प्रथमश्रावणः२४७३ः २११ः
(प) खाली जग्या पूरोः (क) आत्मा...नित्य छे,....पलटाय
(ख) वैराग्यादि...तो, जो सह......
(ग) गमे ते त्रणना शब्दार्थ आपोः
क्रियाजड, प्रेरणा, छद्मस्थ, अवगाहन.
(जैन सिद्धांत प्रवेशिका)
३. पांचमांथी कोई पण चार प्रश्नोना जवाब लखोः १२
(१) जीवने कया कया लक्षणवाळो मानीए तो लक्षणना त्रण दोषमांथी एक एक दोष आवी पडे?
(२) सामान्य अगुरुलघुत्वगुण तथा विशेष अगुरुलघुत्वगुणनी व्याख्या आपी ते कोने कोने होय ते लखो.
(३) कोई पण त्रणनी व्याख्या आपोः– (क) समुद्घात, (ख) चारित्र, (ग) मनःपर्ययज्ञान, (घ)
लक्षण, (ड) प्रत्यभिज्ञान.
(४) गुरुदेवनी स्तुतिवाळो श्लोक अर्थ सहित लखो.
(प) (क) जे द्रव्योने अनादिअनंत स्वभावव्यंजनपर्याय होय तेमनां नाम लखो.
(ख) जीवना स्वभावअर्थ पर्यायनुं द्रष्टांत लखी ते कोने होय छे ते जणावो.
४. नीचेना पदार्थोमांथी द्रव्य, गुण अने पर्याय ओळखी काढो. १२
(१) धारणा, (२) आत्मप्रदेशोनुं चंचळ थवुं, (३) सूक्ष्मत्व, (४) भावेंद्रिय, (प) खरबचडापणुं, (६)
कषाय, (७) जीव, (८) परिणमनहेतुत्व.
(क) उपरना पदार्थोमांथी जे द्रव्य होय तेनुं मुख्य लक्षण आपो.
(ख) उपरना पदार्थोमांथी जे गुण होय ते कया द्रव्यनो छे ते जणावो.
(ग) उपरना पदार्थोमांथी जे पर्याय होय ते कया द्रव्यना कया गुणनो, केवो (विकारी के अविकारी) पर्याय
छे ते लखो.
ब वर्गना प्रश्नोना जवाब
पहेला प्रश्ननो उत्तर
आ जीव एक मात्र पोताना आत्माना स्वरूपना साचा ज्ञान विना ज अनंतकाळथी अनंत दुःख भोगवी
रह्यो छे. तेनो अनंतकाळ तो एकेन्द्रिय निगोद अवस्थामां ज गयो छे. त्यां अत्यंत मूढ अवस्थाए करी अपार
दुःखने पाम्यो. वळी कोई मंद कषायरूप परिणामना कारणे मनुष्यादि भवने पाम्यो तो त्यां पण अनादि मिथ्या
वासनाना कारणे देहने ज पोतानुं स्वरूप मानवा लाग्यो, अने देहनी संबंधी एवी अन्य व्यक्तिओमां मा–बाप–
स्त्री–पुत्रादिनी कल्पना करी ममत्व करवा लाग्यो. देहमां ज, अहंपणुं होवाथी ते देहना रक्षक तथा पोषक तरफ राग
करवा लाग्यो अने तेमां विघ्न करनार तरफ ते द्वेष करवा लाग्यो.
वळी धर्मना बहाने कुळ परंपराना देव–गुरुमां ज ममत्व करवा लाग्यो, निज पंथना क्रिया अने वेशने ज
मुक्तिनुं कारण मानवा लाग्यो. “देहनुं हुं करी शकुं, पर मने लाभ नुकशान करे, परने हुं लाभ नुकशान करी शकुं,
पुण्यथी धर्म थाय, व्यवहार करतां करतां निश्चयमोक्षमार्ग प्राप्त थाय, सारा देव–गुरु–शास्त्रनो संयोग होय तो
जीवनो मोक्ष थई जाय, नहि तो रखडवुं पडे, जीवने अनादिथी कर्म हेरान करे छे, ते कंई नरम पडे तो धर्ममां बुद्धि
लागे.” आवी आवी मिथ्या वासनाना कारणे आ जीव कदी साचा आत्मस्वरूपना मार्गे चडयो नहि परंतु साचा
मार्गथी निरंतर दूर रह्यो. फक्त शुभ–अशुभ भावोना कारणे चार गतिमां भ्रमण करीने अनंत दुःख पामतो रह्यो.
हवे अनंत दुःखथी मुक्त थवा माटे जीवे सत्–समागमे आत्माना साचा स्वरूपने ओळखवुं जोईए, जाणवुं
जोईए. आ आत्मा देहथी भिन्न ज्ञानस्वरूप छे, अविनाशी अने स्वतंत्र छे. आ जड देह साथे तेने कंई संबंध
नथी, तेथी जीव तेनुं कांई करी शके नहि. वळी अंदरमां परद्रव्यानुसारे दया–दान–पूजा–भक्तिरूप शुभ के हिंसा–
काम–क्रोधरूप अशुभ लागणी थाय छे ते पण जीवनुं स्वरूप नथी केमके ते क्षणिक विकारी उपाधि भावो छे. आ
प्रमाणे देहादि संयोगोथी अने शुभाशुभ विकारोथी भिन्न पोताना त्रिकाळी ज्ञान–दर्शनरूप स्वभावनी जो जीव श्रद्धा
करे तो तेने सर्व प्रथम सम्यग्दर्शनरूप धर्म प्रगट थाय अने त्यार पछी स्वरूपमां स्थिरता करी अनुक्रमे समस्त
रागनो नाश करी वीतराग सर्वज्ञ थाय त्यारे पोताना स्वाभाविक निर्मळ अनंत सुखने पामे. आज अनंत दुःखथी
मुक्त थवानो मार्ग छे.
बीजा प्रश्ननो उत्तर
(१) मतार्थी जीव तेने कहेवाय के जे वस्तुस्वरूपथी ऊलटी एवी पोतानी मिथ्या मान्यताने पकडी राखे. ते
मतार्थी जीव धर्मनुं आराधन मिथ्या कल्पनाए करे छे परंतु ज्ञानी पुरुषोए कहेला सत्य मार्गने धारतो नथी. आ
मतार्थी जीव देव–शास्त्र–गुरुनुं पण केवुं विपरीत स्वरूप समजे छे, ते कहीए छीए.