विकारीभावने औदयिकभाव कहेवाय छे, ते भाव क्षणिक छे. मारुं त्रिकाळी स्वरूप क्षणिक विकारथी रहित छे– एम
जेने स्वभावद्रष्टि थई अने विकार उपरथी द्रष्टि टळी गई ते जीवना अंतरमांथी जन्म–जरा–मरणनी शंका, भय ने
त्रास नीकळी जाय छे. स्वभाव स्वीकार्यो एने जन्म–मरणनी शंका केम रहे? जन्म–मरणनुं कारण तो विकार छे,
स्वभावमां विकार नथी, तेथी जेणे स्वभाव स्वीकार्यो अने प्रतीत करी तेने भवनो त्रास होतो नथी अर्थात् मारे
घणा भव हशे एवी तेने शंका होती नथी.
ते एम निःशंक थाय छे के हवे एवो कोई भाव के कोई कर्म नथी के जे मने स्वभावथी च्यूत करीने संसारमां
रखडावे. हवे मारा स्वभावनी द्रष्टिथी निर्मळतानी ज उत्पत्ति छे अने विकारनी नास्ति छे. एवी निःशंकता थतां
भवनो त्रास अंतरमांथी टळी जाय छे.
आजे दसमुं वर्ष बेसे छे.
निर्मळदशा प्रगटे, ते ज मंगळिक छे. पहेलां तो पोताना स्वभावनो विश्वास आववो जोईए. पोताने विकार
जेटलो ज मानी बेसे तो अविकारी थवानो पुरुषार्थ थाय नहि, पण जो विकाररहित स्वभाव त्रिकाळ छे तेनी
प्रतीति–विश्वास करे तो पर्यायमां विकाररहित दशा प्रगटवानो पुरुषार्थ करे. माटे पहेलां जेवो स्वभाव छे तेवो
विश्वासमां लेवो जोईए.
“हुं अमुक शेठने त्यां लूंट करवा आव्यो छुं, जेने नवी मातानां दूध पीवां होय ते घरनी बहार नीकळजो...” अहीं ते
चोरने पोतानी शक्तिनो विश्वास हतो–एटलुं द्रष्टांत लेवुं छे. तेम जेने सम्यग्ज्ञानरूपी विद्या होय तेने पोताना
स्वभावना जोरे एवो विश्वास होय के कोई कर्मनो उदय मने पाडवा समर्थ नथी. जे जीव धर्म करवा नीकळ्यो छे तेने
जो पोतानी शक्तिनो विश्वास नहि होय तो धर्म क्यांथी करशे? तने तारी स्वभाव शक्तिनो विश्वास छे के नहि? तुं
कोण छो? शुं शुभभाव करवा जेटली ज तारी शक्ति छे? के बीजी कांई शक्ति छे? आत्मा परमार्थे एने कहेवाय के
जेनामां पुण्य–पाप विकार नथी. अपूर्णता नथी पण शुद्ध स्वभावरूप छे.–एवा स्वभावनी जेणे श्रद्धा करी तेने एवी
शंका न होय के भविष्यमां कर्मनो उदय आवे ने मने पाडी दे. जीव स्वभाव ते पारिणामिक भाव छे. ने विकार ते
औदयिकभाव छे. जेने रखडवानी शंका छे, तेने जीवतत्त्वनी श्रद्धा नथी. जीवतत्त्वनी श्रद्धा त्यां पडवानी शंका नहि,
ने पडवानी शंका त्यां जीवतत्त्वनी श्रद्धा नहि.