Atmadharma magazine - Ank 047
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः२३४ः आत्मधर्मः ४७
वर्ष चोथुंसळंग अंकभाद्रपदआत्मधर्म
अंक ११४७र४७३
जैन धमर्
मेरा जैन धरम अणमोला...मेरा जैन धरम अणमोला..
इसी धरममें वीर प्रभुने..मुक्तिका मारग खोला..मेरा.
इसी धरममें कुंदुकुंददेवने...शुद्धातम रस घोला...मेरा.
इसी धरममें उमास्वामीने..तत्त्वारथको तोला...मेरा.
इसी धरममें अमृतदेवने..कुंदहृदयको खोला...मेरा.
इसी धरममें मानतुंगने...जेलका फाटक खोला...मेरा.
इसी धरममें अकलंकदेवने..बौद्धोंको झकझोला...मेरा.
इसी धरममें टोडरमलने..प्राण तजे विन बोला...मेरा.
इसी धरममें कहानगुरुने..अध्यात्मरस घोला...मेरा.
इसी धरममें कहानगुरुने...कुंद–अमृतरस घोला...मेरा.
* * * * *
* जैन समाजनी वर्तमान परिस्थिति उपर एक अवलोकन *
– संपादकीय –
निश्चयनय अने व्यवहारनय बन्नेनुं यथार्थ ज्ञान करी निश्चयनयनो आश्रय (निश्चयनयनो आश्रय एटले
के निश्चयनयना विषयभूत शुद्धात्मस्वभावनो आश्रय एम समजवुं) करवो अने व्यवहारनयनो निषेध करवो ते ज
जैनतत्त्वनुं तात्पर्य छे. अने तेम करवाथी ज धर्मनी शरूआत, साधकदशा अने पूर्णता थाय छे, ते ज निश्चयनय अने
व्यवहारनी अविरोध संधि छे...आम होवा छतां हालना जैनसमाजमां नयाधिराज निश्चयनय पक्षघातना तीव्र
रोगथी घेराई गयो छे; अने घणाओ ते रोगनुं स्वरूप नहि जाणता होवाथी ते रोगनुं निवारण करवाने बदले उलटा
पोषण आपीने तेनी वृद्धि करी रह्या छे; तेमज जैन संप्रदायोना नामे प्रसिद्ध थतां मोटा भागनां छापांओ अने
वर्तमानपत्रोनो सूर पण लौकिक कथन अने संसार वधारनारा प्रचार तरफ बळपूर्वक चाली रह्यो देखाय छे...ए
रीते, जैनशासननी वर्तमानदशा अंधाधुंधी भरेली अस्तव्यस्त अने ऊंधी थई रही छे. समाज साचा तत्त्वज्ञानथी
अने तेना यथार्थ अभ्यासथी लगभग वंचित छे. धर्मना साचा उपदेशकोनी घणी मोटी अछत जोवामां आवे छे.
लोकोने पण धर्मना नामे जे उपदेशक जे कंई कहे तेनी परीक्षा कर्या वगर तेने साचुं मानी लेवानी कुटेव पडी गई छे.
तेमज कूळधर्मना नामे प्रचलित पुस्तको के लेखोने पण परीक्षा कर्या वगर सत्य मानी लेवानी कुटेव पडी गई छे..
पण ए कोई उपाय आत्मार्थनो नथी...नयाधिराज निश्चयनयने लागु पडेलो रोग तेनाथी मटवानो नथी, अने ए
रोग मटया वगर आत्मकल्याण थवानुं नथी. माटे–
हे आत्मार्थी जीवो!
जागो, विचारो, समजो, तमारुं पुरुषातन सफळ करो. अमूल्य अवसर निरर्थक चाल्यो जाय छे; आवो
अवसर वारंवार मळतो नथी माटे तमारा ज्ञाननी परीक्षा शक्तिने फोरवीने सत्यनुं संशोधन करो, तत्त्वनो अभ्यास
करो, तूलनात्मक शक्तिने केळवो, तेनो विकास करो, आंधळी श्रद्धाए मानवानी कुटेव छोडो, अने सत्य–असत्यनो
बराबर निर्णय करीने सत्यतत्त्वज्ञानने पामो...के जेथी–
जैन शासनना नामे चाली रहेला अजैन प्रचारनुं जोर स्वयं टळी जाय, अने जैनशासन उन्नतिना पंथे
वळे. जो जैन समाज सवेळा जागृत थईने आ तरफ पोतानुं लक्ष नहि फेरवे तो अमूल्य वखत चाल्यो जशे अने
परम कल्याणकारी साचा जैनतत्त्वज्ञाननी प्रभावना करवानो तेमज निज आत्मकल्याण करवानो आ प्राप्त थयेलो
महान सुअवसर व्यर्थ गुमावी बेसशे...माटे हे वीरना संतानो!
जागो रे जागो...समजो रे समजो.
* * * * *