Atmadharma magazine - Ank 046
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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द्वितीयश्रावणः२४७३ः २१९ः
आवशे’ ए काव्य रचीने तेमणे पोतानी भावना व्यक्त करी छे. सवारे माताना खाटला उपर बेठां बेठां तेमणे ए
काव्य रची नाख्युं हतुं. आ काव्य गुणस्थानक्रम आरोहण छे; जेम महेल उपर चढवा माटे पगथियां होय छे तेम
मोक्षमहेलमां चढवा माटे चौद पगथियां छे, तेनुं तेमां वर्णन छे. ए काव्यमां श्रीमदे बाह्य–अभ्यंतर निर्ग्रंथ
मुनिदशानुं अपूर्व अवसरनी भावनाथी मंगळिक कर्युं छे, अने संयम (–मुनि अवस्था) नी ऊग्र भावना भावीने
छेक मोक्षमां पहोंची जवा सुधीनी भावना भावी छे. अने छेल्ली कडीमां तेओ लखे छे के ‘प्रभु आज्ञाए थाशुं ते ज
स्वरूप जो...’ तेमने पोतानी भावनामां अचल श्रद्धा छे अने तेथी पडकार करे छे के आपणे ते स्वरूपने पामशुं ज.
सम्यग्दर्शन
आ तो वैराग्य तथा तेमनी कृतिओनी वात थई; हवे तेमना जीवननी मुख्य वस्तु आवे छे, ते मुख्य वस्तु
एटले सम्यग्दर्शन. एना विना बधुं खाली जाणवा मात्र हतुं.
सं. १९४७मां त्रेवीस वर्षनी उंमरे तेमने सम्यग्दर्शननी प्राप्ति थई. आ अपूर्व अवसर प्रसंगे तेमणे ‘धन्य
रे दिवस आ अहो’ ए काव्य रची काढयुं हतुं अने तेमां ‘समक्ति शुद्ध प्रकाश्युं रे’ इत्यादि कहीने पोतानी आत्मदशा
जणावी हती. आवा अपूर्वपदने पामीने तेओ तेनुं माहात्म्य गातां लखे छे के– ‘अनंतकाळथी जे ज्ञान भव हेतु थतुं
ते ज्ञानने एक समयमां जाति अंतर करी जेणे भवनिवृत्तिरूप कर्युं एवा सौम्यमूर्ति हे सम्यग्दर्शन! तने अमारा
नमस्कार हो, नमस्कार हो.
सत्शास्त्र अने सद्गुरु प्रत्येनुं तेमनुं बहुमान
ज्यारे तेमने समयसार पुस्तक मळ्‌युं त्यारे तेना लावनार माणसने खोबो भरीने रूपिया भेट आप्या,
आथी तेमने सत्शास्त्रनो केटलो महिमा हतो ते जणाई आवे छे. तेमने सत्शास्त्रनो विनय तथा वांचन एटलुं बधुं
हतुं के ते समये प्राप्त लगभग बधां जैनशास्त्रोनो अभ्यास तेमणे कर्यो हतो, बीजा ग्रंथोनो पण अभ्यास कर्यो
हतो अने जैनतत्त्वथी ते केवी रीते जुदां पडे छे तेनी तूलना करी हती. वळी ज्यारे तेमणे आखुं समयसार वांच्यु
त्यारे तेनो महिमा गातां लखे छे के–‘हे कुंदकुंदादि आचार्यो! तमारां वचनो पण स्वरूपानुसंधानने विषे आ पामरने
परम उपकारभूत थयां छे. ते माटे हुं तमने अतिशय भक्तिथी नमस्कार करुं छुं.’ आ प्रमाणे तेमनो विनयभाव
उत्तम हतो. तेमणे रचेल उपदेशछायामां उपदेश आपतां १०८ वाक्यो जणाव्यां छे. तेमणे मुमुक्षुओने पत्रो द्वारा पण
घणो उपदेश आप्यो हतो. तेमने मोक्षदशा प्राप्त करवानी तालावेली अतिशय हती.
अंतिम स्थिति
तेओ एकवार राजकोट आव्यां; तेमनी शरीर प्रकृति हवे बगडती जती हती. हवे आ देह टके तेम नथी–
एम जाणतां तेओए पत्रोमां ते संबंधी लख्युं छे. हवे मृत्युकाळ नजीक आव्यो छे एम जाणीने सं. १९प७ना चैत्र
वद प ने मंगळवारे तेमना भाई श्री मनसुखलालभाईने अंतिम वचनो कह्यां के मनसुख! हवे हुं मारामां लीन
थाऊं छुं; शोक करीश नहि. एम कही पोते समाधिष्ठ थया अने बपोरना बे वागे तेमनो जीव देह छोडीने सद्गतिमां
चाल्यो गयो...
देह छोडतां पहेलां तेओ मुमुक्षुओने एक ‘अंतिम संदेशो’ काव्य द्वारा आपी गया हता. काव्य घणुं सुंदर छे.
तेमना अंतिम वचनो ए हता के ‘घणी त्वराथी प्रवास पूरो करवानो हतो; त्यां वच्चे सहरानुं रण संप्राप्त थयुं,
माथे घणो बोजो रह्यो हतो ते आत्मवीर्ये करी जेम अल्पकाळे वेदी लेवाय तेम प्रघटना करतां पगे निकाचीत
उदयमान थाक ग्रहण कर्यो. जे स्वरूप छे ते अन्यथा थतुं नथी ए ज अद्भुत आश्चर्य छे. अव्याबाध स्थिरता छे.’
आ रीते, एक रत्ननी साथे पण न सरखावी शकाय तेवो ए अनुपम दीवो विलय पाम्यो...आवा
महापुरुषना वियोगथी तेमना सम्यग्ज्ञानना वारसदार मुमुक्षुओने घणो ज शोक थयो...* * * * *
(आ निबंधोमां मुंबईना बीपीनचंद्र लाभशंकर महेताए लखेल निबंध बीजा नंबरे हतो; ते निबंधमांथी
केटलोक भाग अहीं आपवामां आवे छे.)
सद्गुरु माहात्म्य
संसारने तेमणे सागर, अंधकार अग्नि अने शकटचक्रनी ऊपमा आपेल छे, संसार अनंत छे, ते सर्वनो
भक्ष करे छे अने मोहरूपी इंधन वडे ते वृद्धि पामे छे; तेने तरवा तेओश्री कहे छे के उपयोग करो! उपयोग करो?
संसाररूपी चक्र मिथ्यात्वरूपी धरी वडे चाली रह्युं छे. ते माटे सत्संग जरूरी छे. सत्संग ए ज अनंत सुखनुं कारण छे
ए ज परम हितस्वी औषध छे. ते माटे ए संतपुरुषे कहेल छे के–