शास्त्रो वडे तेनुं ज पोषण कर्युं त्यां भलुं थवानी तेमणे शुं शिक्षा आपी? मात्र जीवना स्वभावनो घात ज कर्यो.
एटला माटे एवां शास्त्रो वांचवा–सांभळवा योग्य नथी, तेमज लखवा लखाववा, प्रसिद्ध करवा के प्रशंसवा योग्य
नथी.
मात्र हाथ नथी. आम जे यथार्थपणे समजे ते परनुं–जडनुं कर्तृत्व छोडे. ‘हुं सारुं बोली शकुं–लखी शकुं,’ एवुं
अभिमान तेने रहे नहि. भाषावर्गणा तो जड छे, जडनुं परिणमन चैतन्य करे नहि ने चैतन्यनुं परिणमन जड करे
नहि, सौ स्वतंत्र रीते परिणमे छे. आम दरेक द्रव्यनुं स्वतंत्रपणुं ते कबूल राखे छे. स्वतंत्रता त्यां यथार्थता छे. ने
यथार्थता छे त्यां वीतरागता छे, एवुं आ सूत्रनुं रहस्य छे.
जे क्षायिक सम्यग्द्रष्टि जीव उपशम श्रेणि उपर चढीने उपशांत मोही छे तेने पांचे भावो होय छे. चारित्र
(२) आत्माना विशुद्ध प्रदेशोना इन्द्रियाकार रचनाविशेषने आभ्यंतर निर्वृत्ति कहे छे. जे निर्वृत्तिनो उपकार
(१) नेत्र इन्द्रियमां कृष्ण, शुक्ल मंडलनी माफक सर्वे इन्द्रियोमां जे निर्वृत्तिनो उपकार करे तेने आभ्यंतर
(१) ज्ञानना उघाडने लब्धि कहे छे, तेमां ज्ञानावरण कर्मनो क्षयोपशम निमित्त होय छे.
(२) क्षयोपशम हेतुवाळा चेतनाना व्यापाररूप परिणामविशेषने उपयोग कहे छे.
चोथा प्रश्ननो उत्तर
(१) क्षायिक सम्यक्त्वः– जीवद्रव्यना श्रद्धागुणनो अविकारीपर्याय, क्षायिक भाव,
(२) लेश्याः– भावलेश्या=जीवद्रव्यना चारित्रगुण तथा योगगुणनो विकारी पर्याय, उदयभाव.
द्रव्यलेश्या=पुद्गल द्रव्यना वर्ण गुणनो पर्याय.
(३) अचक्षुदर्शनः– जीवद्रव्यना दर्शन गुणनो विकारी अने अविकारी पर्याय, क्षायोपशमिकभाव.
(४) संज्ञाः– जीवद्रव्यना चारित्रगुणनो विकारी पर्याय–उदयभाव.
(प) मनःपर्ययज्ञानः– जीवद्रव्यना ज्ञानगुणनो अविकारी पर्याय–क्षायोपशमिकभाव.