थवा माटे माटीमां जेवी सामान्य लायकात छे तेवी लायकात बीजा पदार्थोमां नथी. माटीमां घडो थवानी विशेष
लायकात तो जे समये घडो थयो ते समये ज छे, त्यार पहेलां तेनामां घडो थवानी विशेष लायकात नथी; माटे विशेष
लायकात ज खरुं उपादानकारण छे. आ विषयने वधारे स्पष्ट करवा माटे जीवमां लागु पाडीएः सम्यग्दर्शन
प्रगटवानी सामान्य लायकात तो दरेके दरेक जीवमां छे, जीव सिवाय अन्य कोई द्रव्यमां तेवी सामान्य लायकात
नथी; सम्यग्दर्शननी सामान्य लायकात (–शक्ति) तो बधा जीवोमां छे पण विशेष लायकात तो भव्य जीवोने ज
होय छे, अभव्यने तेमज भव्य जीव ज्यां सुधी मिथ्याद्रष्टि रहे त्यांसुधी तेने पण सम्यग्दर्शननी विशेष लायकात
नथी. विशेष लायकात तो जे समये जीव पुरुषार्थथी सम्यग्दर्शन प्रगट करे ते समये ज होय छे. सामान्य लायकात ते
द्रव्यरूप छे ने विशेष लायकात ते प्रगटरूप छे; सामान्य लायकात कार्य प्रगटवानुं उपादानकारण नथी पण विशेष
लायकात ज उपादानकारण छे.
जशे!
अवस्थानी लायकात छे, तेनो कर्ता आत्मा नथी.
उत्तर–कोई बीजो जीव वस्त्र नाखी जाय तेथी मुनिना चारित्रने बाधा नथी, केमके ते वस्त्र साथे तेमना
संबंध छे.
शास्त्रो भणेला पण आ सम्यक्नियतवादनी वात सांभळीने गोथां खाय छे, आनो निर्णय करवो कठण पडे छे तेथी
कोई ‘एकांतवाद’ कहीने उडाडे छे. नियत एटले निश्चित–नियमबद्ध; ते एकांतवाद नथी पण वस्तुनो यर्थाथ
स्वभाव छे,–ते ज अनेकांतवाद छे. सम्यक्नियतवादनो निर्णय करती वखते बहारमां राजपाटनो संयोग होय ते
छूटी ज जवो जोईए–एवो नियम नथी, पण तेना प्रत्ये यथार्थ उदास भाव तो अवश्य थई जाय छे. बहारना
संयोगमां तो फेर पडे के न पडे, पण अंतरना निर्णयमां फेर पडी जाय. अज्ञानी जीव नियतवादनी वातो करे छे पण
ज्ञान अने पुरुषार्थने स्वभाव तरफ वाळीने निर्णय करतो नथी. नियतवादनो निर्णय करवामां जे ज्ञान अने
पुरुषार्थ आवे छे तेने जो जीव ओळखे तो स्वभाव आश्रित वीतरागभाव प्रगटे, ने परथी उदास थई जाय, केमके
सम्यक्नियतवादनो निर्णय कर्यो एटले पोते बधानो मात्र ज्ञानभावे जाणनार–देखनार रह्यो, पण परनो के रागनो
कर्ता न थयो.
अज्ञानीओ आ नियतवादने एकांतवाद ने गृहितमिथ्यात्व कहे छे पण ज्ञानीओ कहे छे के आ सम्यक्नियतवाद ते ज
अनेकांतवाद छे ने तेना निर्णयमां जैनदर्शननो सार आवी जाय छे, ने ते केवळज्ञाननुं कारण छे.
उत्तर–केमके सम्यग्द्रष्टिने यथार्थ नियतवादनो निर्णय छे के जगतना बधा पदार्थोनी अवस्था तेनी लायकात
श्रद्धाने लीधे सम्यग्द्रष्टिने अकस्मातभय होतो नथी. वस्तुनी पर्यायो क्रमसर ज थाय छे एनी अज्ञानीने प्रतीत नथी
तेथी तेने अकस्मात लागे छे.