Atmadharma magazine - Ank 050
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : मागसर : २४७४ :
माहात्म्य छे, एना ज आश्रये (–लक्षे) निर्मळता प्रगटे छे. ज्यारे ओछामां ओछो पर्याय प्रगट हतो त्यारे
त्रिकाळी पूर्ण चैतन्य स्वभाव शक्तिपणे हतो, अने ज्यारे पूर्ण पर्याय प्रगटयो त्यारे पण ते त्रिकाळी
शक्तिस्वभाव एवो ज छे. आवो ज कोई अचिंत्य अगुरुलघुस्वभाव छे, ते स्वभावना महिमारूप आ
मांगळिक थाय छे. अधूरो पर्याय हो के पूरो पर्याय हो, शक्तिस्वभावे आत्मा सदा परिपूर्ण छे, एनो महिमा
समजवो अने एनो विश्वास करवो ते मांगळिक छे.
द्रव्यना परिपूर्ण स्वभावनी द्रष्टिथी जोईए तो, ओछी अवस्थाए ओछुं कार्य कर्युं ने वधारे अवस्थाए
वधारे कार्य कर्युं–एम नथी. केमके दरेक पर्याय वखते परिपूर्णस्वभाव ज वर्ती रह्यो छे. कई अवस्था वखते
स्वभाव परिपूर्ण नथी? पर्यायना कार्यनो भेद व्यवहारथी छे पण निश्चयथी जुओ तो नाना पर्याये के मोटा
पर्याये (अधूरा पर्याये के पूरा पर्याये) परिपूर्ण द्रव्य–गुणने टकावी राख्या छे. माटे त्रिकाळी द्रव्य–गुणनी
द्रष्टिथी पर्यायना कार्यभेदनो स्वीकार नथी. अधूरो के पूरो पर्याय ते बंनेए स्वभावने ज टकाववानुं कार्य कर्युं
छे. आवो कोई अगुरुलघु स्वभाव छे. जेम द्रव्य–गुण अगुरुलघुस्वभावे छे, तेम पर्यायमां पण
अगुरुलघुस्वभाव छे. नानो पर्याय अने मोटो पर्याय एवा पर्यायभेदना आश्रयने छोडीने त्रिकाळी स्वभावना
आश्रये पूर्णतानो जे विकास थाय छे ते ज मंगळ सुप्रभात छे.
(१५) वस्तुस्वभावनी पूर्णता
प्रश्न:–शुद्धात्मस्वभावनी साची श्रद्धा करीने, स्वश्रयना पुरुषार्थथी जेने सुप्रभात प्रगटयुं तेने गुण–
पर्याय वच्चेनो भेदभाव टळी गयो, ने एकता थई, तेथी पर्यायमां पूरुं ज्ञान, पूरुं सुख, पूरुं आत्मबळ प्रगटयुं,
तो हवे शक्तिमां कांई ज्ञानादि बाकी रहेशे के नहि?
उत्तर:–आत्मा त्रिकाळी पदार्थ छे, तेनी शक्ति सदाय पूरी ज छे. अनंतकाळ सुधी एवी ने एवी परिपूर्ण
अवस्था प्रगयटा करशे, छतां शक्ति पण एवी ने एवी पूरी ज रहेशे शक्ति पोते परिपूर्ण रहीने तेमांथी
त्रणेकाळनी अवस्थाओ क्रमेक्रमे प्रगटे छे, एवा माहात्म्यथी भरेलो वस्तुस्वभाव छे.
(१६) अखट चतन्य नधन
चैतन्यस्वरूपी आत्मानी लक्ष्मी एवी छे के तेने गमे तेटली भोगव्या करो तो पण अनंतकाळे पण तेमांथी
एक अंश पण ओछो थतो नथी, अखूट चैतन्य शक्तिनां निधान छे. लोको कहे छे के बेठो बेठो खाधा करे तो मोटा
भंडार पण खूटी जाय.–एवुं आत्मामां नथी. आत्माना चैतन्य निधान तो एवां छे के बेठो बेठो खाधा करे एटले
के पर्यायमां पूर्ण ज्ञान–आनंदने भोगव्या करे तोपण अनंतकाळे शक्तिमांथी एक अंश पण घटे नहि. अरे ए
चैतन्य शक्तिनी ओळखाण थतां जे अंशे ज्ञान–आनंदरूपदशा प्रगटी, ते दशाने बेठा बेठा भोगव्या करे–
विशेषदशानो पुरुषार्थ वर्तमानमां न करे तोपण शक्ति खूटी जती नथी अने प्रगटेला अंशनो पण नाश थई जतो
नथी. आवा अक्षय–अलौकिक पोताना भंडारनी ओळखाण करवी ते ज सुप्रभात प्रगटवानो उपाय छे.
(१७) महत्सव
ज्ञान–दर्शन–चारित्रनी आराधना संपूर्ण थतां ते ज भवे केवळज्ञान प्रगटे छे. अने जो ते आराधना
संपूर्ण थया पहेलां देह छूटे तो समाधि मरण करीने, एकावतारी थाय छे, अने बीजा भवे ते आराधनानो भाव
पूरो करीने केवळज्ञान पामे छे,–तेना आ महोत्सव छे. स्वभावनी आराधनाए जे चडयो तेने पूर्णता थाय ज.
(१८) आचार्यप्रभु आत्मानुं सिद्धपद बतावे छे
श्रीरामचंद्रजी पोते ते भवे सिद्ध थवाना हता तेथी तेओ ज्यारे बाळक हता त्यारे तेमने एवो भाव
जाग्यो के उपरथी पूर्णिमाना चंद्रने उतारीने मारा खीसामां मूकुं. ए विचारथी तेओ चंद्र सामे हाथ लांबा करी
करीने रडता हता. त्यारे प्रधाने तेमना हाथमां अरिसो आपीने तेमां चंद्रनुं प्रतिबिंब बताव्युं. महापुरुष छे
एटले उपरथी चंद्रने हेठे (प्रतिबिंबरूपे) ऊतार्यो. तेम जेओने सिद्ध थवुं छे एवा आत्माओ सिद्धपदना पडकार
करे छे. सिद्ध भगवानने पोकार करे छे के हे सिद्ध भगवंतो! आप उपरथी उतरो, मारे सिद्ध पद जोईए छे. आ
पंचमकाळमां सिद्धपदनां विरह पडया छे.
–परंतु जेम आकाशनो चंद्र नीचे न ऊतरे तेम उपरथी सिद्धभगवान नीचे नहि ऊतरे, त्यारे तीर्थंकर
भगवानना प्रधान श्रीगणधरदेवो समाधान करावे छे के–भाई, जो हुं तने तारुं सिद्धपद बतावुं छुं. तुं तारा
ज्ञानबिंबमां जो, तेमां तने सिद्धभगवाननुं प्रतिबिंब देखाशे. अमारा आत्मामां अने तमारा आत्मामां अमे
सिद्धभगवानने स्थापीए छीए. उपरथी सिद्धने उतारीने पोताना भावथी आत्मामां स्थाप्या छे–एटले के–पोतानो