इत्यादि भेद होई शके नहि. पण सम्यग्दर्शन ते गुण नथी पण पर्याय छे तेथी तेने औपशमिक भाव इत्यादि अपेक्षा
लागु पडे छे.
द्रव्य–गुण–पर्यायमां भेद नथी, तेथी ए नये तो द्रव्य–गुण–पर्याय ए त्रणे द्रव्य ज छे. परंतु ज्यारे पर्यायार्थिकनये
द्रव्य–गुण–पर्यायनुं जुदुं जुदुं स्वरूप विचारवुं होय त्यारे तो, जे द्रव्य छे ते गुण नथी, जे गुण छे ते पर्याय नथी;
कारण के ए त्रणेनुं लक्षण भिन्न भिन्न छे–एम समजवुं जोईए. द्रव्य–गुण–पर्यायना स्वरूपने जेम छे तेम जाण्या
पछी तेना भेदनो विकल्प तोडीने अभेद आत्मस्वभावमां ढळतां एकलुं अभेद द्रव्य ज अनुभवमां आवे छे–एम
बताववा माटे शास्त्रमां द्रव्य–गुण–पर्यायने अभेद वर्णवे छे. परंतु तेथी एम न समजवुं के सम्यग्दर्शन ते त्रिकाळी
द्रव्य के गुण छे; परंतु सम्यग्दर्शन तो पर्याय ज छे एम समजवुं.
पर्याय गुण साथे अभेद थती होवाथी अभेदनये ते पर्यायने पण गुण कहेवामां आवे छे.
कह्यो छे, त्यां सम्यक्त्व गुणने श्रद्धा गुण ज समजवो. ए रीते सम्यक्त्वने गुण जाणवो. ए सम्यक्त्व गुणनी निर्मळ
पर्याय ते सम्यग्दर्शन छे. कोई वार सम्यग्दर्शन पर्यायने पण ‘सम्यक्त्व’ कहेवामां आवे छे.
टाळीने सम्यक्त्व पर्याय प्रगट करी शके छे. सम्यग्दर्शन पर्याय प्रगट थतां, गुण–पर्यायनी अभेद विवक्षाथी
‘सम्यक्त्व गुण प्रगटयो’ एम पण कहेवाय छे. जेवा शुद्ध त्रिकाळी गुणो छे तेवी ज शुद्धपर्यायो सिद्धदशामां प्रगट
होय छे, एथी सिद्ध भगवानने सम्यक्त्व वगेरे आठ गुणो होय छे–एम कहेवाय छे; द्रव्य–गुण–पर्यायनी भेद
द्रष्टिथी जोतां खरेखर ते सम्यक्त्वादि आठ गुणो नथी पण पर्यायो छे–एम समजवुं.
थतुं नथी पण पर्यायथी कार्य थाय छे. पर्याय समये समये बदलाय छे तेथी दरेक समये नवी पर्यायनो उत्पाद अने
जुनी पर्यायनो व्यय थया ज करे छे. श्रद्धागुणनी क्षायिकपर्याय (–क्षायिकसम्यग्दर्शन) प्रगटे त्यारथी ते अनंतकाळ
सुधी एवी ज रहे छे तोपण समये समये नवी पर्यायनो उत्पाद अने जुनी पर्यायनो व्यय थया ज करे छे. ए प्रमाणे
सम्यग्दर्शन ते श्रद्धागुणनी एक ज समय पुरती निर्मळ पर्याय छे.
’ एम श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे कह्युं छे,