ः २१४ः आत्मधर्मः ४६
श्री जैन शिक्षण वर्ग– सोनगढ
(उनाळानी रजाओ दरमियान ता. ४–प–४७ वैशाख वद १४ थी ता. २७–प–४७ सुधी सोनगढमां श्री
जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी जैन दर्शन शिक्षण वर्ग खोलवामां आवेल हतो. ते वखते त्रण विभाग करवामां
आव्या हता. तेमांथी अ वर्गना प्रश्नोना उत्तर तथा ब वर्गना बे प्रश्नोना उत्तर प्रथम श्रावण मासना खास अंकमां
प्रगट थयेल छे. बाकीना प्रश्नोना उत्तर अहीं आपवामां आवे छे.)
त्रीजा प्रश्ननो उत्तर–
(१) जीवनुं लक्षण जो केवळज्ञान मानीए तो ते लक्षणमां अव्याप्ति नामनो दोष आवे छे केमके केवळज्ञान
सर्व जीवोमां व्यापतुं नथी. जीवनुं लक्षण जो अरूपीपणुं मानीए तो ते लक्षणमां अतिव्याप्ति नामनो दोष आवे छे
केमके अरूपीपणुं जीव सिवाय धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय अने काळद्रव्यमां पण व्यापे (–रहे) छे.
जीवनुं लक्षण जो मूर्तपणुं मानीए तो ते लक्षणमां असंभव नामनो दोष आवे छे केमके जीव त्रिकाळ अमूर्त
छे, मूर्त कदी नथी.
(२) जे शक्तिना निमित्तथी द्रव्यनी द्रव्यता कायम रहे अर्थात् एक द्रव्य बीजा द्रव्यरूप न परिणमे अथवा
एक गुण बीजा गुणरूप न परिणमे तथा एक द्रव्यना अनेक अथवा अनंत गुण विखराईने जुदा जुदा न थई जाय
तेने अगुरुलघुत्वगुण कहे छे. आ गुण जीवादि छये द्रव्योमां होय छे, तेथी तेने सामान्यगुण कहेवाय छे.
उच्चता अने नीचताना अभावने अगुरुलघुत्व प्रतिजीवी गुण कहे छे. आ गुण सर्व जीवोमां होय छे परंतु
गोत्रकर्मनो नाश थवाथी ते सिद्धने शुद्धपणे प्रगट थाय छे. नीचेनी दशामां ते अशुद्ध होय छे. आ अगुरुलघुत्व
प्रतिजीवी गुण जीव सिवायना कोई द्रव्योमां होतो नथी तेथी तेने विशेषगुण कहेवाय छे.
(३) क–मूळ शरीर छोडया वगर जीवना प्रदेशोनुं बहार नीकळवुं तेनुं समुद्घात कहे छे. ख–बाह्य अने
आभ्यंतर क्रियाना निरोधथी प्रादुर्भूत आत्मानी शुद्धिविशेषने चारित्र कहे छे. ग–द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भावनी मर्यादाथी
जे ज्ञान बीजाना मनमां रहेला रूपी पदार्थने स्पष्ट जाणे छे, तेने मनःपर्ययज्ञान कहे छे. घ–घणा एक मळेला
पदार्थोमांथी कोई एक पदार्थने जुदो करनार हेतुने लक्षण कहे छे. जेमकेः– जीवनुं लक्षण चेतना. ड–स्मृति अने
प्रत्यक्षना विषयभूत पदार्थोमां जोडरूप ज्ञानने प्रत्यभिज्ञान कहे छे. जेमकेः–आ ते ज मनुष्य छे के जेने काले जोयो
हतो.
(४) अज्ञान तिमिरान्धानां ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।
अर्थः– जेओए, ज्ञानरूपी अंजनसळी वडे अज्ञानरूपी अंधकारथी अंध थयेला जीवोनी आंखो खुल्ली करी ते
आत्मलक्ष्मीवंत गुरुराजने नमस्कार हो.
(प) क–धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय अने काळद्रव्योने अनादिअनंत स्वभावव्यंजन
पर्याय होय छे. ख–केवळज्ञान ते जीवनो स्वभाव अर्थपर्याय छे अने ते अरिहंत तथा सिद्ध भगवानने होय छे.
चोथा प्रश्ननो उत्तर–
(१) धारणा–ते जीव द्रव्यना ज्ञानगुणनी अपूर्ण पर्याय छे. (२) आत्म प्रदेशोनुं चंचळ थवुं–ते जीव
द्रव्यना योगगुणनो विकारी पर्याय छे. (३) सूक्ष्मत्व–ते जीव द्रव्यनो प्रतिजीवीगुण छे. (४) भावेंद्रिय–ते जीव
द्रव्यना ज्ञानगुणनी अपूर्ण पर्याय छे. (प) खरबचडापणुं–ते पुद्गलद्रव्यना स्पर्शगुणनो विकारी पर्याय छे.
(६) कषाय–ते जीव द्रव्यना चारित्र गुणनो विकारी पर्याय छे. (७) जीव–ते द्रव्य छे अने तेनो विशेषगुण चेतना
छे. (८) परिणमनहेतुत्व–ते काळद्रव्यनो विशेषगुण छे.
श्री जैनदर्शन शिक्षण वर्ग–परीक्षा
सवार ९–१प थी १०–३०. वर्ग क. ता. २८–प–४७
(जैन सिद्धांत प्रवेशिका)
(१) जीव द्रव्य कोने कहे छे? जीव द्रव्य केटलां अने क्यां छे? एक जीव केटलो मोटो छे? २प
(२) कार्मणवर्गणा ए कयुं द्रव्य छे? कार्मणवर्गणा अने कार्मणशरीर ए बेमां शो तफावत छे?
(३) शरीर, भाषा अने मन एने तमे जड कहेशो के चेतन? शा माटे?
(४) दरेक द्रव्यने आकार होय छे अने दरेक द्रव्य कोईने कोई ज्ञाननो विषय होय छे एम द्रव्यना कया
गुणो बतावे छे?
(प) नीचेना शब्दोना अर्थ समजावोः–
१. केवळज्ञान २. अंतनुं शरीर ३. अर्थक्रिया
(आत्मसिद्धि) (१) नीचेनी लीटीओनो भावार्थ समजावो. १प
१. प्रत्यक्ष सद्गुरु सम नहीं परोक्ष जिन उपकार. २. रोके जीव स्वछंद तो पामे अवश्य मोक्ष. ३. जातां
सद्गुरु शरणमां अल्प प्रयासे जाय.(वधु माटे जुओ पानुं २३१)