Atmadharma magazine - Ank 046
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः २२८ः आत्मधर्मः ४६
रूप चैतन्य स्वभावमां ज जोवानुं रह्युं. ए स्वभावमां विकार नथी, कर्मनी उपाधि नथी, वर्तमान पण ते
एकरूप शुद्ध छे, ए स्वभावना लक्षे शुद्धपर्यायनी उत्पत्ति थाय छे अने विकारनो नाश थाय छे; ए ज मंगळिक
छे. पर्यायमां विकार थाय छे पण त्रिकाळ स्वभावमां विकार नथी. पोतानी पर्यायमां विकार होवा छतां ‘मारो
स्वभाव विकार रहित छे’ एवुं भान साधक धर्मात्माने ज होय छे, अने तेओ ते स्वभावनी एकाग्रताना जोरे
विकारनो नाश करे छे. केवळीभगवानने विकार होतो ज नथी; अज्ञानीने पर्यायमां विकार होय छे पण विकार
रहित स्वभावनुं भान होतुं नथी, तेथी तेने विकार कदी टळतो नथी. ज्ञानीने पूर्ण अविकारी स्वभावना लक्षे
अविकारी पणानो अंश प्रगटयो छे, ते अंश द्वारा पूर्ण स्वभावनी एकाग्रतावडे पूर्णता प्रगट करे ज. माटे भव्य
जीवोए पोताना आत्मामां मंगळिक पर्याय प्रगट करवा माटे, ए पांच भावोने ओळखीने पारिणामिक
स्वभावनो परम महिमा लावीने तेमां ज लीन थवुं.
* * * * * *
तीर्थराज श्री सोनगढमां धार्मिक महोत्सव
धर्मक्षेत्र सोनगढ
सोनगढमां परम पूज्य सद्गुरुदेवश्रीना पुनित प्रभावे भारतभरमां आध्यात्मिक तत्त्वज्ञाननो जे
प्रचार थई रह्यो छे तेने लीधे सोनगढ आजे जगप्रसिद्ध बन्युं छे, अने तत्त्वज्ञानरसिक मुमुक्षुओनी मीट
तेना उपर मंडायेली छे. आजे तो जैनशासननी राजधानी तरीके सोनगढने ओळखावीए तो ते पण
व्याजबी छे.
तीर्थधाम सुवर्णपुरीमां उजवाता धार्मिक महोत्सवने नजरे निहाळनारने एम लाग्या वगर रहेतुं नथी
छे.
विद्वत्परिषद प्रसंगे पधारेला एक विद्वान भाईए तो कह्युं हतुं के–संसार आजे कई दिशामां जई रह्यो छे
अने शुं शुं ऊथल पाथल थई रही छे तेनी सोनगढमां वसनारा मुमुक्षुओने जाण नथी. एटले के त्यां आखोय दिवस
तत्त्वज्ञाननी प्रवृत्ति एवी बनी रहे छे के मुमुक्षुओ तेमां ज रत रहे छे.
सोनगढमां शुं शुं छे?
(१) श्री जिनमंदिरः–तेमां मूळनायक तरीके परम उपकारी श्री सीमंधर भगवाननी उपशमरस नीतरती
प्रतिमा बिराजमान छे. आ उपरांत श्री शांतिनाथप्रभु, पद्मप्रभु, महावीरप्रभु, ऋषभदेवप्रभु अने पार्श्वनाथ
प्रभुनी मूर्तिओ पण बिराजमान छे. उपरना भागमां श्री नेमीनाथ भगवाननी तीव्र वैराग्य मूद्रावंत प्रतिमा
शोभे छे.
(२) श्री समवसरण मंदिर (धर्मसभा)ः– जिनमंदिरनी पाछळ अद्भुत समवसरणनी रचना छे, तेनी
रचना घणी ज शोभायमान छे; श्री सीमंधरभगवान पासे महाविदेहमां जईने श्रीकुंदकुंदाचार्यदेव तेओश्रीनी
दिव्यवाणी झीली रह्या छे–एवुं द्रश्य तेमां नजरे पडे छे; उपरांत श्री गणधरदेव, संतोना टोळां, देवो–मनुष्यो ने
तीर्यंचो श्रोताओ वगेरे द्रश्यो छे.
(३) श्री जैनस्वाध्याय मंदिरः–जेमां हंमेशां व्याख्यान थाय छे अने पू. गुरुदेवश्री बिराजमान छे.
(४) श्री समयसार–प्रतिष्ठाः–श्री जैनस्वाध्याय मंदिरमां वीतरागदेवनी साक्षात् वाणी समान् परमागम
श्री समयसारजीनी विधिपूर्वक प्रतिष्ठा करवामां आवी छे. तेमां चांदीना पतरां उपर कोतरेलुं समयसार पण छे. आ
“प्रतिष्ठा–मंदिर” जोतां ज एम ख्यालमां आवी जाय छे के आखा भारतमां श्री समयसार परमागमनी सर्वोत्कृष्ट
भक्ति ने बहुमान जो क्यांय होय तो ते अहीं ज छे. अने ज्यारे समयसार उपर सद्गुरुदेवश्रीना प्रवचनोने
सांभळीए त्यारे एम ख्याल आवे छे के समयसारमां भरेला ऊंडा–ऊंडा तत्त्वज्ञानने सर्वोत्कृष्टपणे वर्तमानमां
समजवानुं स्थान सोनगढ ज छे.
(प) भगवान श्री कुंदकुंद प्रवचन मंडपः–श्रीवीतरागी संत मुनिओना परम ज्ञान–ध्यान–भक्ति अने
वैराग्यमय द्रश्योथी आ मंडपनी भव्य सजावट थई छे. आ मंडपनी धार्मिक सजावट अथवा तो ‘धर्मनुं प्रदर्शन’
जोईने मुमुक्षुओनां हृदयोमां आत्मिक भावनानी ऊर्मिओ जाग्या वगर रहेती नथी...श्रोताओने माटे श्री
जैनस्वाध्याय मंदिर टूंकुं पडयुं अने आ नवो श्री–