शन मोहनीयनो क्षय होवाथी क्षायिक सम्यग्दर्शन ते क्षायिक भाव छे. बाकीना त्रण भावो उपर मुजब.
एम वधुमां वधु पांच भावो होय.
. उदय, क्षय आठे कर्मोनो थई शके. उपशम, मोहनीयनो; क्षयोपशम ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय,
मोहनीय तथा अंतरायनो.
. मुक्त जीवोने क्षायिक भाव तथा पारिणामिक भाव होय छे.
(१) क्षायिक भावना पेटा भेदः–क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिक चारित्र, क्षायिक दर्शन, क्षायिकज्ञान, क्षायिकदान–
लाभ–भोग–उपभोग–वीर्य.
(२) पारिणामिक भाव शुद्ध होय छे.
. निर्वृत्ति अने उपकरणने द्रव्येन्द्रिय कहे छे. प्रदेशोनी रचना विशेषने निर्वृत्ति कहे छे. तेना बे भेद छेः–
(१) बाह्य निर्वृत्ति, अने (२) आभ्यंतर निर्वृत्ति.
(१) इन्द्रियोना आकाररूप पुद्गलनी रचना विशेषने बाह्य निर्वृत्ति कहे छे.
(२) आत्माना विशुद्ध प्रदेशोना इन्द्रियाकार रचनाविशेषने आभ्यंतर निर्वृत्ति कहे छे. जे निर्वृत्तिनो उपकार
(रक्षा) करे तेने उपकरण कहे छे. तेना बे भेद छेः–
(१) आभ्यंतर. (२) बाह्य.
(१) नेत्र इन्द्रियमां कृष्ण, शुक्ल मंडलनी माफक सर्वे इन्द्रियोमां जे निर्वृत्तिनो उपकार करे तेने आभ्यंतर
उपकरण कहे छे.
(२) नेत्र इन्द्रियमां पलक वगेरेनी माफक जे निर्वृत्तिनो उपकार करे तेने बाह्य उपकरण कहे छे. (उपकारनो
अर्थ निमित्त थाय छे.)
भावेन्द्रिय
लब्धि अने उपयोगने भावेन्द्रिय कहे छे.
(१) ज्ञानना उघाडने लब्धि कहे छे, तेमां ज्ञानावरण कर्मनो क्षयोपशम निमित्त होय छे.
(२) क्षयोपशम हेतुवाळा चेतनाना व्यापाररूप परिणामविशेषने उपयोग कहे छे.
चोथा प्रश्ननो उत्तर
(१) क्षायिक सम्यक्त्वः– जीवद्रव्यना श्रद्धागुणनो अविकारीपर्याय, क्षायिक भाव,
(२) लेश्याः– भावलेश्या=जीवद्रव्यना चारित्रगुण तथा योगगुणनो विकारी पर्याय, उदयभाव.
द्रव्यलेश्या=पुद्गल द्रव्यना वर्ण गुणनो पर्याय.
(३) अचक्षुदर्शनः– जीवद्रव्यना दर्शन गुणनो विकारी अने अविकारी पर्याय, क्षायोपशमिकभाव.
(४) संज्ञाः– जीवद्रव्यना चारित्रगुणनो विकारी पर्याय–उदयभाव.
(प) मनःपर्ययज्ञानः– जीवद्रव्यना ज्ञानगुणनो अविकारी पर्याय–क्षायोपशमिकभाव.