Atmadharma magazine - Ank 048
(Year 4 - Vir Nirvana Samvat 2473, A.D. 1947)
(Devanagari transliteration).

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ः २६७ः आत्मधर्मः ४८
पारिणामिकभाव
सत्समागमे स्वभावनी वात सांभळतां, जेणे
पात्र थईने भूलने स्वीकारी तेने भूल टळ्‌या वगर
रहे नहि. मारो स्वभाव तो विकार रहित पारिणामिक
एकरूप छे, ते पारिणामिकस्वभावनी रुचिमां हुं टकी
शकतो नथी ए पुरुषार्थनी कचाश छे, ए मारी भूल
छे–एम जे पोताना पारिणामिकस्वभावनो महिमा
लावीने पात्रताथी कबुले छे तेने अल्प काळे भूल
टळी गया वगर रहेशे नहि.
उत्तम क्षमाधर्म
ःःः भादरवा सुद प शुक्रवारःःः
(भादरवा सुद प थी १४ सुधीना ‘दश लक्षण पर्व’ ना
दस दिवसो दरमियान श्री पद्मनंदिपचीसीमांथी
उत्तमक्षमा वगेरे दशधर्मोनुं क्रमसर व्याख्यान पू.
गुरुदेवश्रीए कर्युं हतुं, तेमांथी उत्तमक्षमाना
व्याख्याननो सार)
१. दश लक्षण पर्व
आजथी दश लक्षण पर्व शरू थाय छे. पहेलो दिवस
उत्तम क्षमानो छे. चारित्रदशामां वर्तता मुनिओने
उत्तम क्षमादि दस प्रकारना धर्मो होय छे. ए उत्तम
क्षमा वगेरेथी ज चारित्रदशा होय छे, ते चारित्र
मोक्षनुं कारण छे. सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान ते
चारित्रनुं कारण छे. सम्यग्दर्शनज्ञानने मोक्षमार्ग कहेवो
ते उपचार छे; केम के जेने सम्यग्दर्शन–ज्ञान थयां होय
तेने सम्यक्चारित्र अल्पकाळे अवश्य प्रगटे छे, तेथी
सम्यग्दर्शन थतां ज मोक्षमार्ग कही दीधो पण मोक्ष
माटे साक्षात् कारण तो वीतरागी चारित्रदशा छे. ते
चारित्रदशाना उत्तमक्षमा वगेरे दस प्रकार छे. ए
उत्तमक्षमा वगेरे दश प्रकारना धर्मनी आराधनानुं पर्व
आजथी शरू थाय छे. ‘दश लक्षण पर्व’ एटले
‘मोक्षनी आराधनानो महोत्सव.
र. उत्तमक्षमानी व्याख्या
आजनो दिवस ‘उत्तमक्षमा’ नो गणाय छे.
सम्यग्दर्शन वगर उत्तम क्षमा होय ज नहि. लौकिकमां
शुभभावने क्षमा कहेवाय छे, तेनो निषेध करवा माटे
अहीं उत्तम क्षमा एम कह्युं. उत्तमक्षमा एटले
सम्यग्दर्शनपूर्वक वीतरागभावरूप क्षमा.
निश्चयथी पोतानो आत्मस्वभाव त्रिकाळ ज्ञायकमूर्ति
छे तेनी ओळखाण अने बहुमान करवुं तथा राग–द्वेष–
क्रोधादिनी रुचि छोडवी ते ज उत्तमक्षमानी साची
आराधना छे. आत्मस्वभावनो अनादर करीने पुण्य–
पापनी रुचि करवी ते ज क्रोध छे, अने आत्मस्वभावना
आदर वडे पुण्य–पापनी रुचि छोडी देवी ते ज उत्तम
क्षमा छे.
३. पर्व कोनुं?
दस दिवसोने पर्व कहेवुं ते तो उपचार छे, आत्माना
स्वभावनी ओळखाणपूर्वक चारित्रधर्मनी दस प्रकारे
आराधना करवी ते ज साधक जीवनुं साचुं पर्व छे, पर्व
एटले आराधना. ते आराधनानो आरोप करीने अमुक
दिवसने पण ‘पर्व’ कहेवुं ते व्यवहार छे. पण जे आत्मा
पोतामां आराधकभाव प्रगट करे तेने माटे दिवसने
व्यवहारथी पर्व कहेवाय. पण जेने आत्मानुं भान नथी
तेने पोतामां ज पर्व नथी, तो दिवसमां पण उपचार
कोनो करवो?
४. ‘उत्तमक्षमा’ कयारे होय?
आत्मानी पर्यायमां जे पुण्य–पाप थाय तेनी रुचि
थाय ते ज अनंत क्रोध छे. ज्ञायकस्वभावनी रुचि वडे ते
क्रोधनो नाश करवो ते ज उत्तमक्षमारूप चारित्रदशा
प्रगटवानुं बीज छे. अने स्वभावनी रुचि पछी विशेष
स्थिरतावडे वीतरागभाव प्रगट करीने पुण्य–पापनो
नाश करवो ते उत्तमक्षमा छे. आवी क्षमा मुनिदशामां
होय छे. आजे ते उत्तमक्षमानी आराधनानो दिवस छे.
उत्तमक्षमानी आराधना मुनिओने तो सदाय होय छे. ते
आराधना तो गमे त्यारे जीव करी शके छे, परंतु आजे
खास विशेष पणे तेनुं स्मरण करीने साधक जीवो तेनी
भावना करे छे.
प. पद्मनंदि शास्त्रमांथी उत्तमक्षमाधर्मनुं स्वरूप
आजे मंगळिक तरीके श्री पद्मनंदि आचार्यकृत
पद्मनंदि पच्चीसीमांथी उत्तमक्षमानुं स्वरूप वंचाय छे–
(मालिनी)
जड जन कृत बाधा क्रोध हास प्रियाद्रव–
अपि सति न विकारं यन्मनो याति साधो।
अमल विपुलचितैरुत्तमा सा क्षमादौ
शिव पथ पथिकानां सत्सहायत्वमेति।।८२।।
(पद्मनंदि–पृष्ठ–४२)
मूर्ख–अज्ञानी जनोद्वारा बंधन, क्रोध, मश्करी, हास्य
वगेरे करवामां आवे छतां पण साधु पोताना निर्मळ
अने गंभीर चित्तथी विकृत थता नथी, ते ज उत्तमक्षमा
छे; एवी उत्तमक्षमा मोक्षमार्गना पथिक एवा ते संतोने
खरेखर सहायता करनारी छे.
६. उत्तमक्षमा कोने होय छे?
जे उत्तमक्षमादि दश धर्मो छे तेमां मुख्यपणे तो चारित्रनुं
ज आराधन छे, एटले के ते दशधर्मोनुं पालन मुख्यपणे
मुनिदशामां ज होय छे, श्रावकने गौण–