Atmadharma magazine - Ank 050
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : मागसर : २४७४ :
(८) अचलत सप्रभत
अनंत चतुष्टयरूप सुप्रभातपणे आत्मा उदय पामे छे, ते केवो छे?–तो कहे छे के अचलार्चि एटले के
जेनुं केवळज्ञान अने केवळदर्शनरूपी तेज सदाकाळ अचलित एकरूप छे–एवो छे; एवुं बेहद वीर्यसामर्थ्य प्रगटयुं
छे के जेथी चैतन्यनी जवाळा अचल रहे छे, फरीथी कदी चलायमान थती नथी. अज्ञानदशामां तो चैतन्यज्वाळा
प्रगटी ज न हती, विपरीत हती ने पुण्य–पापथी दबाई जती हती, त्यां तो सुप्रभात प्रगटयुं ज न हतुं. सम्यक्
आत्मज्ञान थतां चैतन्यज्योति उदय पामी–सुप्रभात शरू थयुं, परंतु ते दशामां ज्ञान–दर्शननी ज्योति पर्याये
पर्याये वधती जती हती, पण एकरूप रहेती न हती तेथी त्यारे ते अचल न हती. परंतु स्वरूपमां संपूर्ण
तन्मयता थतां आत्मामां जे सुप्रभात उदय पाम्युं तेना केवळज्ञान अने केवळदर्शननी ज्योति अचल छे, स्थिर
छे, हवे ते कंपायमान थती नथी. ‘अचल’ कहेतां एम न समजवुं के केवळज्ञान– दशामां परिणमन ज होतुं
नथी. केवळज्ञानदशामां उत्पाद–व्ययरूप परिणमन होवा छतां, केवळज्ञान अने केवळदर्शनना प्रकाशमां जराय
वधारो के घटाडो थतो नथी, पण एवो ने एवो ज रहे छे माटे तेने अचल कहेवामां आवे छे.
(९) भगवत स्वभव अन भगवत प्रज्ञ
भगवती चैतन्यमूर्ति स्वभाव छे. पाप के पुण्य परिणाम तो कुशील छे, ने चैतन्य स्वभाव भगवतीरूप
छे. एवा भगवती स्वभावने जाणनारुं जे सम्यग्ज्ञान ते भगवती प्रज्ञा छे. जेणे भगवती प्रज्ञाद्वारा भगवती
स्वभावनो आश्रय कर्यो ते भगवान आत्मा पोते केवळज्ञान अने केवळदर्शनपणे अचल प्रगट थयो.
समयसारमां श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे, ज्ञाननी भेद–ज्ञानरूप दशाने ‘भगवती प्रज्ञा’ एवा पवित्र नामे
संबोधन कर्युं छे. आत्माना स्वभावने अने विकारने जुदा पाडवा माटे आ भगवती प्रज्ञा छीणी समान छे.
सम्यग्द्रष्टि आत्माओ द्वारा बराबर पटकवामां आवतां ते भगवती प्रज्ञाछीणी स्वभावमां जईने रागने छेदी
नाखे छे, ने जे कदी फरे नहि एवी ज्ञाननी ज्योतिने प्रगट करे छे–अर्थात् केवळज्ञान पमाडे छे. केवळज्ञानरूपी
सुप्रभातनुं कारण भगवती प्रज्ञा ज (भेद विज्ञान ज) छे, तेथी ते पण सुप्रभात छे अने मंगळरूप छे.
(१०) सुप्रभात कयारे ऊगे?
आत्मामां पोतानो स्वकाळ (–पर्याय) पूर्णपणे प्रगटे ते ज सुप्रभात छे; परंतु बेसता वर्षना दिवसना
सूर्यनो प्रकाश ऊगे ते कांई खरेखर सुप्रभात नथी, ते तो अल्पकाळमां अस्त पामे छे. भले काळी चौदसनी
रातना बार वाग्या होय, पण आत्मामां मिथ्यात्वरूप पर्वतने भेदीने स्वभावना आश्रये सम्यग्दर्शन प्रगट करी
त्यारबाद स्थिरता वडे केवळज्ञान थतां जे चैतन्यनो झळहळतो प्रकाश उदय पाम्यो ते ज सुप्रभात छे, तेनो कदी
अस्त थतो नथी.
(१) सुप्रभात कोने प्रगटे: साधकदशा मंगळरूप छे
एवुं सुप्रभात कोने प्रगटे? जेणे आत्मस्वभावने जाण्यो एवा धर्मात्मा–सम्यग्द्रष्टि जीवने ज स्वभावना
आश्रये सुप्रभात प्रगटे छे. सम्यग्दर्शन वगर धर्मीपणुं होतुं नथी. सम्यग्दर्शन थतां ज जीव धर्मी थाय छे;
सम्यग्द्रष्टि धर्मात्माने निर्जरारूप दशा होय छे, ते दशा पवित्र छे, तेथी जो के तेमने पण सुप्रभात ऊग्युं छे,
परंतु ते अपूर्ण दशा छे तेथी हजी पूर्ण सुप्रभात प्रगटयुं नथी, स्वकाळ पूर्ण प्रगटयो नथी; केवळज्ञान नथी थयुं
पण भेदज्ञान प्रगटयुं छे, तेथी तेमना आत्मामां धर्मकाळ वर्ते छे–साधकदशा वर्ते छे. पूर्णना आश्रये जे
साधकदशा शरू थई छे ते आगळ वधीने पूर्ण थवानी ज छे. तेथी ए साधकदशा पण मंगळरूप छे.
अनंत शक्तिनो पिंड चैतन्य स्वरूप आत्मा ते द्रव्य छे, पोताना असंख्य प्रदेश ते स्वक्षेत्र छे, वर्तमान
वर्ततो साधक भावरूप पर्याय ते स्वकाळ छे अने ज्ञान–दर्शन–सुख–वीर्य वगेरे अनंतगुणो ते तेनो भाव छे
पोताना स्वद्रव्य–क्षेत्र–काळ ने भावथी आत्मानो स्वभाव परिपूर्ण छे. भगवती प्रज्ञावडे ए स्वभावनो आश्रय
करतां सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान प्रगटयां तथा स्वभावनुं वीर्य प्रगटयुं अने स्वभावना सुखनो अंश
प्रगटयो, ते स्वकाळनी शरूआत छे, ते धर्मकाळ छे, ते निर्जरानो काळ छे, ते साधक काळ छे ने ते ज धर्मनी
युवानीनो काळ छे. त्यां हजी ज्ञान–दर्शननो प्रकाश अचल नथी, पण अल्पकाळमां ज, स्वभावनो संपूर्ण आश्रय
करतां तेने सर्व अशुद्धता अने कर्मोनो सर्वथा क्षय थईने आत्मामां स्वचतुष्टयनो अचल प्रकाश प्रगट थशे.
(१२) ज्ञानीओनी भावना
लौकिक माणसो एम कहे छे के आजे बेसतुं वर्ष छे, माटे बोलवा–चालवामां ध्यान राखजो. जो आजे