Atmadharma magazine - Ank 046
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 19 of 21

background image
ः २३०ः आत्मधर्मः ४६
वढवाण शहेरमां श्री जिनमंदिर अने श्री जैनस्वाध्यायमंदिरनी तैयारी
ता. १८मीए सवारना व्याख्यान पछी जाहेर करवामां आव्युं हतुं के वढवाणना मुमुक्षुओए पोताना गाममां
श्री जिनमंदिर तथा स्वाध्याय मंदिर कराववा माटेना फंडनी शरूआत करी छे, जेमां रू. ७२००) एकठा थया छे, अने
ए रकम उपरांत त्यांना एक स्थानिक मुमुक्षुभाईए रू. ७०००) रोकडा तथा लगभग रू. ३०००) नी किंमतनी
जमीन आपवा वचन आप्युं छे.
श्री जिनेन्द्रदेवनी रथयात्रा
ता. १९मीए सवारे व्याख्यान बाद ९ थी १० श्री जिनेन्द्रदेवनी रथयात्रा नीकळी हती. रथयात्रामां चांदीनी
पालखीमां बिराजमान जिनेन्द्रदेव, इन्द्रध्वज, चांदीनां अष्टमंगळ द्रव्यो, चांदीनी आठ छडीओ, चांदीना भरतथी
भरेला सिद्धांत सूत्रो, मुकुटबंध ‘सद्धर्म प्रभावक दुदुंभी मंडळी’ वगेरे–अने सकल संघनो अत्यंत उत्साह–तेनाथी
रथयात्रा घणी शोभी ऊठती हती. रथयात्रामां उल्लासथी केटलाक भाईओ तो जिनेन्द्रदेव पासे नाची उठता
हता...रथयात्रा फरीने ज्यारे जिनेन्द्रदेव जिनमंदिरमां पधार्या त्यारे तेमनी समीपे भक्तिनी मोटी धून लेवामां आवी
हती, ने ते वखते प्रभुश्रीनी वीतरागता नीरखी–नीरखीने मुमुक्षु भक्तोना हृदयो नाची ऊठतां हतां.
श्रुतज्ञान पूजन
ता. २०मीए सवारे व्याख्यान पछी तरत सकल संघे श्रुतज्ञानपूजन कर्युं हतुं. ए वखते भाईओ
‘जयसमयसार’ नी धून लेता हता, ते जोनारने आश्चर्यथी समयसारनुं बहुमान थतुं हतुंः वच्चमां एक चांदीना
सिंहासन उपर समयसारजीने पधरावीने मुमुक्षुभाईओ तेनी प्रदक्षिणा करता हता अने वच्चमां कोई कोई भाईओ
समयसारनी सामे नाची ऊठता हता. ते वखतनुं द्रश्य घणुं उल्लासमय अने भक्तिप्रेरक हतुं.
प्रतिक्रमण
ता. २०मीए सांजे प।। थी ८ सुधी सकलसंघे प्रतिक्रमण कर्युं हतुं; ए दिवसे ‘सर्व सामान्य प्रतिक्रमण’ मां
छापेला बन्ने प्रतिक्रमण करवामां आव्यां हतां प्रतिक्रमण घणी ज शांतिथी थयुं हतुं. ए वखते बधा भाईओना
हाथमां पुस्तक रहेतुं होवाथी सर्वे प्रतिक्रमणना भावोने बराबर समजी शके छे.
शास्त्रीजीनी रथयात्रा
ता. २१मीए सवारनुं व्याख्यान बंध हतुं अने ते वखते (८ थी ९) शास्त्रजीनी रथयात्रा नीकळी हती.
रथयात्रा फरीने आव्या बाद स्वाध्याय मंदिरमां ‘मेरा जैनधर्म अणमोला...’ ए स्तवन गवायुं हतुं, ते पछी पू.
गुरुदेवश्रीए श्रीजयधवलामांथी मंगळिक संभळाव्युं हतुं. त्यारबाद श्री सद्गुरुस्तुति करी हती.
गुरुदेवश्रीए गवडावेली भक्ति
भक्ति एटले पहेलुं स्वतन पू. गुरुदेवश्रीए गवडाव्युं हतुं...ते वखते मुमुक्षुओ शांतरस नीतरती भक्तिमां
महालता हता ए भक्तिथी मुमुक्षुओमां लीलाल्हेर थई गया हता.
ए रीते उल्लासपूर्वक धर्ममहोत्सव उजवायो हतो.
सोनगढमां पुण्यनी विशेषता
चोवीसे कलाक आत्मकल्याणनी ज भावनानुं रटण रह्या करे, अने परम सत्य तत्त्वज्ञाननो ज आदर तथा
बहुमान रह्या करे, वातो करे तो तत्त्वनी, विचार आवे तो तेनी ज मुख्यताना, ने स्वप्नां पण तेने ज लगतां,–एवी
हालतमां जे ऊंचा पुण्य बंधाई जाय छे तेवां पुण्य पण बीजे क्यां हशे? अने सत् असत्नो विवेक करीने समजे छे
ते तो अपूर्व कल्याणनुं कारण छे. मोटो फेर ए छे के तेओ ते पुण्यमां धर्म मानता नथी, तेनी रुचि करता नथी. वळी
एवी ज रीते सत् समजवा तरफनो विकल्प, सत्देव–गुरु–शास्त्रनी भक्ति–बहुमान अने ऊच्च भावना रह्या करे ते
शुं व्यवहार नथी? सोनगढमां छे तेवो सद् व्यवहार पण बीजे नहि होय! परंतु, ते व्यवहार करतां करतां धर्म थशे–
एवी मिथ्या मान्यता तेओ मानता नथी. पुण्य अने व्यवहार तथा तेनां निमित्तो–ए तो बधुं छे परंतु तेनाथी
आत्मानो धर्म थशे–एवी मान्यतानो निषेध छे.–धर्म तो आत्मानो शुद्ध स्वभाव ओळखवाथी ज थाय छे. ज्ञानीओ
पहेलां पुण्य छोडावतां नथी परंतु पुण्यनी रुचि छोडावे छे, पुण्यनी भावना अथवा तो पुण्यथी धर्म थाय–एवी
मिथ्या मान्यता ज छोडावे छे.
गुरुदेवश्रीनो उपकार
आ रीते, धर्मक्षेत्र सोनगढमां उल्लासपूर्वक जे धर्म महोत्सवो ऊजवाय छे ते अपूर्व धर्मना माहात्म्यनुं
भान करावनार तो पूज्य गुरुदेवश्री ज छे. तेओश्रीनी परम करूणावडे जे सत्धर्मनी प्रभावना थई रही छे ते
प्रगट छे.