अनंतकाळमां अनंतवार ऊग्यां ने पाछां अस्त थई गयां, पण सम्यग्दर्शनरूपी प्रभात वगर जीवनुं कांई
कल्याण थयुं नहि. आ सम्यग्दर्शन तो एवुं सुप्रभात छे के जे ऊग्युं ते ऊग्युं, ऊग्या पछी कदी नाश थाय नहि.
एवा सम्यग्दर्शनपूर्वक ज्ञान अने क्रियाथी मोक्षरूपी सुप्रभात प्रगटे छे.
तरफ ढळ्यो त्यां पुण्य–पाप–रूप व्यवहारनो नाश थवा मांडयो. पोताना अस्तिस्वभाव तरफ वलण कर्युं, अने
पर्यायमां विकार होवा छतां तेना तरफथी वलणने खेंची लीधुं, एटले स्वभावनी अस्तिना जोरे विकारनी
नास्ति थवा मांडी. एवा जीवने जरूर सर्वे कर्मोनो नाश थाय छे अने केवळज्ञानादि स्वचतुष्टय स्वरूपे आत्मा
उदय पामे छे–ते ज सुप्रभात छे.
केवळज्ञानादि प्रगटया पहेलां ज शक्तिस्वभाव पुरो छे, तेनो विश्वास करे तो तेना आश्रये ज्ञान ते तरफ वळे,
अने ज्यां ज्ञान स्वाश्रये वळ्युं त्यां तेमां पण बेहदता थई, अने स्वभावनो संपूर्ण आश्रय करतां अनंत
केवळज्ञान प्रगट थयुं; तेम पोतानो आनंद स्वभाव परिपूर्ण छे तेनी श्रद्धा करीने पूर्ण स्वाश्रय करतां पर्यायमां
अनंत परिपूर्ण आनंद प्रगट थयो; तेवी ज रीते वीर्य–पुरुषार्थ (–आत्मबळ) पण स्वाश्रये परिपूर्ण प्रगटयुं;
अने दर्शनने पण संपूर्ण स्वाश्रय मळतां ते पण पूर्ण प्रगटयुं.–एवा स्वचतुष्टय ते अविभक्त आत्म कुटुंब छे,
तेमां कदी भेद पडे नहि. ए अनंतचतुष्टयरूप दशा प्रगटे ते तो संपूर्ण सुप्रभात मंगळ छे, अने परिपूर्ण
शक्तिरूप स्वचतुष्टयनी श्रद्धा करवी ते पण सुप्रभातमंगळ छे. अत्यारे ज हुं परिपूर्ण छुं, स्वचतुष्टयथी भरेलो
ज त्रिकाळ छुं–एम स्वभावद्रष्टिथी जे मानतो नथी ते कदी स्वाश्रय करतो नथी अने स्वाश्रय वगर आत्मामां
सुप्रभात प्रगटे नहि.
तरफ वळीने ज्यारे पूर्णतानो निर्णय कर्यो त्यारे ते सम्यक् निर्णय अने ज्ञानरूप अवस्था स्वभावमां ढळी. ते
अवस्था पोते स्वभावना आश्रये अनंतचतुष्टयरूप परिणमी जाय छे, आत्मा पोते ज ते पूर्णपर्यायरूपे
परिणमी जाय छे, तेथी ते दशा आत्माथी कदी पण जुदी पडती नथी. पहेलां परिपूर्ण स्वभावने जाणीने, तेनो ज
आश्रय करवो ए अधूरामांथी पूरा थवानो उपाय छे.
निषेध कर्यो तेथी हवे पराश्रय छोडीने अवस्था स्वाश्रय तरफ वळी; आत्मा पहेलां पराश्रये ओछी अने विकारी
अवस्थाने धारण करतो हतो तेने बदले हवे स्वाश्रये पूरी अने शुद्ध अवस्थाने धारण करे छे, ते अवस्था संपूर्ण
ज्ञान, संपूर्ण दर्शन, संपूर्ण सुख अने संपूर्ण आत्मबळ सहित छे, एने ज संतो सुप्रभातनो विलास कहे छे.
गई, एटले के अशुद्धता टळती गई अने शुद्धता वधती गई; आत्मा पोते स्वभावमां ज तन्मय थई गयो.
पहेलां अज्ञानने लीधे विकारी भावोने पोतानुं स्वरूप मानीने तेमां तन्मय थतो तेथी स्वभाव अने पर्यायनी
एकता थती न हती पण भेद पडतो. हवे भेदज्ञानना बळथी विकरनी उपेक्षा करीने स्वभावमां तन्मय थयो
तेथी स्वभाव अने पर्याय वच्चेनो भेद न रह्यो, बंने अभेद थया, पर्याय पोते स्वभावमां भळी गयो. हवे,
स्वभावमां ढळुं–एवो विकल्प पण न रह्यो.–आवी अंतरदशाने सुप्रभात कहेवाय छे. एवा सुप्रभातस्वरूपे
आत्मा उदय पामे छे, ते मंगळ छे, तेनुं आचार्यदेव वर्णन करे छे.