Atmadharma magazine - Ank 049
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: कारतक : २४७४ : आत्मधर्म : ९ :
जे माने छे तेने शास्त्रनो अध्यास थई गयो छे, तेओ वेदिया ज्योतिषनी माफक मूर्ख छे. वेदिया ज्योतिषनुं
दृष्टांत–एक वखत एक कूवामां कोई बाई पडी गई, त्यां केटलाक ज्योतिषीओ आवी चडया अने बाईने
कूवामांथी काढवानो विचार करवा लाग्या. त्यां एक जण बोल्यो के कूवामांथी ते बाईने काढवा माटे अत्यारे
मूरत सारुं छे के नहि ते जोई ल्यो. त्यां बीजाए कह्युं हा, ए वात खरी, बाईनुं नाम कई राशीमां छे ते पहेलांं
नक्की करो. त्यां वळी एक–बे जणा तो गाममांथी ज्योतिष शास्त्रना पोथां लेवा दोडया. कोई तो गोखेला
श्लोकमांथी क्यो श्लोक लागु पडे छे ते याद करीने बोलवा मांडया, कोईए बाईने हकीकत पूछवा मांडी के तमारुं
नाम शुं? केटला वागे तमे कूवामां पड्या? वगेरे वगेरे! पण बाई तो कहे, अरे भाई, पहेलांं मने बहार तो
काढो, हुं मरी जईश. त्यारे वेदिया ज्योतिष पंडितो कहे के पण अमारा ज्योतिष शास्त्रनो नियम मेळववो
जोईए, तुं धीरज राख, हमणां तारुं ज्योतिष जोईने अने सारुं चोघडियुं जोईने तने काढीए छीए. त्यां कोई
डाह्यो समजु माणस आवी पहोंच्यो अने कह्युं के अरे मूर्खाओ, शुं आ टाणा ज्योतिष जोवाना छे? एम कहीने
पोते तरत पाघडी उखेळीने तेनाथी बाईने बहार काढी. तेम आत्म स्वभाव समजवाना अवसरे अज्ञानीओ
कहे छे के अत्यारे काळ क्यो छे? आ काळे मुक्ति छे के नहि? कर्म केवां छे? शास्त्रमां शुं शुं कह्युं छे? एम बधा
पराश्रयो गोते छे. पण ज्ञानीओ तेने कहे छे के अरे भाई, आ अवसर काळ गुमाववानो नथी. तारे काळनुं शुं
काम छे? तुं जे वखते समज ते वखत तारे माटे मंगळिक काळ ज छे. तारी मुक्ति तारा आत्मस्वभावमांथी
प्रगटे छे माटे तेनो निर्णय कर. अने कर्म केवां छे ए जोवानुं तारे प्रयोजन छे के तारो चैतन्य स्वभाव केवो छे
ते समजवानुं प्रयोजन छे? शास्त्रोमां अनंत अपेक्षाओनां कथन होय तेमां स्वच्छंदे तारो कांई पत्तो नहि खाय;
पण ज्ञानीओ कहे छे के हजारो अने लाखो शास्त्रना कथनमां एक चैतन्यस्वरूप आत्मानी ज समजणनुं
प्रयोजन छे. शास्त्ररूपी समुद्रना मंथनमांथी एक चैतन्यरत्न ज मेळवी लेवानुं छे. माटे हे भाई! आवा अवसरे
तुं आडाअवळा दुर्विकल्पोमां न अटकतां सत्पुरुषना कहेवा अनुसार तारो स्वभाव समज. जो तुं तारा
स्वभावने ओळख तो तारो उद्धार थाय तेम छे, बीजा कोई पण जाणपणाथी तारा आत्मानो उद्धार नथी.
अहीं एम न समजवुं के शास्त्रोना अभ्यासनो निषेध कर्यो छे; शास्त्रनो अभ्यास करवानो निषेध नथी
परंतु शास्त्राभ्यासनुं प्रयोजन आत्म स्वभावने समजवानुं छे. जो आत्मस्वभाव न समजे तो शास्त्रनुं
जाणपणुं ते जीवने मात्र मनना भार रूप छे.
साची विद्या [सा विद्या या विभुक्तये]
आ संबंधमां एक दृष्टांत आवे छे के–कोईवार एक माणस होडीमां बेसीने सामे पार जतो हतो. तेणे
होडीवाळाने पूछयुं के अरे नाविक, तने ज्योतिष विद्या आवडे छे? नाविके कह्युं–ना, पछी पूछयुं–कविता
बनावता आवडे छे? नाविके कह्युं–ना. एम अनेक प्रकारे पूछयुं त्यारे छेवटे नाविके कह्युं–भाई! अमने एवुं
कांई आवडे नहि, अमे तो होडी हंकारी जाणीए अने पाणीमां तरवानी कळा जाणीए. त्यारे ते माणस पोतानुं
डहापण बतावीने कहेवा लाग्यो के मने तो बधुं आवडे छे. तुं ए कांई न शीख्यो? –एना वगर तारा बधाय
वर्ष पाणीमां गया. ए वखते तो नाविक कांई न बोल्यो. पछी आगळ जतां एकाएक होडीमां पाणी भरायुं
अने होडी डूबवा लागी. त्यारे नाविके ते माणसने पूछयुं के भाई, जुओ आ होडी तो थोडीक वारमां डूबी जशे;
तमने ज्योतिष वगेरे आवडे छे ए तो बधुं जाण्युं परंतु अत्यारे तमारुं ए कांई डहापण काम नहि आवे, तमने
तरतां आवडे छे के नहि? ते माणसने तरतां नो’ तुं आवडतुं तेथी ते हें–हें–फें–फें थई गयो. नाविके कह्युं–बोलो
हवे कोनां वरस पाणीमां जशे? मने तो तरतां आवडे छे एटले हुं तो तरीने कांठे पहोंची जईश, पण तमने
तरतां नथी आवडतुं तेथी तमे अने भेगी तमारी विद्या बधुंय पाणीमां जशे...
–तेम अज्ञानी जीवो सम्यग्दर्शनरूपी तरवानी कळा जाणता नथी अने ज्ञानीओ ते कळा बराबर जाणे
छे. अज्ञानी कहे छे के अमने तो कर्मप्रकृतिनुं बराबर ज्ञान छे, अने अध्यात्मिक शास्त्रोना श्लोक तो अमारी
जीभना टेरवे रमे छे; अने व्रत–तपादि पण बहु करीए छीए. पण ज्ञानी कहे छे के भाई, तें ए बधुं भले जाण्युं
परंतु आत्मानुभव जाण्यो छे के नहि? –एना वगरनी तारी कोई कळाथी संसारनो अंत आवे तेम नथी, ए
कोई कळा तने आत्मशांति आपवा समर्थ नथी. अल्पकाळमां जीवन पूरुं थतां संसार समुद्रमां डूबी जईश