Atmadharma magazine - Ank 050
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: ता. २६ – ९ – ४ : : रात्रिर्चा :
: २० : आत्मधर्म : मागसर : २४७४ :
वर्तमानमां मोक्षनी प्रतीति
क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय थयो के ‘मारी अवस्था मारामांथी ज क्रमबद्ध प्रगटे छे’ एटले तेने पोताना
द्रव्य तरफ ज जोवानुं रह्युं–अर्थात्–वस्तु द्रष्टि थई. सर्व परद्रव्योनी अवस्था पण तेनाथी ज क्रमबद्ध थाय छे,
एनो हुं कर्ता नथी अने ते मारी अवस्थानो कर्ता नथी; बस! आवी क्रमबद्धनी श्रद्धा थतां सर्व परद्रव्यो प्रत्ये
उदासवृत्ति–वीतरागभाव–आवी गयो. पर तरफ लक्ष करवानुं न रह्युं अने स्वलक्षे द्रव्यमांथी जे पर्याय प्रगटे छे
ते तो निर्मळ ज छे–एटले अल्पकाळमां तेनी मुक्ति थई जवानी. द्रव्यद्रष्टिवाळाने मुक्तिनी पण आकूळता थती
नथी केमके द्रव्य तो सदाय मुक्त स्वरूप ज छे, तेमां बंधन अने मुक्ति एवा भेद ज नथी. एक गुणमां अनंती
निर्मळ अवस्थानी ताकात छे अने एवा अनंतगुणथी वस्तु भरेली छे. ते वस्तुनी द्रष्टि थई त्यां वस्तुमांथी
मोक्ष दशा क्रमबद्ध आवे छे, एटले वस्तु–द्रष्टि ज मोक्षनुं मूळ कारण छे; क्रमबद्धपर्यायना निर्णयमां वस्तुद्रष्टि ज
आवे छे. ‘वस्तुद्रष्टि थई’ एम कहो के ‘क्रमबद्धपर्यायनो यथार्थ निर्णय थयो’ एम कहो ते बन्नेनो एक ज
भाव छे.
ता. २७–८–४४ रात्रिचर्चा
ज्यां द्रव्यनी प्रतीति छे त्यां ‘मोक्ष पर्याय कयारे प्रगटशे’ एवी आकूळता नथी, पर्यायनुं लक्ष ज नथी.
ज्यां द्रव्यनी प्रतीति नथी त्यां मोक्ष पर्यायनो पण यथार्थ–पणे आदर होई शके नहीं.
द्रव्यना लक्षे मोक्षपर्याय प्रगटे छे; द्रव्यमांथी मोक्षपर्याय क्रमबद्ध आवे छे; जेने द्रव्यनी श्रद्धा छे तेने
‘मोक्ष पर्याय कयारे प्रगटशे’ एवो प्रश्न ज ऊठतो नथी; केमके द्रव्यमां ज सदाय मोक्ष पर्याय पडी छे, अने
तेमांथी क्रमबद्ध मोक्षदशा प्रगटवानी छे, ए द्रव्यनी तो तेने श्रद्धा छे तेथी मोक्षपर्याय कयारे प्रगटशे एवी
आकूळता क्रमबद्धपर्यायना यथार्थ निर्णयवाळाने होती नथी.
मोक्ष पर्याय वर्तमान प्रगट तो छे नहीं, तेथी तेनो विचार करतां तो राग आवे छे पण पूरा द्रव्यना लक्षे
राग तूटीने मोक्ष थाय छे.
रुचिने काळभेद होई शके नहीं.
रुचि द्रव्य अने पर्यायमां भेद पाडती नथी. जेने द्रव्यनी यथार्थ रुचि छे ते वर्तमान द्रव्यमां ज मोक्ष
पर्याय भाळे छे. स्थिरतामां काळभेद पडे छे, पण रुचिमां द्रव्य अने पर्याय वच्चे काळभेद पडतो नथी. द्रव्यनी
प्रतीतमां द्रव्यनी त्रणे काळनी पर्यायनो स्वीकार आवी गयो अने त्रणेकाळनी पर्यायोमां मोक्षपर्याय पण आवी
ज गई. माटे द्रव्यनी प्रतीतवाळाने मोक्षनी शंका होय नहीं.
‘सर्वज्ञ मारो मोक्ष कयारे जोयो हशे’ एवो जेने विकल्प ऊठयो...... तो तेमां तेणे वर्तमानमां सर्वज्ञने
नक्की कर्या अने सर्वज्ञना सामर्थ्यने पण पोताना ज्ञानमां नक्की कर्युं छे, एमां अनंतु वीर्य वर्तमान काम करे छे.
ते वर्तमान वीर्यनी जेने श्रद्धा नथी तेने ‘भविष्यमां मारो मोक्ष प्रगटवानो पुरुषार्थ आटलुं काम करशे’ एवी
श्रद्धा कयांथी आवशे? जे ज्ञानमां सर्वज्ञने नक्की कर्या छे ते ज्ञानना वर्तमान अनंता वीर्यनी जेने श्रद्धा नथी
तेने भविष्यना मोक्षना अनंत वीर्यनी श्रद्धा थई शके नहीं. जेणे यथार्थपणे सर्वज्ञनी श्रद्धा करी छे तेने वधारे
भव होई शके नहीं. सर्वज्ञना सामर्थ्यनो निर्णय करनारनी अथवा तो द्रव्यनी क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय
करनारनी एक बे भवमां ज मुक्ति होय. क्रमबद्धपर्यायनो यथार्थनिर्णय करनारने लांबो संसार होई शके ज
नहीं. श्रद्धामां परिपूर्ण द्रव्यनो स्वीकार करवामां वर्तमान अनंतो पुरुषार्थ छे, अने ते पुरुषार्थमां मोक्षदशानी
प्रतीत आवी जाय छे.
खास विनंती
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी गुजराती ‘आत्मधर्म’ मासिकना प्रचारनी तथा एक पुस्तिकाना
प्रचारनी योजना करवामां आवी छे, ते माटे ५००० सरनामानी जरूर छे; तेथी आत्मधर्मना सर्व वाचकोने अने
श्री जैन अतिथि सेवा समितिना सर्वे मेम्बरोने विनंति छे के–जेटलां मळी शके तेटलां तत्त्वप्रेमी मुमुक्षुओनां,
धार्मिक संस्थाओना, त्यागीओनां, उपदेशकोनां, विद्वानोनां, तेमज डोकटरो, वकीलो, अधिकारीओ, शिक्षको, तथा
वांचनालयोनां पूरा नामो तथा सरनामाओ वहेलासर आत्मधर्म कार्यालय मोटा आंकडिया तरफ मोकली आपे.
रामजी माणेकचंद दोशी : प्रमुख, श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ