Atmadharma magazine - Ank 049
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 8 of 17

background image
पंडित प्रवर श्री टोडरमलजी कृत :– मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रंथ उपर
परम पूज्य श्री कानजी स्वामीए आपेला प्रवचनोमांथी
: कारतक : २४७४ : आत्मधर्म : ७ :
अनेरी वाणी.
ज्ञानी समजावे छे के – आत्माना स्वभावमां रागद्वेष नथी
एक वखत एक माणसने डाबा पगे गूमडुं थयुं, वाणंद तेने हमेशां पाटो बांधवा आवे. ज्यारे ते डाबा
पगने अडे त्यारे ते माणस बूम पाडवा मांडे, एम करतां करतां डाबा पगनुं गूमडुं लगभग रुझाई गयुं छतां
तेने बूम पाडवानी टेव पडी गई तेथी बूम पाडे. एक वखत ते वाणंद ते माणसना जमणा पगने पड्यो, तो
त्यां पण तेणे राड पाडी.... त्यारे वाणंदे तेने कह्युं के अरे भाई! तारा डाबा पगनुं गूमडुं कांई जमणा पगे न
आवी जाय, तुं मफतनो राड पाडे छे, तने खोटी राड पाडवानी टेव पडी गई छे. पोताने पीडा थाय छे के नथी
थती ते जाणवानी दरकार करतो नथी, पण मात्र हाथ अडे त्यारे दुःख मानीने राड पाडवानी टेव पडी गई छे.
जेम जमणा पगनुं गूमडुं डाबा पगे न आवे तेम पूर्वनी पर्यायना राग–द्वेष वर्तमान पर्यायमां आवता
नथी, पोते वर्तमान–वर्तमान नवा नवा राग–द्वेष करतो आवे छे. पण जो वर्तमानमां ज स्वभावना लक्षे
एकाग्र थाय तो रागद्वेष थाय नहि. आत्माना स्वभावमां रागद्वेष नथी, पर वस्तु राग–द्वेष करावती नथी
तेमज एक पर्यायना रागद्वेष लंबाईने बीजी पर्यायमां आवी जता नथी. पण अज्ञानीने रागरहित
आत्मस्वभावनी द्रष्टि नहि होवाथी ते एम मानी बेठो छे के पूर्व पर्यायना रागद्वेष चाल्या आवे छे. तेनी एवी
मान्यताने लीधे तेनो पुरुषार्थ रागद्वेषमां ज अटकी गयो छे अने तेने त्यां ज एकत्वबुद्धि थई गई छे ते
एकत्वबुद्धि छोडावीने स्वभावमां अभेदद्रष्टि कराववा माटे ज्ञानीओ तेने समजावे छे के, हे भाई तारा
स्वभावमां राग–द्वेष नथी, अने वर्तमान पर्यायमां राग–द्वेष थाय तेनो बीजा समये अभाव ज थई जाय छे, तुं
मफतनो भ्रमथी राग–द्वेषने तारुं स्वरूप मानी रह्यो छो. तुं विचार के ए रागादि परिणामो केटलां अनित्य छे?
कोई पण वृत्ति टकी रहेती नथी, माटे एवुं तारुं स्वरूप न होई शके. एम जो तुं तारा राग रहित चैतन्य
स्वभावनो विश्वास कर तो तारी पर्यायमांथी पण राग–द्वेष टळवा मांडशे. तारा स्वभावना लक्षे पर्यायमां पण
वीतरागतानी ज उत्पत्ति थशे. माटे तुं राग–द्वेष रहित शुद्ध ज्ञायक स्वभावनी ओळखाण अने श्रद्धा कर. –ए ज
दुःख टाळवानो उपाय छे. जीवे कदी पोता तरफ जोवानी दरकार ज करी नथी के, आ राग–द्वेष तो नवा थाय छे के
एकने एक ज सदाय चाल्यां आवे छे? अने एम राग–द्वेष स्वभावमां छे के नथी? राग–द्वेष पोताना ऊंधा
पुरुषार्थथी नवा नवा थाय छे अने स्वभावमां ते नथी–एम नक्की करीने जो स्वभाव तरफ ढळे तो रागथी
भिन्न स्वभाव केवो छे तेनो अनुभव थाय.
मात्र उपयोग बदलावानो छे.
आ धर्ममां शुं करवानुं आव्युं? प्रथम, जडनुं तो कांई आत्मा करतो नथी, अने जडमां कांई आत्मानो
धर्म थतो नथी. अमुक पुण्य कर के दान कर के भक्ति कर–एम पण कह्युं नहि, केमके ते बधाय विकार छे–धर्म
नथी. पण, पोताना चैतन्य उपयोगने पर तरफ वाळीने त्यां लीन थई रह्यो छे
ते उपयोगने स्वभाव तरफ
वाळीने त्यां ज लीन करवानो छे। ‘पुण्य–पाप मारां’ एवी मान्यता करीने पोताना उपयोगने त्यां रोकी दीधो
छे, ते ज अधर्म छे; ते उपयोगने स्वभावमां वाळीने ‘शुद्ध चैतन्यमूर्ति स्वभाव ते ज हुं’ एवी स्वभाव तरफनी
श्रद्धा ज प्रथम करवानी छे अने ते ज पहेलो धर्म छे. अने त्यारपछी पण बहारमां कांई करवानुं आवतुं नथी
तेम ज व्रत–तपादिना शुभराग आवे ते पण धर्मीनुं कर्तव्य नथी परंतु जे शुद्ध स्वभावनी श्रद्धा करी छे ते ज
शुद्ध स्वभावमां उपयोगने लीन करवो ते ज सम्यक्चारित्र अने केवळज्ञाननो मार्ग छे. धर्मनी शरुआतथी
पूर्णता सुधी एक ज क्रिया छे के ‘शुद्धात्मस्वभावमां चैतन्य उपयोगने लीन करवो;’ ए सिवाय बीजी कोई क्रिया
धर्ममां आवती नथी. जेटली स्वभावमां लीनता तेटलो धर्म छे–लीनतानी कचाश तेटलो दोष छे.
बोम्बमारो ने तेनाथी बचवानो उपाय
अज्ञानी जीव जगतमां क्यां बोम्ब पड्यो अने कया देशनो क्यो बंगलो भस्मीभूत थयो–एने तो
होंशथी जाणवानी दरकार करे छे, परंतु अनंत गुणरूपी बंगलाथी