: २ : आत्मधर्म : कारतक : २४७४ :
वर्ष पांचमुं : सळंग अंक : कारतक
अंक ५हलो : ४९ : २४७४
श्री वीर प्रभुनो निर्वाण कल्याणक महोत्सव अने
तेओश्रीनुं अछिन्न शासन
(सुंदर स्वर्णपुरीमां. ए राग)
आजे वीर प्रभुजी निर्वाणपदने पामीया रे....
श्री गौतम गणधरजी पाम्या केवळज्ञान, –
सुर–नर आवे निर्वाण कल्याणकने ऊजववा रे.... आजे० १.
[साखी]
चरम तीर्थंकर वीर प्रभु चोवीशमां जिनराय,
भारतना वीतरागजी विरह पड्या दुःखदाय.
आजे पावापुरमां समश्रेणी प्रभु आदरी रे...
मुक्तिमां बिराज्या आज प्रभु भगवंत, –
अहीं भरतक्षेत्रे तीर्थंकर विरह पड्या रे... आजे० २.
त्रीस वर्षे तप आदर्या लीधां केवळज्ञान
अगणित भव्य ऊगारीने पाम्या पद निर्वाण.
प्रभुजी आपे तो आपनो स्वारथ साधीयो रे....
अम बाळकनी आपे लीधी नहि संभाळ, –
अमने केवळना विरहामां मूकी चालीया रे.... आजे० ३.
तोपण तुज शासनमहीं पाकया अमौलिक रत्न,
कुंद–अमृत गुरु कहान छे शासन धोरी नाथ.
जेणे तुज शासनने अणमूल ओप चडावीया रे....
जे छे अम सेवकना आतम रक्षणहार, –
जेणे भारतना भव्योने चक्षु आपीया रे... आजे० ४.
भरते वीर प्रभुनुं शासन आजे झूली रह्युं रे....
ते छे कहान गुरुनो परम परम प्रताप, –
–जेणे वीर प्रभुनो मुक्तिमार्ग शोभावीओ रे....
–जेनी वाणीथी जयकार नादो गाजता रे.... आजे० प.
(श्री जिनेन्द्र स्तवन मंजरी. नवी आवृत्ति पृ. ४२९)
पुस्तको मंगावनाराओने
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर–सोनगढ–थी रेल्वे द्वारा के पोस्ट द्वारा
पुस्तको मंगावनारा मुमुक्षुओने विनंति छे के तेओ पोतानुं पूरुं
सरनामुं अने रेल्वे स्टेशन स्पष्ट जणावे.
रेल्वे स्टेशन न जणावेलुं होय तेवा प्रसंगमां पुस्तक रवाना
करवामां घणी मुश्केली पडे छे.
जिनवर पंथे.
अमे तो जिनवरनां संतान...
जिनवर पंथे विचरशुं....
गातां प्रभुजीनां गुणगान....
उज्जवल आत्माने वरशुं...
जीवन वीताव्युं स्व–अर्थे जेणे,
राज–पृथ्वी त्यागी एणे,
पामी पूरण दशा ज्यां मान....
जिनवर पंथे... १.
स्वतंत्रतानां सूत्र शीखव्यां,
भूल्या पंथीने पंथ बताव्यां,
छे ज्यां ज्ञान–दर्श तप भाव....
जिनवर पंथे.... २.
धर्मोपदेश दीधां एणे,
चार तीर्थ स्थापीने जेणे,
दीधां द्रव्य–पर्यायनां ज्ञान....
जिनवर पंथे.... ३.
राग–द्वेष जीत्या जयकारी,
थया आत्म–लक्ष्मीना स्वामी,
पामी प्रभुजी केवळज्ञान....
जिनवर पंथे.... ४.
श्री जिनेन्द्रस्तवनावली – चोथी आ० पृ – ९७
सुधारो – अंक – ४८
पृ. २६० कोलम २ लाईन २१–
२२ “उपादान–निमित्तनो यथार्थ
निर्णय.......... आवी जाय छे” एम
छापेलुं छे, तेने बदले आ प्रमाणे
सुधारीने वांचवुं; “उपादान–निमित्तनो
यथार्थ निर्णय करे तो तेमां सम्यक्
नियत्वादनो पण यथार्थ निर्णय आवी
जाय छे.”