Atmadharma magazine - Ank 046
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः २१८ः आत्मधर्मः ४६
श्रीमद्ने फक्त आटलुं ज्ञान ज हतुं एम नथी, पण तेमनामां भावे वैराग्यमय जीवन, जैनधर्म प्रत्येनुं
श्रद्धान, आत्मज्ञान तथा सम्यग्दर्शन पण हतुं अने तेथी ज तेओ ते वखतनां अध्यात्मज्ञानी तरीके प्रसिद्धि पाम्या.
उत्कट वैराग्यभावना
तेमनो वैराग्य एटलो बधो हतो के जेनी हद न हती. तेमना लखाणमां ज्यां जुओ त्यां वैराग्यना
भणकारा देखाय छे. तेओ लखे छे के–वैराग्य ते ज अनंत सुखमां लई जनार उत्कृष्ट भोमियो छे. वळी तेओ लखे
छे के–आत्मारूपी वस्त्रने चारित्ररूप पत्थर उपर जिनवचनरूप साबु वडे धोवा माटे जो वैराग्यरूपी जळ नथी तो
बधुं नकामुं छे. पू. सद्गुरुदेवे पण वैशाख वद छठ्ठ–आठमना उत्सव पहेला व्याख्यानमां तेमना भावे वैराग्यमय
जीवननो प्रवाह वहेवराव्यो हतो, अने ते मात्र ‘अपूर्व अवसर’ नी बे ज लीटी उपर के–‘सर्व भावथी औदासीन्य
वृत्ति करी, मात्र देह ते संयम हेतु होय जो.’ एवा उत्कृष्ट तेमना वैराग्यभाव हता.
तेमनी रचनाओ
तेमना ज्ञाननो उघाड तेमणे रचेला मोक्षमाळा ग्रंथमां देखाई आवे छे. जे जीव आ ग्रंथ मननपूर्वक वांचे छे
तेना आत्मतार आ जिनवचनथी झणझणी ऊठे छे. तेमनी स्वतंत्रकृतिमां आ पहेलुं शास्त्र हतुं. ते तेमणे सोळ
वर्षनी वये रच्युं हतुं. तेमनो मुख्य उपदेश, हालना बाळको तथा युवानो जे अविवेकी विद्या लई आत्मसिद्धिथी भ्रष्ट
थता हता तेनाथी तेमने रोकवानो हतो. तेमां प्रथम तो विनय अने विवेक उपर भार मूकयो छे. आत्मज्ञानी प्रत्येनो
विनय अने सत् असत् वच्चेनो विवेक ते ज धर्मनुं मूळ छे एम तेमां कह्युं छे, अने पछी श्रेणिक राजा, सनतकुमार,
सुकुमार मुनि वगेरेना दाखला आपी, आत्मानी सिद्धि करवा माटे जीवे शुं शुं उपाय करवा ते कह्युं छे. वळी तेमां
‘बहु पुण्यकेरा पूंजथी’ काव्य पण अलौकिक छे. तेनी ‘हुं कोण छुं? क्यांथी थयो? शुं स्वरूप छे मारुं खरूं?–’ ए
कडी उपर जे ऊंडा विचारमां उतरे तेनुं हृदयपट ऊघडी जाय अने निरंतर ज्ञान–वैराग्यनी धारा वहेवा लागे.
अद्भुत ग्रंथनी रचना तेमणे सद्गुरुना संयोग वगर करी, ते एम बतावे छे के तेमनामां पूर्वजन्म संस्कार
घणा ऊच्च हता. मोक्षमाळा प्रसिद्ध थया पहेलां तेमणे ‘भावना बोध’ नामनुं एक पुस्तक बहार पाडयुं हतुं अने
मोक्षमाळाना दरेक ग्राहकने ते उपहार तरीके आप्युं हतुं. भावनाबोधमां तेमणे बार भावनानुं स्वरूप यथार्थ प्रगट
कर्युं हतुं. त्यार पछी ‘आत्मसिद्धिशास्त्र’ तेमणे सं. १९प२मां नडियादमां रच्युं हतुं. ते गद्यमां हतुं तेने थोडा
वखतमां ज पद्यमां रची नाख्युं हतुं. आ तेमना सम्यग्ज्ञानना उघाडनो तथा कवित्व शक्तिनो पूरावो छे.
आत्मसिद्धिशास्त्रमां अनंतकाळना दुःखनुं कारण, वर्तमानना शूष्कज्ञानीओ तथा मोक्षमार्गनी स्थिति,
सद्गुरुना समागमथी थतो लाभ, सद्गुरुना लक्षणो, जीवनो स्वछंद तथा ते त्यागवानो उपाय, मतार्थिनां लक्षणो,
आत्मार्थिनां लक्षणो अने ‘आत्मा छे, ते नित्य छे, छे कर्ता निज कर्म, छे भोक्ता वळी मोक्ष छे, मोक्ष उपाय सुधर्म’
ए कडी द्वारा आत्माना छ पद अने गुरु शिष्यना संवाद द्वारा तेनुं विवेचन घणी ज उत्तम शैलिमां कर्युं छे.
ऊंडुं तत्त्वज्ञान
तेमनी तत्त्वश्रद्धा घणी अगाध हती. ज्यारे तेमने गांधीजीए आफ्रिकाथी पत्र लख्यो त्यारे तेना जवाबनां
लख्युं हतुं के ‘आत्मा छे, ते नित्य छे, पोताना कर्मनो कर्ता छे, तेनो भोक्ता छे, मोक्ष छे अने मोक्षनो उपाय पण
अवश्य छे’ अने तेनी सचोटता तत्त्वज्ञानद्वारा करावी हती. वळी तेओ जैनदर्शन निरूपण करतां लखे छे के–
‘परिणामी पदार्थ निरंतर स्वाकार परिणामी होय तोपण अव्यवस्थित परिणामीपणुं।’ आ वाक्य तेमनुं ऊंडुं
तत्त्वज्ञान तथा अध्यात्मरसिकपणुं जणावे छे.
जैनदर्शन प्रत्येनुं तेमनुं अचल श्रद्धान हतुं. तेओ लखे छे के ‘जैन जेवुं एके पवित्र दर्शन नथी. वीतराग
जेवा देव नथी. अनंत सुखनी प्राप्ति करवी होय तो सर्वज्ञरूपी कल्पवृक्षने सेवो.’
जैन एटले सनातन वस्तु स्वभाव छे, ए जाण्या विना एटले के जैन दर्शननी प्रतीति कर्या विना जीवनो
मोक्ष त्रणकाळमां नथी–एम श्रीमद् पोकार करी गया छे.
सद्गुरुना विनय संबंधी श्रीमद् लखे छे के आ क्षणभंगुर विश्वथी आ जीवने मुक्ति मेळववी होय तो ते
मात्र सद्गुरुना समागमथी ज मळी शके छे. जेणे एकवार पण सद्गुरुना वचनोनुं श्रवण नथी कर्युं ते पोतानी मेळे
कदी मोक्षे जवानो नथी.
गृहस्थपणामां अपूर्व अवसरनी भावना
तेमणे एकवीस वर्षनी वये गृहस्थअवस्थामां प्रयाण कर्युं. तेमना लग्न श्री झबकबाई साथे थया हता.
आवी अवस्था होवा छतां तेमनुं भावे वैराग्यपणुं तो क्षणे क्षणे देखातुं हतुं, ‘अपूर्व अवसर एवो क्यारे