Atmadharma magazine - Ank 047
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः २३६ः आत्मधर्मः ४७
आत्माना स्वभावमां व्यवहारनो, रागनो,
विकल्पोनो निषेध छे–अभाव छे, छतां जे व्यवहारने,
रागने के विकल्पने आदरणीय माने छे तेने स्वभावनी
रुचि नथी, अने तेथी ते जीव व्यवहारनो निषेध करीने
स्वभावमां कदी ढळी शकशे नहि. सिद्ध भगवानने
रागादिनो सर्वथा अभाव ज थई गयो छे तेथी तेमने
हवे व्यवहारनो निषेध करीने स्वभावमां ढळवानुं रह्युं
नथी. पण साधक जीवने पर्यायमां रागादि विकल्पो,
व्यवहार वर्ते छे तेथी तेने ते व्यवहारनो निषेध करीने
स्वभावमां ढळवानुं छे.
हे जीव, जो स्वभावमां सर्व पुण्य–पाप वगेरे
व्यवहारनो निषेध ज छे तो पछी, ‘हमणां कोई पण
व्यवहार के शास्त्राभ्यास वगेरे करी लउं–पछी तेनो
निषेध करीश’–एवुं आलंबन मोक्षार्थीने नथी, माटे तुं
पराश्रित व्यवहारनुं आलंबन छोडीने सीधे सीधो तुं
चैतन्यने स्पर्श, कोई पण वृत्तिना आलंबनना शल्यमां
न अटक. सिद्ध भगवाननी जेम तारा स्वभावमां एकलुं
चैतन्य छे ते चैतन्यस्वभावने ज सीधे सीधो स्वीकार,
तेमां क्यांय रागादि देखाता ज नथी; रागादि छे ज नहि
तो पछी तेना निषेधनो विकल्प केवो? स्वभावनी
श्रद्धाने कोईपण विकल्पनुं अवलंबन नथी. जे
स्वभावमां राग नथी तेनी श्रद्धा पण रागथी थती नथी.
ए रीते सिद्ध समान पोताना आत्माना ध्यान वडे
एकलुं चैतन्य छुटुं अनुभवाय छे, ने त्यां सर्व
व्यवहारनो निषेध स्वयमेव थई जाय छे. आ ज
साधकदशानुं स्वरूप छे. *
स्वतःसिद्ध शक्तिने परनी अपेक्षा नथी
(श्री जयधवलः भाग १ पृष्ट २३८)
शंका– शब्दनो पदार्थनी साथे कोई संबंध नथी तो ते
शब्द पदार्थनो वाचक कई रीते थई शके छे?
समाधान– ‘प्रमाण अर्थात् ज्ञाननो ज्ञेयपदार्थोनी
साथे कोई संबंध नथी छतां पण ते ज्ञान पदार्थोने कई
रीते जाणे छे?’ आ वात पण उपरनी शंका जेवी छे.
अर्थात् जेवी रीते ज्ञान अने ज्ञेय पदार्थोनो कोई संबंध
न होवा छतां पण ज्ञान ज्ञेय पदार्थोने जाणी ले छे, तेवी
रीते ज शब्दनो पदार्थोनी साथे कांई संबंध न होवा छतां
पण शब्द पदार्थोनो वाचक (कहेनार) होय–तेमां शुं
आपत्ति छे?
शंका– ज्ञान अने ज्ञेय पदार्थोने तो जन्य–जनक
लक्षणवाळो संबंध छे.
समाधान– एम नथी, केमके वस्तुनी शक्तिनी बीजा
पदार्थोद्वारा उत्पत्ति मानवामां विरोध आवे छे. अर्थात्
जे वस्तु जेवी छे ते वस्तुने तेवा ज रूपे जाणवानी
शक्तिने प्रमाण कहेवाय छे. ए जाणवानी शक्ति
पदार्थोद्वारा उत्पन्न थई शकती नथी. अहीं आ विषयमां
उपयोगी श्लोक आपवामां आवे छे–
स्वतः सर्व प्रमाणानां प्रामाण्यमिति गृह्यताम्।
न हि स्वतो ऽ सती शक्तिः कर्तुमन्येत पार्यते।।
अर्थः– सर्व प्रमाणोमां स्वतः प्रमाणता स्वीकार करवी
जोईए (–अर्थात् दरेक ज्ञान पोताथी ज थाय छे एम
स्वीकारवुं जोईए) केमके जे शक्ति पदार्थोमां स्वतः
विद्यमान न होय ते शक्ति बीजा पदार्थोद्वारा करी शकाती
नथी.
* * * * *
उपर आपेला जयधवलना भागमां वीरसेनाचार्यदेवे
जे श्लोक आप्यो छे तेनी बीजी लीटी, समयसारशास्त्रनी
गा. ११६ थी १२० नी श्री अमृतचंद्राचार्य देवकृत टीकामां
आवे छे. त्यां तेओश्रीए नीचे मुजब जणाव्युं छे–
न हि स्वतो ऽ सती शक्तिः कर्तुमन्येन पार्येत
एटले के वस्तुमां जे शक्तिस्वतः (पोताथी ज) न होय
तेने अन्य कोई करी शके नहि. अने ‘
स्वयं परिणममानं
तु न परं परिणमयितारमपेक्षेत। न हि वस्तुशक्तयः
परमपेक्षंते
’ एटले के स्वयं परिणमताने तो पर
परिणमावनारनी अपेक्षा न होय; कारण के वस्तुनी
शक्तिओ परनी अपेक्षा राखती नथी. त्यार पछी गाथा.
१२१ थी १२पनी टीकामां पण अक्षरशः ए ज शब्दो कह्या
छे. *
समाचार
परमात्म प्रकाश
द्वि. श्रावण वद प ना दिवसे, सवारना व्याख्यानमां
श्री पंचास्तिकायनुं वांचन पूरुं थयुं अने श्री
परमात्मप्रकाशनुं वांचन शरू थयुं छे. आ शास्त्रना कर्ता
श्रीयोगीन्द्रदेव छे अने टीकाकार श्रीब्रह्मदेव छे. आ शास्त्र
ऊच्च आध्यात्मिक भावोथी भरेलुं छे. बपोरे
समयसारनो आस्रवअधिकार वंचाय छे.
दशलक्षणपर्व
भादरवा सुद प थी १४ सुधी आ पर्व उजवाय छे. आ
पर्वने ‘पर्युषणपर्व’ पण कहेवाय छे. जैनशासनमां आ
पर्व सौथी मुख्य छे. आ पर्वना दस दिवसो दरमियान
आत्मभानपूर्वक उत्तमक्षमा, निरभिमानता,
मायारहितपणुं, निर्लोभवृत्ति, सत्य, संयम, तप, त्याग,
अकिंचन्यपणुं तथा ब्रह्मचर्य–ए दश धर्मोनी भावना
तेमज तेना स्वरूपनुं कथन, तेनुं माहात्म्य अने तेनी
प्राप्ति माटेनो अभ्यास करवामां आवे छे.
***