Atmadharma magazine - Ank 046
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 5 of 21

background image
ः २१६ः आत्मधर्मः ४६
इत्यादि भेद होई शके नहि. पण सम्यग्दर्शन ते गुण नथी पण पर्याय छे तेथी तेने औपशमिक भाव इत्यादि अपेक्षा
लागु पडे छे.
(९) शास्त्रोमां कोई ठेकाणे अभेदनये सम्यग्दर्शनने ज आत्मा कहेवामां आवे छे; तेनुं कारण ए छे के त्यां
द्रव्य–गुण–पर्यायना भेदनुं लक्ष अने विकल्प छोडावीने अभेद द्रव्यनुं लक्ष कराववानुं प्रयोजन छे. द्रव्यार्थिकनये
द्रव्य–गुण–पर्यायमां भेद नथी, तेथी ए नये तो द्रव्य–गुण–पर्याय ए त्रणे द्रव्य ज छे. परंतु ज्यारे पर्यायार्थिकनये
द्रव्य–गुण–पर्यायनुं जुदुं जुदुं स्वरूप विचारवुं होय त्यारे तो, जे द्रव्य छे ते गुण नथी, जे गुण छे ते पर्याय नथी;
कारण के ए त्रणेनुं लक्षण भिन्न भिन्न छे–एम समजवुं जोईए. द्रव्य–गुण–पर्यायना स्वरूपने जेम छे तेम जाण्या
पछी तेना भेदनो विकल्प तोडीने अभेद आत्मस्वभावमां ढळतां एकलुं अभेद द्रव्य ज अनुभवमां आवे छे–एम
बताववा माटे शास्त्रमां द्रव्य–गुण–पर्यायने अभेद वर्णवे छे. परंतु तेथी एम न समजवुं के सम्यग्दर्शन ते त्रिकाळी
द्रव्य के गुण छे; परंतु सम्यग्दर्शन तो पर्याय ज छे एम समजवुं.
(१०) वळी सम्यग्दर्शनने केटलीक वार ‘गुण’ कहेवामां आवे छे. वास्तविकपणे तो ते श्रद्धागुणनी निर्मळ
पर्याय छे; पण जेम गुण त्रिकाळ निर्मळ छे तेम तेनी वर्तमान पर्याय पण निर्मळ थई गई होवाथी– अर्थात् निर्मळ
पर्याय गुण साथे अभेद थती होवाथी अभेदनये ते पर्यायने पण गुण कहेवामां आवे छे.
(११) श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे प्रवचनसारमां चारित्राधिकारनी ४२ मी गाथानी टीकामां सम्यग्दर्शनने
३८)
(१२) सम्यग्दर्शन ते श्रद्धा गुणनी निर्मळ पर्याय छे ए उपर जणावी दीधुं छे; ए ‘श्रद्धा’ गुणने
‘सम्यकत्व गुण’ ए नामथी पण ओळखवामां आवे छे. तेथी पंचाध्यायी अ. र गा. ९४प सम्यकत्वने त्रिकाळी गुण
कह्यो छे, त्यां सम्यक्त्व गुणने श्रद्धा गुण ज समजवो. ए रीते सम्यक्त्वने गुण जाणवो. ए सम्यक्त्व गुणनी निर्मळ
पर्याय ते सम्यग्दर्शन छे. कोई वार सम्यग्दर्शन पर्यायने पण ‘सम्यक्त्व’ कहेवामां आवे छे.
(१३) सम्यक्त्व (अर्थात् श्रद्धा) गुणनी बे प्रकारनी पर्यायो छे–एक सम्यग्दर्शन, बीजी मिथ्यादर्शन.
जीवोने अनादिथी सम्यक्त्वगुणनी पर्याय मिथ्यात्वरूप होय छे. पोताना पुरुषार्थ वडे भव्य जीवो ते मिथ्यात्व पर्याय
टाळीने सम्यक्त्व पर्याय प्रगट करी शके छे. सम्यग्दर्शन पर्याय प्रगट थतां, गुण–पर्यायनी अभेद विवक्षाथी
‘सम्यक्त्व गुण प्रगटयो’ एम पण कहेवाय छे. जेवा शुद्ध त्रिकाळी गुणो छे तेवी ज शुद्धपर्यायो सिद्धदशामां प्रगट
होय छे, एथी सिद्ध भगवानने सम्यक्त्व वगेरे आठ गुणो होय छे–एम कहेवाय छे; द्रव्य–गुण–पर्यायनी भेद
द्रष्टिथी जोतां खरेखर ते सम्यक्त्वादि आठ गुणो नथी पण पर्यायो छे–एम समजवुं.
(१४) श्रद्धागुणनी निर्मळ पर्याय ते सम्यग्दर्शन छे–ए व्याख्या गुण अने पर्यायना स्वरूपनो भेद
समजवा माटे छे. गुण त्रिकाळी शक्तिरूप होय छे अने पर्याय दरेक समये समये व्यक्तिरूप होय छे. गुणथी कार्य
थतुं नथी पण पर्यायथी कार्य थाय छे. पर्याय समये समये बदलाय छे तेथी दरेक समये नवी पर्यायनो उत्पाद अने
जुनी पर्यायनो व्यय थया ज करे छे. श्रद्धागुणनी क्षायिकपर्याय (–क्षायिकसम्यग्दर्शन) प्रगटे त्यारथी ते अनंतकाळ
सुधी एवी ज रहे छे तोपण समये समये नवी पर्यायनो उत्पाद अने जुनी पर्यायनो व्यय थया ज करे छे. ए प्रमाणे
सम्यग्दर्शन ते श्रद्धागुणनी एक ज समय पुरती निर्मळ पर्याय छे.
(१प) श्रीउमास्वामी आचार्यदेवे तत्त्वार्थसूत्रना पहेला अध्यायना बीजा सूत्रमां ‘तत्त्वार्थ श्रद्धानं
सम्यग्दर्शनम्’ एम कह्युं छे, तेमां ‘श्रद्धान्’ ते श्रद्धागुणनी पर्याय छे. ए रीते सम्यग्दर्शनपर्यायने अभेदनयथी
‘श्रद्धा’ पण कहेवामां आवे छे.
वळी श्री समयसारजीनी १पपमी गाथामां ‘जीवादि श्रद्धानं सम्यक्त्व
’ एम श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे कह्युं छे,
त्यां पण ‘श्रद्धान’ ते श्रद्धागुणनी पर्याय छे–एम समजवुं.
(१६) उपर प्रमाणे सिद्ध थयुं के–सम्यग्दर्शन तो श्रद्धागुणनी (–सम्यक्त्व गुणनी) एक समय पूरती पर्याय
छे.
* * * * * *