रहे नहि. मारो स्वभाव तो विकार रहित पारिणामिक
एकरूप छे, ते पारिणामिकस्वभावनी रुचिमां हुं टकी
शकतो नथी ए पुरुषार्थनी कचाश छे, ए मारी भूल
छे–एम जे पोताना पारिणामिकस्वभावनो महिमा
लावीने पात्रताथी कबुले छे तेने अल्प काळे भूल
टळी गया वगर रहेशे नहि.
दस दिवसो दरमियान श्री पद्मनंदिपचीसीमांथी
उत्तमक्षमा वगेरे दशधर्मोनुं क्रमसर व्याख्यान पू.
गुरुदेवश्रीए कर्युं हतुं, तेमांथी उत्तमक्षमाना
व्याख्याननो सार)
उत्तम क्षमादि दस प्रकारना धर्मो होय छे. ए उत्तम
क्षमा वगेरेथी ज चारित्रदशा होय छे, ते चारित्र
मोक्षनुं कारण छे. सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान ते
चारित्रनुं कारण छे. सम्यग्दर्शनज्ञानने मोक्षमार्ग कहेवो
ते उपचार छे; केम के जेने सम्यग्दर्शन–ज्ञान थयां होय
तेने सम्यक्चारित्र अल्पकाळे अवश्य प्रगटे छे, तेथी
सम्यग्दर्शन थतां ज मोक्षमार्ग कही दीधो पण मोक्ष
माटे साक्षात् कारण तो वीतरागी चारित्रदशा छे. ते
चारित्रदशाना उत्तमक्षमा वगेरे दस प्रकार छे. ए
उत्तमक्षमा वगेरे दश प्रकारना धर्मनी आराधनानुं पर्व
आजथी शरू थाय छे. ‘दश लक्षण पर्व’ एटले
‘मोक्षनी आराधनानो महोत्सव.
शुभभावने क्षमा कहेवाय छे, तेनो निषेध करवा माटे
अहीं उत्तम क्षमा एम कह्युं. उत्तमक्षमा एटले
सम्यग्दर्शनपूर्वक वीतरागभावरूप क्षमा.
क्रोधादिनी रुचि छोडवी ते ज उत्तमक्षमानी साची
आराधना छे. आत्मस्वभावनो अनादर करीने पुण्य–
पापनी रुचि करवी ते ज क्रोध छे, अने आत्मस्वभावना
आदर वडे पुण्य–पापनी रुचि छोडी देवी ते ज उत्तम
क्षमा छे.
आराधना करवी ते ज साधक जीवनुं साचुं पर्व छे, पर्व
एटले आराधना. ते आराधनानो आरोप करीने अमुक
दिवसने पण ‘पर्व’ कहेवुं ते व्यवहार छे. पण जे आत्मा
पोतामां आराधकभाव प्रगट करे तेने माटे दिवसने
व्यवहारथी पर्व कहेवाय. पण जेने आत्मानुं भान नथी
तेने पोतामां ज पर्व नथी, तो दिवसमां पण उपचार
कोनो करवो?
क्रोधनो नाश करवो ते ज उत्तमक्षमारूप चारित्रदशा
प्रगटवानुं बीज छे. अने स्वभावनी रुचि पछी विशेष
स्थिरतावडे वीतरागभाव प्रगट करीने पुण्य–पापनो
नाश करवो ते उत्तमक्षमा छे. आवी क्षमा मुनिदशामां
होय छे. आजे ते उत्तमक्षमानी आराधनानो दिवस छे.
उत्तमक्षमानी आराधना मुनिओने तो सदाय होय छे. ते
आराधना तो गमे त्यारे जीव करी शके छे, परंतु आजे
खास विशेष पणे तेनुं स्मरण करीने साधक जीवो तेनी
भावना करे छे.
अमल विपुलचितैरुत्तमा सा क्षमादौ
शिव पथ पथिकानां सत्सहायत्वमेति।।८२।।
अने गंभीर चित्तथी विकृत थता नथी, ते ज उत्तमक्षमा
छे; एवी उत्तमक्षमा मोक्षमार्गना पथिक एवा ते संतोने
खरेखर सहायता करनारी छे.
ज आराधन छे, एटले के ते दशधर्मोनुं पालन मुख्यपणे
मुनिदशामां ज होय छे, श्रावकने गौण–