द्वितीयश्रावणः२४७३ः २१पः
सम्यग्दर्शन गुण छे के पर्याय?
(१) सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्रनी एकता ते मोक्षमार्ग छे. एमां सम्यग्दर्शन पण मोक्षमार्ग रूप छे.
मोक्षमार्ग ते पर्याय छे, पण गुण नथी. केमके जो मोक्षमार्ग ते गुण होय तो ते बधा जीवोमां अने सदाय रहेवो
जोईए. गुणनो कदी नाश न थाय तेम ज तेनी कदी उत्पत्ति न थाय. मोक्षमार्ग ते पर्याय होवाथी तेनी उत्पत्ति थाय
छे अने मोक्ष दशा प्रगट थतां ते मोक्षमार्गनो व्यय थई जाय छे.
(२) घणा जीवो सम्यग्दर्शनने त्रिकाळी गुण माने छे. परंतु सम्यग्दर्शन तो आत्माना त्रिकाळी श्रद्धा गुणनी
निर्मळ पर्याय छे, पण सम्यग्दर्शन ते गुण नथी.
(३) गुणनी व्याख्या तो एम छे के ‘जे द्रव्यना पुरा भागमां अने तेनी सर्वे हालतोमां व्यापे ते गुण छे.’
हवे जो सम्यग्दर्शन ते गुण होय तो आत्मानी बधी हालतोमां ते रहेवो जोईए. परंतु ए तो प्रत्यक्ष छे के आत्मानी
मिथ्यात्वदशामां सम्यग्दर्शन रहेतुं नथी, तेथी ते गुण नथी पण पर्याय छे.
(४) गुण होय ते त्रिकाळ होय अने पर्याय होय ते नवी प्रगटे. गुण नवो प्रगटे नहि पण पर्याय प्रगटे.
सम्यग्दर्शन तो नवुं प्रगटे छे, तेथी ते गुण नथी पण पर्याय छे. पर्यायनुं लक्षण उत्पादव्यय छे, गुणनुं लक्षण ध्रुव छे.
(प) जो सम्यग्दर्शन पोते गुण होय तो ते गुणनी पर्याय शुं? ‘श्रद्धा’ नामनो गुण छे अने सम्यग्दर्शन
(अर्थात् सम्यक्श्रद्धा) तथा मिथ्यादर्शन (अर्थात् मिथ्याश्रद्धा) ए बन्ने तेनी पर्यायो छे. सम्यग्दर्शन ते शुद्ध पर्याय
छे, मिथ्यादर्शन ते अशुद्धपर्याय छे.
(६) प्रश्नः– सम्यग्दर्शनने पर्याय मानवाथी तेनुं माहात्म्य ऊडी जशे, केमके पर्याय तो क्षणिक होय छे. अने
पर्यायद्रष्टिने तो शास्त्रमां मिथ्यात्व कह्युं छे?
उत्तरः– सम्यग्दर्शन पर्याय मानवाथी कांई तेनुं माहात्म्य ऊडी जतुं नथी. केवळज्ञान पण पर्याय छे अने
सिद्धपणुं ए पण पर्याय छे. पर्यायने पर्याय तरीके जेम छे तेम जाणवाथी ज तेनुं साचुं माहात्म्य आवे छे. भले
सम्यग्दर्शन पर्याय क्षणिक छे पण ते सम्यग्दर्शननुं कार्य शुं छे? सम्यग्दर्शननुं कार्य आखा त्रिकाळी द्रव्यने
स्वीकारवानुं छे अर्थात् सम्यग्दर्शन त्रिकाळी द्रव्यनी प्रतीत करे छे, अने ते पर्याय त्रिकाळी द्रव्य साथे एकाकार थाय
छे, तेथी तेनुं अपार माहात्म्य छे. आ रीते सम्यग्दर्शनने पर्याय मानवाथी तेनुं माहात्म्य ऊडी जतुं नथी. कोई
वस्तुना काळ उपरथी तेनुं माहात्म्य नथी पण तेना भाव उपरथी तेनुं माहात्म्य छे.
वळी, पर्याय द्रष्टिने शास्त्रमां मिथ्यात्व कह्युं छे ए वात साची ज छे; परंतु पर्यायद्रष्टि एटले शुं ते समजवुं
पडशे. सम्यग्दर्शन ते पर्याय छे अने पर्यायनुं पर्याय तरीके ज्ञान करवुं–एनुं नाम कांई पर्यायद्रष्टि नथी. द्रव्यने द्रव्य
तरीके अने पर्यायने पर्याय तरीके जाणवुं ते तो सम्यग्ज्ञाननुं काम छे. परंतु पर्यायने ज द्रव्य मानी ल्ये अर्थात् एक
पर्याय जेटलुं ज आखा द्रव्यने मानी ल्ये तो ते पर्यायना ज लक्षे अटकी जाय पण पर्यायना लक्षथी खसीने द्रव्यनुं
लक्ष करी शके नहि, एनुं ज नाम पर्यायद्रष्टि छे. अने सम्यग्दर्शनने पर्याय तरीके जाणवुं अने श्रद्धागुण तो आत्मा
साथे त्रिकाळ छे एम द्रव्य–गुणने त्रिकाळरूप जाणीने तेनी प्रतीत करवी एनुं नाम द्रव्यद्रष्टि छे अने ए ज
सम्यग्दर्शन छे.
(७) वळी जे जीव सम्यग्दर्शनने गुण माने ते जीव सम्यग्दर्शन प्रगटवानो पुरुषार्थ शा माटे करे? केम के
गुण तो त्रिकाळ छे तेथी ते जीव सम्यग्दर्शन प्रगटवानो पुरुषार्थ करे नहि. तेथी तेने सम्यग्दर्शन कदी प्रगटे नहि अने
मिथ्यात्व कदी टळे नहि, पण जो सम्यग्दर्शनने पर्याय तरीके जाणे तो ते पर्याय नवी प्रगट करवानो पुरुषार्थ करे. जे
पर्याय होय ते त्रिकाळी गुणना आश्रये होय अने गुण द्रव्य साथे एकरूप होय. एटले सम्यग्दर्शन पर्याय
श्रद्धागुणमांथी प्रगटे छे अने श्रद्धा गुण आत्मा साथे त्रिकाळ छे, एम त्रिकाळ द्रव्यना लक्षे सम्यग्दर्शननो पुरुषार्थ
प्रगटे छे. जेणे सम्यग्दर्शनने गुण ज मानी लीधो छे तेने कांई पुरुषार्थ करवानुं रहेतुं नथी. सम्यग्दर्शन तो नवी
प्रगटती निर्मळ पर्याय छे–एनो जेणे नकार कर्यो तेणे खरेखर पोतानी निर्मळ पर्याय प्रगटवाना पुरुषार्थनो ज
नकार कर्यो छे.
(८) शास्त्रमां पांच भावोनुं वर्णन करतां औपशमिक क्षायिक अने क्षायोपशमिक भावना भेदमां
सम्यग्दर्शनने गणाव्युं छे. ए औपशमिकादि त्रणे भावो ते पर्यायरूप छे, तो पछी सम्यग्दर्शन ते पण पर्यायरूप ज
छे. जो सम्यग्दर्शन गुण होय तो गुणने औपशमिक वगेरे अपेक्षा लागी शके नहि, तेथी ‘औपशमिक सम्यग्दर्शन’