: मागसर : २४७४ : आत्मधर्म : १९ :
आचार्य भगवान जगतने भेट आपे छे.
(ता. २१ – ८ – ४७ ना दिवसे सवारे रथयात्रा बाद पूज्य गुरुदेवश्रीए करेलुं मांगळिक)
आत्मानो परमानंद ते मंगळिक छे, अने तेमां निमित्तरूप आ शास्त्रने पण मंगळिक कहेवाय छे.
भगवानना दिव्यध्वनिनी परंपराथी जे शास्त्रो रचाणां छे ते आ जयधवल, धवल वगेरे परमानंदनुं कारण छे
केम के तेमां भगवानना परमानंदनुं निमित्त छे. परमानंद तो आत्मानो स्वभाव छे, पण तेना निमित्त तरीके
शास्त्रोने पण परमानंदनी उपमां आपी छे. परमानंद अने आनंद ते आत्मानी स्वभाव दशा ज छे, तेमां
कारणभूत भगवाननी वाणी अने तेनी परंपराथी रचायेला शास्त्रो छे तेने पण आचार्यभगवाने परमानंद ने
आनंद कही दीधा छे.
आ जयधवलाशास्त्रने ‘दोग्रंथिकप्राभृत’ कहेवाय छे, अने ते परमानंदनुं कारण छे. ‘प्राभृत’नो अर्थ
भेट थाय छे. केवळ आत्मानो परमानंद के आनंद तो भेट आपवानुं बनी शकतुं नथी, ते तो कोईने अपातो
नथी, पण ते आनंदना निमित्तभूत जे द्रव्यो (शास्त्रो) तेनी आचार्यभगवाने भेट आपी छे, तेने
‘दोग्रंथिकप्राभृत’ कहेवाय छे, अने ते भेटद्वारा आचार्यभगवाने भव्य जीवोने परमानंदनी ज भेट धरी छे.
आचार्यदेवे पोते परमानंदने अनुभव्यो छे अने ‘जगतना जीव पण ते पामे’ एवी भावनाथी
आचार्यभगवंतोए आवा महान शास्त्रो रचीने जगतने आनंद तथा परमानंदनी भेट करी छे. भगवाननी
वाणीद्वारा पोते परमानंद पामीने, ते वाणी भव्यजीवोने परमानंद पामवा माटे भेट करी छे. जेने मोक्षदशा
प्रगट करवी होय तेने ते भेट आपी छे. जगतने आ शास्त्रोद्वारा आचार्योए परमानंदनी भेट आपी छे, आ
शास्त्रोनो अक्षरे अक्षर आत्माना आनंदनुं निमित्त छे, तेमां एक अक्षरनो पण फेर नथी,–नथी.
आचार्यदेवोने परमानंदनी भेट करवानो जे विकल्प ऊठयो ते ज एम बतावे छे के परमानंद प्रगट
करनार जीवो थवाना छे. जेने मुक्ति अने परमानंद प्रगट करवो होय तेने माटे आचार्योए आ परमागमोनी
भेट आपी छे, जेने आत्माना आनंदनुं बहुमान आवे तेने तेना निमित्त तरीके शास्त्रोनुं पण बहुमान आवे
ज, अने तेना बहुमान–भक्तिथी, ज्ञाननी रुचि करीने तेनी प्रभावना करे.
अप्रमत्त अने प्रमत्तदशामां वर्ती रहेला निर्ग्रंथ संतोने एवो विकल्प ऊठयो के हुं जे परमानंद पाम्यो छुं
तेनुं जगतने भेटणुं करुं–जगत पण ते आनंद पामे. आचार्योने एवो विकल्प ऊठयो ने जगतमां ते आनंद
लेनारा जीवो न होय एम कदी बने ज नहि. आनंद प्रगट करनारा जीवो छे, ते ज मंगळिक छे. आचार्य–
भगवान कहे छे के अमे आनंद लईने एकावतारी थई जईए छीए, अने जगतने ते आनंदनी भेट करीए
छीए. जगतमां आनंद प्रगट करनारा जीवो छे ज. मारो आनंद स्वभाव जे प्रगटयो ते पूर्ण थईने सदाय
जयवंत रहो–एवी भावना वडे ‘जगत पण ते आनंद पामो’ एवो जे अमने विकल्प ऊठयो छे ते निष्फळ नहि
ज जाय. आचार्यभगवान पोते ज खातरी आपे छे के जगतमां अमारी आनंदरूपी भेटने स्वीकारनारा जीवो
पाकशे..अनेक धर्मीओ पाकशे, समजशे, अनुभव करशे, आगळ वधशे ने जैन शासनने दीपावशे.....
अष्टाह्निका महोत्सव
• सोनगढमां कारतक सुद ८ थी १५ सुधी अष्टाह्निका महोत्सव घणा उत्साहथी उजववामां आव्यो हतो.
मध्यलोकमां आवेला समस्त (४५८) अकृत्रिम शाश्वत जिनालयोनुं एक सुंदर चित्रपट तैयार कराववामां आव्युं हतुं
अने तेमां नंदीश्वर द्वीपे जईने देवो भक्ति करे छे ते पण दर्शाववामां आव्युं हतुं. अष्टाह्निकाना आठ दिवसो दरमियान
मध्यलोकना समस्त अकृत्रिम जिनालयोनुं पूजन करवामां आव्युं हतुं. पूनमने दिवसे पूजन थया पछी भगवानश्री
सीमंधरनाथनो अभिषेक, वाद्य–घोषणा सहित ईन्द्रोए कर्यो हतो. भक्त मंडळमां खूब उल्लास हतो.
श्रीमद्नो जन्म दिवस
• पूज्य सत्पुरुष श्रीमद् राजचंद्रजीनो जन्म दिवस कार्तिक सुदी पूर्णिमानो छे. ते प्रसंगानुसार सोनगढमां
सवारना आत्मसिद्धिनी स्वाध्याय करवामां आवी हती. स्वाध्याय पुरी थया पछी परमकृपाळु पूज्य श्री
सद्गुरुदेवश्रीए श्रीमद् राजचंद्र विषे थोडुं कह्युं हतुं, के ‘श्रीमद्ना जन्मने आजे ८० वर्ष थया; पण आयुष्यनो योग
बहु ओछो, फक्त ३३ वर्ष अने प महिनानी उमरे देह छोडयो. तेमनामां उघाड धणो हतो–उघाडनो दरियो हतो. ते
वखतमां आखा हिन्दुस्तानमां एवो एक ज जीव हतो. जो श्रीमद् अत्यार सुधी होत एटले के जो लांबु आयुष्य होत
तो घणुं (काम) करत, पोतामां घणुं काम करी जात...