एनो हुं कर्ता नथी अने ते मारी अवस्थानो कर्ता नथी; बस! आवी क्रमबद्धनी श्रद्धा थतां सर्व परद्रव्यो प्रत्ये
उदासवृत्ति–वीतरागभाव–आवी गयो. पर तरफ लक्ष करवानुं न रह्युं अने स्वलक्षे द्रव्यमांथी जे पर्याय प्रगटे छे
नथी केमके द्रव्य तो सदाय मुक्त स्वरूप ज छे, तेमां बंधन अने मुक्ति एवा भेद ज नथी. एक गुणमां अनंती
निर्मळ अवस्थानी ताकात छे अने एवा अनंतगुणथी वस्तु भरेली छे. ते वस्तुनी द्रष्टि थई त्यां वस्तुमांथी
मोक्ष दशा क्रमबद्ध आवे छे, एटले वस्तु–द्रष्टि ज मोक्षनुं मूळ कारण छे; क्रमबद्धपर्यायना निर्णयमां वस्तुद्रष्टि ज
आवे छे. ‘वस्तुद्रष्टि थई’ एम कहो के ‘क्रमबद्धपर्यायनो यथार्थ निर्णय थयो’ एम कहो ते बन्नेनो एक ज
भाव छे.
तेमांथी क्रमबद्ध मोक्षदशा प्रगटवानी छे, ए द्रव्यनी तो तेने श्रद्धा छे तेथी मोक्षपर्याय कयारे प्रगटशे एवी
आकूळता क्रमबद्धपर्यायना यथार्थ निर्णयवाळाने होती नथी.
प्रतीतमां द्रव्यनी त्रणे काळनी पर्यायनो स्वीकार आवी गयो अने त्रणेकाळनी पर्यायोमां मोक्षपर्याय पण आवी
ज गई. माटे द्रव्यनी प्रतीतवाळाने मोक्षनी शंका होय नहीं.
ते वर्तमान वीर्यनी जेने श्रद्धा नथी तेने ‘भविष्यमां मारो मोक्ष प्रगटवानो पुरुषार्थ आटलुं काम करशे’ एवी
श्रद्धा कयांथी आवशे? जे ज्ञानमां सर्वज्ञने नक्की कर्या छे ते ज्ञानना वर्तमान अनंता वीर्यनी जेने श्रद्धा नथी
तेने भविष्यना मोक्षना अनंत वीर्यनी श्रद्धा थई शके नहीं. जेणे यथार्थपणे सर्वज्ञनी श्रद्धा करी छे तेने वधारे
भव होई शके नहीं. सर्वज्ञना सामर्थ्यनो निर्णय करनारनी अथवा तो द्रव्यनी क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय
नहीं. श्रद्धामां परिपूर्ण द्रव्यनो स्वीकार करवामां वर्तमान अनंतो पुरुषार्थ छे, अने ते पुरुषार्थमां मोक्षदशानी
प्रतीत आवी जाय छे.
श्री जैन अतिथि सेवा समितिना सर्वे मेम्बरोने विनंति छे के–जेटलां मळी शके तेटलां तत्त्वप्रेमी मुमुक्षुओनां,
धार्मिक संस्थाओना, त्यागीओनां, उपदेशकोनां, विद्वानोनां, तेमज डोकटरो, वकीलो, अधिकारीओ, शिक्षको, तथा
वांचनालयोनां पूरा नामो तथा सरनामाओ वहेलासर आत्मधर्म कार्यालय मोटा आंकडिया तरफ मोकली आपे.