(वसंततिलका) (गुजराती समयसार
पृ. ५७०)
: २४ : आत्मधर्म : मागसर : २४७४ :
(३) ज्ञान अने क्रिया
मारामां जीवत्वशक्ति छे; हुं कोई परना आधारे जीवतो नथी पण मारा त्रिकाळ चैतन्य भावप्राणथी ज
हुं टकयो छुं. आ रीते पोताना त्रिकाळ–अस्तिस्वभावनुं भान करवुं ते ज साचुं ज्ञान छे, अने ते ज्ञानथी
जाणेला स्वभावना आश्रये टकतां अशुद्धतानो नाश थाय छे ते ज साची क्रिया छे. आ ज्ञान अने क्रिया ते ज
मोक्षनुं कारण छे. ए सिवाय बीजुं कोई ज्ञान के बीजी कोई क्रिया मोक्षनुं कारण नथी. शास्त्रोनुं ज्ञान शरीर
वगेरेनी क्रिया के पुण्यनी क्रिया–ए कोई धर्म नथी, ने तेनाथी संसारनो अंत आवतो नथी. पोताना पूर्ण
शुद्धस्वभावनी ओळखाण ते ज्ञान छे, ने ते स्वभावना आश्रये अशुद्धतानो नाश ते क्रिया छे; ए ज्ञान–क्रिया
वडे संसार–रात्रिना अंधारानो नाश थईने अनंतचतुष्टयना प्रकाशनी उत्पत्ति थाय छे.
(४) नश वगरन उत्पद
आत्मामां पूरेपूरुं ज्ञान, पूरेपूरुं दर्शन, पूरेपूरुं सुख अने पूरेपूरुं आत्मबळ प्रगट थाय तेने स्वचतुष्टय
कहेवाय छे. आत्मामां एवा स्वचतुष्टयनो जे उत्पाद थयो ते उत्पाद नाश वगरनो छे. एटले आत्मामां ज्ञान
अने सुखमय जे सुप्रभात प्रगटयुं तेनो कदी नाश थवानो नथी; ए सदाय एवुं ने एवुं टकी रहेशे. आत्मानो
शुद्ध चैतन्य स्वभाव त्रिकाळ छे, तेना आश्रये जे पूर्ण शुद्धदशा प्रगटी तेनो हवे कदी नाश थाय नहि. माटे
आत्मानी साची ओळखाण अने स्थिरताना पुरुषार्थवडे आत्मामां जे अनंत चतुष्टयरूप दशा प्रगटी ते ज
स्वकाळरूप सुप्रभात छे; ते सुप्रभात प्रगटया पछी आत्माने जन्म–मरण होतां नथी; तेने स्वकाळनी पूर्णता
थई, आत्मामां साचुं प्रभात खील्युं; आत्मानो प्रातःकाळ ऊग्यो. परमार्थे आनुं ज नाम बेसतुं वर्ष छे. एवा
बेसता वर्षना मंगळिक सुप्रभातनुं श्री अमृतचंद्राचार्यदेव वर्णन करे छे:–
चिंत्पिंऽचंडिमविलासिविकासहासः शुद्धप्रकाशभरनिर्भरसुप्रभातः।
आनंदसुस्थितसदास्खलितैकरूप– स्तस्यैव चायमुदयत्यचलार्चिरात्म।।२६८।।
सुप्रभात समान आ आत्मा उदय पामे छे. स्वभावना आश्रये आत्मामां सुचतुष्टयनो प्रकाश थयो ते
ज सुप्रभात छे. पोतानो स्वभाव त्रिकाळ शुद्ध छे, तेने ओळखीने तेनो आश्रय करतां सर्व मलिनता नाश पामे
छे, ने चार घनघाति कर्मो पण नष्ट थाय छे. जेणे स्वभावना आश्रये पूर्णदशा प्रगट करी तेने आखो आत्मा ज
उदय पाम्यो–एम अहीं कह्युं छे.
(५) ज्ञान अने क्रियानुं स्वरूप
ज्ञान अने क्रियाथी मोक्ष थाय छे. पण कयुं ज्ञान अने कई क्रिया? आत्मा शुद्ध वीतराग स्वभावी छे,
ज्ञानस्वभाव ज छे, ए स्वभावनी ओळखाण ते ज्ञान छे, अने ते ज्ञान थतां रागादिनी अने परनी उपेक्षा थाय
छे तथा अशुद्धतानो नाश थाय छे–ते ज क्रिया छे. एवुं ज्ञान अने एवी क्रिया ते ज मोक्षरूपी सुप्रभात प्रगटवानो
उपाय छे. कोई शुभरागथी के जडनी क्रियाथी मोक्ष प्रगटतो नथी. पंडित बनारसीदासजी पण कहे छे के–
बिनसि अनादि अशुद्धता, होइ शुद्धता पोख।
ता परिणतिको बुध कहे, ज्ञान क्रियासों मोख।।३७।।
हुं ज्ञानस्वभावथी पूरो भरेलो छुं एवी श्रद्धा अने ओळखाणवडे ज्ञानमां शुद्धतानुं पोषण थायने
अनादिनी अशुद्धतानो नाश थाय तेने संतो ज्ञानक्रिया कहे छे. स्वभावनी ओळखाणथी जे शुद्ध परिणति प्रगटी
ते परिणति ज ज्ञान छे, ने अशुद्धता टळी ते परिणति ज क्रिया छे, तेनाथी ज मोक्ष थाय छे. ‘हुं ज्ञान छुं, हुं
दर्शन छुं, हुं चारित्र छुं, एवा विकल्प ते पण राग छे, ते मोक्षनी क्रिया नथी, पण हुं चैतन्य–भानु छुं,
चैतन्यस्वरूपने कोई विकल्पनी अपेक्षा नथी–एम स्वभावना आश्रये, विकल्परहित श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र ते ज
मोक्षनी क्रिया छे.
(६) सम्यग्दशनरूप अप्रतहत सप्रभत
हुं–आत्मा चैतन्यभानु छुं. जेम सूर्यने दीपकनी जरूर पडे नहि तेम मारा चैतन्यप्रकाशने परनी अपेक्षा
नथी. मारी ज चैतन्यशक्तिवडे बधुं जणाय छे. ए चैतन्यशक्ति परिपूर्ण छे, ने विकार रहित छे.–आवी यथार्थ श्रद्धा
ने ओळखाण थतां अनादिनो मिथ्यात्वरूप अंधकार टळ्यो ते फरीथी हवे कदी ऊपजे नहि, अने जे सम्यक्त्वरूप
प्रकाश प्रगटयो ते फरीथी कदी नाश थाय नहि. सम्यग्दर्शन थयुं ते हवे अप्रतिहतपणे सिद्धदशा लीधे ज छूटको.
अत्यारे पण क्षायक जेवा अप्रतिहत सम्यक्त्वना ज भणकार जीव प्रगट करी शके छे. आत्मामां सम्यग्दर्शननो जे