Atmadharma magazine - Ank 048
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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आसोः२४७३ः २६१ः
(प८) निमित्त कोनुं? अने क्यारे?
जो निमित्तनुं यर्थाथ स्वरूप समजे तो निमित्त उपादानमां कांई करे ए मान्यता टळी जाय. केम के ज्यारे
कार्य थयुं त्यारे तो परने तेनुं निमित्त कहेवायुं छे, कार्य थया पहेलां तो तेनुं निमित्त कोईने कहेवातुं नथी.–जे कार्य
थई गयुं छे तेमां निमित्त शुं करे? अने कार्य थया पहेलां निमित्त कोनुं? कुंभार कोनुं निमित्त छे?–जो घडारूपी कार्य
थाय तो कुंभार तेनुं निमित्त छे, पण जो घडारूपी कार्य ज न थाय तो कुंभार तेनुं निमित्त नथी. घडो थया पहेलां तो
कोईने ‘घडानुं निमित्त’ कही शकाय ज नहि. अने जो घडो थाय छे त्यारे ज कुंभार ने निमित्त कहेवाय छे, तो पछी
कुंभारे घडामां कांई पण र्क्युं ए वात स्वयमेव अस्त ठरे छे.
प्रश्न–उपादानमां कार्य न थाय तो परद्रव्यने निमित्त कहेवातुं नथी एम उपर कह्युं; परंतु ‘आ जीवने
अनंतवार धर्मना निमित्तो मळ्‌यां छतां जीव पोते धर्म समज्यो नहि’ एम कहेवाय छे, अने तेमां जीवने धर्मरूपी
कार्य थयुं नथी छतां परद्रव्योने धर्मनां निमित्त तो कह्यां छे?
उत्तर– ‘आ जीवने अनंतवार धर्मनां निमित्तो मळ्‌यां पण पोते धर्म समज्यो नहि’ एम कहेवाय छे, त्यां
जो के उपादानमां (जीवमां) धर्मरूपी कार्य थयुं नथी तेथी खरेखर तेने माटे ते पदार्थो धर्मनां निमित्त नथी. परंतु जे
जीवो धर्म प्रगट करे छे ते जीवोने एवां प्रकारनां निमित्तो ज होय छे एवुं ज्ञान कराववा माटे, कार्य न थयुं होवा
छतां स्थूळद्रष्टिए तेने निमित्त कहेवामां आवे छे.
(प९) अनुकूळ निमित्त
ऊकळता तेलमां हाथ दाझयो त्यां हाथने दाझवा माटे ऊकळतुं तेल अनुकूळ निमित्त छे; घडो फूटवामां धोको
वगेरे अनुकूळ निमित्त छे. अमुक पदार्थने अनुकूळ निमित्त कह्युं तेथी ते सिवायना बीजा पदार्थो प्रतिकूळ छे–एम न
समजवुं. एकद्रव्य बीजा द्रव्यने अनुकूळ के प्रतिकूळ तो छे ज नहि. निमित्तने अनुकूळ कहेवानो अर्थ एटलो ज छे के–
ते पदार्थ कार्य थती वखते सद्भावरूप होय छे अने व्यवहार द्रष्टिए अनुकूळतानो आरोप तेना उपर आवी शके छे.
(६०) बे पर्यायोनी लायकात एक साथे न होय
एक समयमां बे लायकात होती ज नथी. केमके जे समये जेवी लायकात छे तेवी पर्याय प्रगट होय छे, अने
ते ज वखते जो बीजी लायकात पण होय तो एक साथे बे पर्याय थई जाय. परंतु एम कदी बनी शके नहि. जे समये
जे पर्याय प्रगट होय छे ते समये बीजी पर्यायनी लायकात होती ज नथी. लोटरूप अवस्थानी लायकात वखते
रोटलीरूप अवस्थानी लायकात ज होती नथी. तो पछी निमित्त न मळ्‌या माटे रोटली न थई ए वातने अवकाश क्य
ां छे? अने ज्यारे रोटली थाय छे त्यारे ते पूर्वनी लोट पर्यायनो अभाव करीनेज थाय छे, तोपछी बीजाने तेनुं
कारण केम कहेवाय? बहुबहु तो लोटरूप पर्यायनो व्यय थयो तेने रोटलीरूप पर्यायनुं कारण कही शकाय.
(६१) ‘जीव पराधीन छे’ एटले शुं?
प्रश्न–समयसार–नाटकमां स्याद्वादअधिकारना ९ मा श्लोकमां जीवने पराधीन कह्यो छे; शिष्य पूछे छे के हे
स्वामी! जीव स्वाधीन छे के पराधीन? त्यारे श्रीगुरु उत्तर आपे छे के–द्रव्यद्रष्टिथी जीव स्वाधीन छे, ने पर्यायद्रष्टिथी
पराधीन छे.–तो त्यां जीवने पराधीन केम कह्यो छे?
उत्तर–पर्यायद्रष्टिथी जीव पराधीन छे एटले के जीव पोते पोताना स्वभावनो आश्रय छोडीने, पर लक्षे पोते
स्वतंत्रपणे पराधीन थाय छे, परंतु परद्रव्यो कांई जीव उपर बळजोरी करीने तेने पराधीन करता नथी. पराधीन
एटले पोते स्वतंत्रपणे परने आधीन थाय छे–पराधीनपणुं माने छे, नहि के पर पदार्थो तेने आधीन करे छे.
(६२) द्रव्यानुयोग ने चरणानुयोगनो क्रम
प्रश्न–आ उपादान–निमित्तनी वात तो द्रव्यानुयोगनी छे. परंतु पहेलां तो जीव चरणानुयोग अनुसार
श्रद्धानी थाय अने ते चरणानुयोग अनुसार व्रत–पडीमा वगेरे अंगीकार करे, त्यार पछी ते द्रव्यानुयोग अनुसार
श्रद्धानी थईने सम्यग्दर्शन प्रगट करे–एवी जैनधर्मनी परिपाटी होवानुं केटलाक जीवो माने छे ते बराबर छे?
उत्तर–ना. एवी जैनमतनी परिपाटी नथी. परंतु जिनमतमां एवी परिपाटी छे के पहेलां सम्यक्त्व होय
पछी व्रत होय; हवे सम्यकत्व तो स्व–परनुं श्रद्धान थतां थाय छे तथा ते श्रद्धान द्रव्यानुयोगनो अभ्यास करतां थाय
छे. माटे पहेलां द्रव्यानुयोग अनुसार श्रद्धान करी सम्यग्द्रष्टि थाय अने त्यार पछी चरणानुयोग अनुसार व्रतादिक
करी व्रती थाय. ए प्रमाणे मुख्यपणे तो नीचली दशामां ज द्रव्यानुयोग कार्यकारी छे तथा गौणपणे जेने मोक्षमार्गनी
प्राप्ति थती न जणाय तेने पहेलां कोई व्रतादिकनो उपदेश आपवामां आवे छे; माटे सर्वे जीवोए मुख्यपणे
द्रव्यानुयोग अनुसार अध्यात्मउपदेशनो अभ्यास करवा योग्य छे. आम जाणीने नीचली दशावाळाओए पण
द्रव्यानुयोगना अभ्यासथी पराडमुख थवुं योग्य नथी. (मो. मा. प्र. पा. २९प) *