Atmadharma magazine - Ank 048
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः २६०ः आत्मधर्मः ४८
थवा माटे माटीमां जेवी सामान्य लायकात छे तेवी लायकात बीजा पदार्थोमां नथी. माटीमां घडो थवानी विशेष
लायकात तो जे समये घडो थयो ते समये ज छे, त्यार पहेलां तेनामां घडो थवानी विशेष लायकात नथी; माटे विशेष
लायकात ज खरुं उपादानकारण छे. आ विषयने वधारे स्पष्ट करवा माटे जीवमां लागु पाडीएः सम्यग्दर्शन
प्रगटवानी सामान्य लायकात तो दरेके दरेक जीवमां छे, जीव सिवाय अन्य कोई द्रव्यमां तेवी सामान्य लायकात
नथी; सम्यग्दर्शननी सामान्य लायकात (–शक्ति) तो बधा जीवोमां छे पण विशेष लायकात तो भव्य जीवोने ज
होय छे, अभव्यने तेमज भव्य जीव ज्यां सुधी मिथ्याद्रष्टि रहे त्यांसुधी तेने पण सम्यग्दर्शननी विशेष लायकात
नथी. विशेष लायकात तो जे समये जीव पुरुषार्थथी सम्यग्दर्शन प्रगट करे ते समये ज होय छे. सामान्य लायकात ते
द्रव्यरूप छे ने विशेष लायकात ते प्रगटरूप छे; सामान्य लायकात कार्य प्रगटवानुं उपादानकारण नथी पण विशेष
लायकात ज उपादानकारण छे.
(पप) चारित्रदशा अने वस्त्र संबंधी खुलासो
प्रश्न– ‘चारित्रदशा प्रगटे तेने कारणे वस्त्र छूटतां नथी पण वस्त्रना परमाणुओनी लायकातथी ज ते छूटे
छे’ एम कह्युं; परंतु कोई जीवने चारित्रदशा प्रगटे अने वस्त्रमां छूटवानी लायकात न होय तो सवस्त्र मुक्ति थई
जशे!
उत्तर–त्यां सवस्त्र मुक्ति थवानी वात नथी. चारित्रदशानुं स्वरूप ज एवुं छे के त्यां वस्त्र साथे निमित्त–
नैमितिक संबंध होय ज नहि. तेथी चारित्रदशामां वस्त्रनो त्याग सहजपणे होय छे, वस्त्रनो त्याग ते परमाणुनी
अवस्थानी लायकात छे, तेनो कर्ता आत्मा नथी.
प्रश्न–कोई मुनिराजना शरीर उपर कोई जीव वस्त्र नाखी जाय तो ते वखते तेमना चारित्रनुं शुं थाय?
उत्तर–कोई बीजो जीव वस्त्र नाखी जाय तेथी मुनिना चारित्रने बाधा नथी, केमके ते वस्त्र साथे तेमना
चारित्रनो निमित्तनैमित्तिक संबंध नथी परंतु त्यां तो वस्त्र ज्ञाननुं ज्ञेय एटले के ज्ञेयज्ञायकपणानो निमित्तनैमित्तिक
संबंध छे.
(प६) सम्यक्नियतवाद शुं छे?
वस्तुनी पर्याय क्रमबद्ब जे समये जे थवानी होय ते ज थाय–एवो सम्यक्नियतवाद ते जैनदर्शननो
वास्तविक स्वभाव छे–एज वस्तुस्वभाव छे. ‘नियत’ शब्द तो शास्त्रोमां घणे ठेकाणे आवे छे. पण अत्यारे तो
शास्त्रो भणेला पण आ सम्यक्नियतवादनी वात सांभळीने गोथां खाय छे, आनो निर्णय करवो कठण पडे छे तेथी
कोई ‘एकांतवाद’ कहीने उडाडे छे. नियत एटले निश्चित–नियमबद्ध; ते एकांतवाद नथी पण वस्तुनो यर्थाथ
स्वभाव छे,–ते ज अनेकांतवाद छे. सम्यक्नियतवादनो निर्णय करती वखते बहारमां राजपाटनो संयोग होय ते
छूटी ज जवो जोईए–एवो नियम नथी, पण तेना प्रत्ये यथार्थ उदास भाव तो अवश्य थई जाय छे. बहारना
संयोगमां तो फेर पडे के न पडे, पण अंतरना निर्णयमां फेर पडी जाय. अज्ञानी जीव नियतवादनी वातो करे छे पण
ज्ञान अने पुरुषार्थने स्वभाव तरफ वाळीने निर्णय करतो नथी. नियतवादनो निर्णय करवामां जे ज्ञान अने
पुरुषार्थ आवे छे तेने जो जीव ओळखे तो स्वभाव आश्रित वीतरागभाव प्रगटे, ने परथी उदास थई जाय, केमके
सम्यक्नियतवादनो निर्णय कर्यो एटले पोते बधानो मात्र ज्ञानभावे जाणनार–देखनार रह्यो, पण परनो के रागनो
कर्ता न थयो.
स्व चतुष्टयमां पर चतुष्टयनी नास्ति ज छे तो पछी तेमां पर शुं करे? उपादान–निमित्तनो यथार्थ निर्णय
आवी जाय छे, कर्तृत्वभाव उडी जाय छे, अने वीतरागीद्रष्टि पूर्वकवीतरागी स्थिरतानी शरुआत थई जाय छे.
अज्ञानीओ आ नियतवादने एकांतवाद ने गृहितमिथ्यात्व कहे छे पण ज्ञानीओ कहे छे के आ सम्यक्नियतवाद ते ज
अनेकांतवाद छे ने तेना निर्णयमां जैनदर्शननो सार आवी जाय छे, ने ते केवळज्ञाननुं कारण छे.
(प७) कांई अकस्मात छे ज नहि
प्रश्न–सम्यग्द्रष्टिने अकस्मात भय होतो नथी एनुं शुं कारण?
उत्तर–केमके सम्यग्द्रष्टिने यथार्थ नियतवादनो निर्णय छे के जगतना बधा पदार्थोनी अवस्था तेनी लायकात
प्रमाणे ज थाय छे. न थवानुं होय एवुं कांई नवुं बनतुं ज नथी माटे कांई अकस्मात छे ज नहि. आवी निःशंक
श्रद्धाने लीधे सम्यग्द्रष्टिने अकस्मातभय होतो नथी. वस्तुनी पर्यायो क्रमसर ज थाय छे एनी अज्ञानीने प्रतीत नथी
तेथी तेने अकस्मात लागे छे.