के–आखा आत्मस्वभावमां विकार ज नथी एवी श्रद्धा अने ज्ञान करजो. पर्यायमां क्षणिक विकार थाय ते मारा
स्वभावमां नथी. –विकाररहित मारा आत्मस्वभावनी भावना वडे एक क्षणमां पर्यायनो विकार तूटी जशे. –
आम ज्ञानीपुरुषो स्वभावनी भावनावडे अशुद्धतानो नाश करे छे, अने आत्मामां मंगळ–सुप्रभात प्रगट करे छे.
तेवी रीते आत्मामां सुप्रभात थतां चैतन्यसूर्य प्रगटयो, तेनी ज्योतिनो एवो प्रभाव छे के तेना तेज–प्रभावमां
राग के दुःख आवी ज शकता नथी. चैतन्य–पूंजनो जे प्रताप तेना विकारथी भरपूर एवा निधान सहित
सुप्रभात उदय पामे छे. जड निधान (लक्ष्मी) मां आत्मानुं सुख नथी, पण आत्मानो चैतन्य निधानथी भरेलो
विकास थाय ते ज सुख छे.
ज्ञाननी एकरूप अचल परिणति ते ज चैतन्यनो प्रताप छे, रागमां अटकवुं ते चैतन्यनो प्रताप नथी. चैतन्यनी
स्थिर परिणतिनो प्रकाश खीली नीकळ्यो ते ज चैतन्यनुं अखंड निधान छे. जड पैसा वगेरेना निधानथी तो
आत्मा जुदो ज छे, ए जड निधाननो स्वामी आत्मा नथी, ने ते संयोगनो अल्पकाळमां वियोग थई जाय छे,
आ स्वानुभवथी प्रत्यक्ष एवा ज्ञानस्वभावी भगवान आत्मानी ओळखाण–प्रतीति अने एकग्रता थतां जे
रहे छे तेथी ते अक्षय निधान छे.
अपूर्णता न थाय, ने तेमां कदी विकार न थाय.
पूरी दशा प्रगटवा मांडी त्यारे शक्तिमांथी कांई ओछुं थई गयुं–एम नथी. पूर्ण दशा प्रगटी त्यां पण शक्ति पूरी
ज छे, ने अधूरी दशा वखते पण शक्ति पूरी छे. अधूरी दशा हो के पूरी दशा हो–पण शक्ति तो पूरी ज रहे छे.
एटले आमांथी तो ए सिद्ध थयुं के त्रिकाळ–शक्तिस्वभाव निरपेक्ष छे, पर्यायनी तेने अपेक्षा नथी.
छे, वर्तमानमां अवस्थामां फेर छे. चैतन्यशक्तिनी श्रद्धा अने आश्रयना जोरे सिद्धदशा प्रगट थाय छे, पण कांई
चैतन्यशक्ति पोते प्रगट थती नथी. चैतन्यस्वभावने जाणीने तेनो आश्रय करतां बधाय द्रव्य–गुण–पर्यायने
एक साथे स्पष्टपणे जाणवानी पर्यायनी ताकात प्रगटी अर्थात् परमार्थ स्वभावना आश्रये व्यवहारने छेदीने
पूर्ण–दशा प्रगटी, त्यारे स्वभाव सामर्थ्यमांथी कांई पण घटी गयुं नथी, तेम वध्युं पण नथी. जे शक्तिस्वभाव
तेथी कांई श्रक्तिमांथी घटी जतुं नथी, अने पर्यायमां घणी पवित्रता होय तेथी कांई शक्तिमां वधी जतुं नथी.
तेम ज ज्यारे पर्यायमां थोडुं सामर्थ्य प्रगट होय त्यारे शक्तिरूप घणुं रहे–एम नथी, अने पर्यायमां ज्यारे घणुं
सामर्थ्य प्रगटे त्यारे शक्तिमांथी ओछुं थई जाय–एम नथी. जे निर्मळदशा प्रगटी तेनुं माहात्म्य सम्यग्दर्शनमां
(–सम्यक्श्रद्धामां) नथी, पण त्रिकाळी एकरूप निरपेक्ष स्वभावनुं ज–परम परिणामिक भावनुं ज–तेमां