जेणे प्रतीति करी नथी ते जीव आराधक थई शकतो नथी. अने पोताना चैतन्यस्वभावनी प्रतीतिनुं जोर
लईने ज्ञानी ऊठया ते ऊठया, त्यां कर्म प्रकृतिओ भागी जाय छे. पांच इन्द्रियोथी पार स्वाधीनज्ञान वडे
शुद्धात्मस्वभावनी प्रतीति करीने कृष्ण (कर्मने हणी नाखनार आत्मा) जाग्रत थयो, तेने पाछो पाडवा कोई
कर्म समर्थ नथी, चैतन्यसामर्थ्य पासे कोई पण कर्म के विकार टकी शकवा समर्थ नथी. जे राग छे ते टळवा
खातर ज छे. आम जेने स्वभावसामर्थ्यनी प्रतीति नथी ते त्रणकाळमां धर्मी नथी. खरेखर कर्म तो जड
पुद्गलद्रव्यनी पर्याय छे, ते जीवथी जुदां छे, तेथी कर्मनो उदय ज्ञानी के अज्ञानी कोई जीवने कांई करी शकतो
नथी.
रखडवानी शंका छे तेने सम्यग्दर्शन प्रगटे ज नहि. सम्यग्दर्शन थतां चैतन्यस्वभावनी प्रतीति थई, चैतन्यस्वभाव
भवरहित छे एटले भवरहितपणानी प्रतीति थई अने भवनी शंका टळी गई. शास्त्रमां भवनी वात करी होय के–
सम्यग्दर्शनथी भ्रष्ट थाय तो वधारेमां वधारे अर्धपुद्गलपरावर्तन रखडे, ए भ्रष्ट थवानी अने रखडवानी वात
बीजाने माटे छे, पण मारा भावमां हुं पाछो पडवानो नथी, उत्कृष्ट आराधनानी ने एकावतारीपणानी वात करी
होय ते मारा आत्मा माटे छे.
सांभळीने तरत ज कह्युं के–जे बे वहाण तर्यां छे ते बे मारां ज छे, अने जे डुब्यां छे ते बीजानां छे. मारा वहाण डुब
नहि, केमके मारा पुण्य जागृत छे. एम पुण्यवंतने पुण्यनो विश्वास होय छे. अहीं धर्मनो संबंध पुण्य साथे नथी पण
पुरुषार्थ साथे छे. पुरुषार्थवंत जीवोने पोताना पुरुषार्थनी प्रतीति होय छे, अने पाछा पडवानी शंका होती नथी. आ
दुःषम पंचमकाळ छे, तेमां तरनारा जीवो बहु ज थोडा अने विराधक जीवो घणां थाय छे त्यारे ए सांभळीने
आत्मार्थि जीव तो कहे छे के भले तरनारां जीवो थोडा, पण हुं तरनारमां ज छुं, केमके मारो पुरुषार्थ जागतो छे. मने
मारा पुरुषार्थनी प्रतीति छे. पूछो केवळीभगवानने. केवळीभगवाने पोताना केवळज्ञानमां जे कोई तरनारा जीवो
जोया छे तेमां एक हुं छुं, एम मने केवळी भगवानना ज्ञाननी अने मारा पुरुषार्थनी प्रतीति छे. केवळीभगवाननुं
ज्ञान न फरे, तेम मारो पुरुषार्थ पाछो न फरे.–आवी जेने निःशंकता नथी प्रगटी ते जीवने धर्म ज प्रगटयो नथी, ते
मूढ छे, पुरुषार्थहीन छे.
पोतानो मान्यो छे तेणे पोताना चैतन्यस्वरूप जीवतत्त्वने मान्युं नथी; विकाररहित एवा शुद्ध जीवतत्त्वनी जेने
प्रतीत नथी तेने पोताना जाणनार स्वभावनी प्रतीत नथी एटले के तेने पोताना ज्ञानतत्त्वनी प्रतीत नथी.
जेने ज्ञानतत्त्वनी प्रतीति नथी तेने ज्ञेयतत्त्वोनी पण प्रतीत नथी एटले के जेने जीवनी प्रतीत नथी तेने कोई
पण द्रव्यना स्वरूपनी प्रतीत नथी. जीवना स्वभावने नहि जाणनारनुं बधुं ज्ञान मिथ्या छे. पोताना
जीवास्तिकायनी प्रतीत वगर अन्य अस्तिकायनी प्रतीत थाय नहि. पोताना ध्रुव स्वभावनी प्रतीत वगर
उत्पाद–व्ययनी प्रतीत थाय नहि.
नथी कांई पूर्व भवना संस्कार, ए जीव धर्म क्यांथी लावे? मूळ तो जीवनी पोतानी पात्रतामां ज खामी छे. जो पात्र
थाय तो सत्नी प्राप्ति थया वगर रहे नहि. पोतानी बधी मान्यता उपर मींडा वाळीने जो पात्र थईने सत्समागम
करे अने सत्नो महिमा लावीने स्वभावनी रुचिनो प्रयत्न करे तो ज अपूर्व स्वभाव